12.11.10

बच्चन के बच्चा हुआ, नाम हो बच्चू सूर मां और बाप के नाम की छाप रहे भरपूर

बेहद विचित्रताओं भरा जीवन किंतु सपाट और तीखा-व्यंग करने वाले स्वर्गीय हरिशंकर परसाई जी का अनूठा और दुर्लभ चित्र प्रस्तुत करते हुए बेहद रोमांचित होता जा रहा हूं. आज लिखना चाह रहा हूं "दशद्वार से सोपान" पर किंतु उसी क़िताब में क्षेपक से छिपी इस तस्वीर को आप सबके सामने लाकर मन रोमांच से भर आया. यह करामात स्वर्गीय शशिन यादव की है, "करामात" शब्द का प्रयोग  क्यों कर रहा हूं इस विषय पर बाद में बात करूंगा. अभी बच्चनजी की कृति पर चर्चा ही करूंगा. अव्वल तो यह साफ़ कर देना चाहता हूं कि मैं कुछ भी नहीं पढ़ता और जब पढ़ता हूं तो उसे ही जो जीवनोपयोगी हो ..
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                             दशद्वार से सोपान तक  
"यह कृति की समीक्षा नहीं बल्कि सार्वकालिक कहने की कोशिश है"
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"तेज़ी जी  से शादी करने का अर्थ  अपमान से ज़्यादा उस युग में आंकना भी गलत था.  बच्चन जी का तेजि जी से विवाह एक पाप के तुल्य मानी गई सामान्य रूप से जीवन में आप देखें तो पाएंगे कि यदि आप पर ऐसा कोई आरोप झूठा ही सही लग जाए तो सबसे पहले रिश्तेदारी की गांठ जो कस के लगाई होती है जिसे मान-मनुहार से जोड़ा जाता है सबसे पहले "फ़्रीज़र में जमे बर्फ़ की तरह " रिसने लगती है. एकाध बार कोई मित्र मण्डली आपके संग साथ बैठी तो बैठी वरना जितना ज़ल्द से ज़ल्द  हो सके कन्नी काटने की कोशिश भी करती है और तो और काट भी लेती  है.मैं भी बच्चन जी की इस पीर को उस समय समझ पाया था जब परिवार के एक रिश्तेदार की पुत्र वधू ने उनको दहेज़ प्रताड़ना के मामले में जेल भिजवा दिया हम नार्मदेय-ब्राह्मणों में दहेज न तो मांगा जाता और न ही दिया जाता. बात फ़ैलते ही लोगों ने उनसे दू्री बनानी शुरु कर दी  . मेरे घर में बड़े भैया की शादी होने वाली थी... मेरी मां तो सच सव्यसाची थीं उन्हैं  सबसे स्नेह था जानतें हैं घर में बिराजे गणेश जी  सहित  पूजा-कक्ष से सारे आराध्यों को आमंत्रित कर सब से पहला कार्ड देने उसी  उपेक्षित परिवार में  गईं थी बाबूजी को साथ लेकर गईं. लौटने पर कौतुहल वश मैने पूछा :- क्या ज़रूरी था  उधर सबसे पहले जाना पहले अमुक को न्योता देते इस घर में तो बाद में भी जा सकते थे हम बच्चों मे से कोई दे आता (तब मैं बाईस बरस का बच्चा था) इस पर मां बाबूजी मेरी बात सुन कर मंद मंद मुस्कुराए मां ने कहा था:-"पप्पू,कैसा कवि है तू..?"
मेरे सवाल का ज़वाब मुझे मिला और आत्मकथा के इस भाग ने उसकी व्याख्या की . किसी ने  कुंठा वश  दो पंक्तियां लिखीं थी तब  शिशु अमिताभ को देखते हुए:-
बच्चन के बच्चा हुआ, नाम हो बच्चू सूर
मां और बाप के नाम की छाप रहे भरपूर
अपमानित करने लिखी गईं पंक्तियाँ सटीक थीं अमित जी आज सबसे महत्वपूर्ण ज़रूरी और लोक प्रिय हैं इसमें कोई शक नहीं 
मधुशाला को लेकर हंगामे से सभी परिचित हैं  अब आप ही देखिये इस चतुष्पदी को कहां है मादकता -
क्षीण, क्षुद्र, क्षणभंगुर, दुर्बल मानव मिटटी का प्याला,
भरी हुई है जिसके अंदर कटु-मधु जीवन की हाला,
मृत्यु बनी है निर्दय साकी अपने शत-शत कर फैला,
काल प्रबल है पीनेवाला, संसृति है यह मधुशाला।(कविता कोष से समीक्षार्थ साभार)
मेरी नज़र में कोई गंदगी नहीं विशुद्ध अध्यात्म है मधुशाला मैं पीने वालों में से नहीं फ़िर भी साबित कर सकता हूं कि बच्चन हाला-के कवि न थे .बच्चन समग्र इधर  मिलेगा ० =>;"कविता-कोष में"
                 यहां एक बात साफ़ तौर पर कहना है कि किसी भी विक्टिम को अपराधी की तरह ट्रीट किया जाने से बड़ा अपराध और कोई नहीं  न तो आप-हम स्रजक और नियंता हैं न ही किसी के न्यायाधीश ही स्वयम प्रभू होने का दावा करना सत्ता का अहंकार मात्र होता है.
"एक बार एक एक धूर्त राजा जो चापलूसी पसंद अपने मंत्री को आईना देखने की सलाह दे रहा था  सउदाहरण   उसने धूर्त राजा ने बताया कि मंत्री तुम्हारे कितने अपराध हैं लोग तुमको राज्य में सबसे ज़्यादा नापसंद करतें हैं तुम्हारी छवि ठीक नहीं खुद का सुधार करो . मंत्री को समझ में आ गया कि राजा का अब अंत निकट है सो उसे बचाना भी ज़रूरी है. वरना पराधीनता भी तय है. सो उसने राजा से रात को जन रुचि परखने चला जावे वेष बदल कर. यदि सच हुआ तो मुझे देश निकाला दे दीजिये .
धूर्त राज़ा ने सोचा मंत्री उसे चुनौती दे रहा है फ़ौरन सूर्यास्त के पूर्व देश से प्रस्थान  के आदेश दे दिये. सुविज्ञ ज्ञानवान के राजा का छोटा भाई खुश हुआ. बस भाई को नज़र बंद कर अगले ही दिन मुकुट हथिया लिया . आशय साफ़ है कानों से मूर्ख और धूर्त देखते हैं आँखों से पढ़े-लिखे किंतु  सत्यान्वेषी अंतस-के नेत्रों से देखते हैं .
आज के परिदृश्य में उस राजा की तरह देखने वालों की संख्या सर्वाधिक है.
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                           अभी-अभी 
पोस्ट यथा संभव जटिल नहीं है . मुझे यकीन है किन्तु
अरविन्द  मिश्र जी के सर के ऊपर से सर्र से निकलना
यानी मुझे कुछ और सरल प्रवाह में लिखना होगा ताकि ...?
      बच्चन जी की आत्म-कथा चार भाग में

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11.11.10

खबरनवीसी कोई चुगल खोरी का धंधा नहीं मेरे दोस्त

भारतीय जनता पशु नहीं है

निजता के मोल लेख में डॉ॰ मोनिका शर्मा ने स्पष्ट किया कि महज़ टी आर पी के चक्कर में क्या कुछ जारी है. खास कर रियलिटी के नाम पर अंधाधुन्ध की जा रहीं कोशिशें उफ़्फ़ अब देखा नहीं जाता. उन्हैं जो खो रहे हैं पैसों के लिये अपना ज़मीर, अपना सोशल स्टेटस, यहां तक कि अपने वसन भी.  यही "उफ़्फ़"  उनके लिये भी जो कि अक्सर भूल जातें चौथे स्तंभ की गरिमा और प्रमुखता दे रहे होते हैं सनसनाती खबरों पर .
जब अखबार या चैनल किसी के पीछे पड़तें हैं. रिश्ते भी रिसने लगते हैं. तनाव से भर जाता है  ज़िंदगियों में इसे क्या कहा जावे.मेरे पत्रकार  एक मित्र का अचानक मुंह से निकला शब्द यहां कोड करना चाहूंगा:-"खबरनवीसी  कोई चुगल खोरी का धंधा नहीं मेरे दोस्त" यह वाक्य उसने तब कहा था जब कि वह एक अन्य पत्रकार मित्र से किसी नेता के विरुद्ध भ्रांति फ़ैलाने के उद्येश्य से स्टोरी तैयार कर रहा था के संदर्भ में कहे थे. आज़कल समाचार,समाचारों  की शक्ल में कहे लिखे जातें हैं ऐसी स्थिति नहीं है. जिसे देखिये वही हिंसक ख़बरनवीसी में जुटा है. निजता का हनन चाहे जैसे भी हो, हो ही जाता है. चाहे खबरनवीस करें या स्वयम हम स्वीकारें.यहां मानव अधिकारों की वक़ालत करने वाले खामोश क्यों....? यही सवाल सालता है बुद्धि-जीवियों को. एक बार मेरे बड़े भाईसाहब से उनके एक परिचित ने  पूछा:-"फ़लां स्टेशन पर प्लेट फ़ार्म की प्रकाश व्यवस्था ठीक नहीं है "
भाई साहब ने पूछा:-आप को कैसे मालूम ?
परिचित:-"अखबार में देखा "
भाई साहब:- "आज़ आपके घर का मेन गेट का लाईट बल्व बंद है क्या जलाया नहीं आपने ?"
   परिचित अवाक़ उनका मुंह ताकते कुछ देर बोला :- आज मंगलवार हैं न बाज़ार की छुट्टी थी सो मैं  ट्यूब-राड खरीदने न जा सका ...... ?
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बात तीन बरस पुरानी  है जब मैं अपने क्षेत्रीय दौरे के समय एक आंगन वाड़ी केंद्र पर रुका मेरा अधिकारी भी साथ साथ था, केंद्र पर दो कर्मचारी होते हैं उनमें से प्रमुख कार्यकर्ता गायब थी  केंद्र पर कुछेक बच्चे  मिले एक बच्चा तो ज़मीन में धूल खाता नज़र आया ऐसी स्थिति कई बार  मैने भी देखी थी सो मैनें उसका पिछला रिकार्ड देखते हुए उसे नोटिस दिये नियमानुसार कार्य से हटा भी दिया जो अमूमन मेरी रुचि के विरुद्ध है तीसरे या चौथे दिन राज्य स्तर के एक खबरिया चैनल पूरे दिन उस समाचार को इस तरह चलाया कि शायद मैं अपराधी हूं. क्या यही ज़वाब देही है हमारी ...?
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कुण्ठाएं समाज को घृणा से ज़्यादा और कुछ नहीं दे सकती हम उस दौर से गुज़र रहें हैं जो सकारात्मकता में नकारात्मकता खोज रहा है  हम उस दौर से निकल चुकें हैं जब नकारात्मकता से सकारात्मकता खोजी जाती थीं . अखबार न्यूज़ चैनल्स से बस इतनी अपेक्षा है कि इतना करें कि मानवता बची रहे  
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यह आलेख केवल सकारात्मकता के वातावरण को निर्मित करने का संकेत है जो डॉ॰ मोनिका शर्मा के आलेख से प्रेरित है .

10.11.10

अमिताभ बच्चन व्हाया बिग बी का ब्लाग

अमिताभ बच्चन
69 बरस के हो जाएंगें अगले 10 अक्टूबर को पर कमाल का सम्मोहन वाह इस खास इंसान को आम दिलों पे छा जाना  ईश्वर का कमाल ही तो है. मां शारदा की कृपा पात्र लता मंगेशकर जी  और अभिनय सम्राठ अमिताभ जी सच वो गंधर्व हैं जिनमे बेशकीमती  आभा झलकती है. इतना सम्मोहन अदभुत मैं अमिताभ जी की फ़िल्मों से अधिक उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हूं. जिस तरह का किरदार मेरी हीरो हो सकता है उसे अमिताभ के अलावा कोई और नाम न दे सकूंगा. मुझे मालूम है छोटा सा सैलेब्रिट्री भी जो ब्लागिंग कर रहा होगा शायद ही हिंदी ब्लागर्स के ब्लाग देखता हो यह कई कारणों से होता है मुझे उस बात के भीतर नहीं जाना . उनकी ताज़ा पोस्ट मुझे पसंद आई सोचा शेयर कर लूं
और मेरा पसंदीदा गीत भी फ़िल्म सिलसिला से मुझे बेहद पसंद है शायद आप को भी

भाग्य

भाग्य का निर्माता कौन इस बिन्दु पर महेंद्र मिश्र जी की पोस्ट जो समय चक्र पर प्रकाशित हुई है को अन देखा करना अनुचित होगा. मिश्र जी के आलेख में लिखतें हैं:-
                                     "मनुष्य कुछ इस तरह की धातु का बना होता है जिसकी संकल्प भरी शक्ति और साहसिकता के आगे कोई भी अवरोध टिक नहीं पाता है और न भविष्य में टिक पायेगा . इस तरह से यह कहा जा सकता है की मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं निर्माता है . दुनिया में मनुष्य के आगे असंभव कुछ भी नहीं है . आदमी के अच्छे या बुरे होने का निर्धारण स्वयं उसके कर्म करते हैं .".........
भाग्य और अगले जन्म में गहरा अंतर्संबध है. इस बारे में स्वामी शुद्धानंद नाथ ने एक प्रवचन के दौरान कहा था नियति का नियंता स्वयम इन्सान ही होता है. जो घट रहा है वो पूर्व-जन्म में किये गये कार्यों का परिणाम है.जो अगले जन्म में घटेगा उसका मार्ग आज से बनाना है तय करो कि क्या चाहते हो आज़ के कार्य कल के भाग्य को तय करेंगें. भाग्य को कोई दैव योग कहता है तो कोई ग्रहों की स्थिति जो सच नहीं है भाग्य इस जीवन में किये गये सत-असत कर्मों का परिणाम है. भाग्य को भाषित करने भारतीय ज्योतिष प्रयासरत है "भाग्य" कभी भी परिवर्तित नहीं होता. कोई उपाय कोई प्रबंध इससे विमुक्त नहीं कर सकता सब को अपना अपना किया भोगना ही होता है. यह तय है
                                           विज्ञान  इसे नही मानता कोई बात नहीं असल में विज्ञान में केवल भौतिक-विषयों का अध्ययन कर सकता है उसकी अपनी सीमाएं हैं.जब भी  परावैज्ञानिक विषयों पर अध्ययन होने लगेगा तो तय है कि लोग भाग्य के निर्माण की प्रक्रिया को सहज ही समझ पाएंगें  संजय ने युद्ध का वर्णन किया टी.वी. की कल्पना के पूर्व लोग उसे चमत्कार मानते थे. टी.वी . के आने के बाद बस उस क्रिया को सहज स्वीकार लिया. आज़ तेज़ वायरल के बावज़ूद लिखने का मन था सो लिख दिया विषय गम्भीर है कुछ विचार अभी मन में हैं किंतु शरीर साथ नहीं दे रहा शेष फिर कभी  तब तक सुनिए अर्चना  चावजी के स्वरों में ये पाडकास्ट स्वप्न लोक पर विवेक सिंह का  आलेख 



प्रमाणपत्र  यहाँ से मिलेगा ।

9.11.10

मृत्यु में सौन्दर्य का बोध

          
काव्यलोक से साभार
मृत्यु ऐसी भयावह नहीं
  आदरणीय पाठकों ने   अंतिम कविता 01 एवम अंतिम कविता 02 देख कर जाने क्या क्या कयास लगा लिये  होंगे मुझे नहीं मालूम पर इतना अवश्य जानता हूं कि - भाव अचानक उभरे कि शब्दों में पिरोकर  लिख देने बाध्य करता है  मेरे मन का कवि  केवल कवि  है. जाने अनजाने दवाव डालता है तो  लिख देता हूं- आप किसी के जीवन पर गौर करें  तो पाएंगे वो जन्म से मृत्यु तक एक अनवरत  असाधारण कविता ही तो है. पूरे नौ रसों से विन्यासित मानव-जीवन में सब कुछ  एक कविता की मानिंद चलता है वास्तव में मेरी उपरोक्त दौनों कविताएं एक स्थिति चित्रण मात्र है जिसे न लिखता तो शायद अवसादों से मुक्त न होता कुल मिलाकर हर सृजन के मूलाधार में एक असामान्य स्थिति सदा होती ही है. प्रथम कविता यदि क्रौंच की कराह से उपजी थी तो पक्के तौर पर माना जावे कि हर असाधारण परिस्थिति के सृजन को जन देती ही है. जो जीवन के रस में मग्न हैं उनके लिये "मृत्यु" एक दु:ख और भय कारक  घटना है. लेकिन वो जो असाधारण हैं जैसे अत्यधिक निर्लिप्त (महायोगी संत उत्सर्गी जैसे भगत सिंह आदि )अथवा अत्यधिक शोकाकुल अथवा निरंतर पराजित उसे मृत्यु में  सौन्दर्य का एहसास होता है. :-
सच बेहद खूबसूरत हो
नाहक भयभीत होते है
तुमसे अभिसार करने
तुम बेशक़ अनिद्य सुंदरी हो
अव्यक्त मधुरता मदालस माधुरी हो
बेजुबां बना देती हो तुम
बेसुधी क्या है- बता देती हो तुम
तुम्हारे अंक पाश में बंध देव सा पूजा जाऊंगा
पलट के फ़िर
कभी न आऊंगा बीहड़ों में इस दुनियां के
ओ मेरी सपनीली तारिका
शाश्वत पावन  अभिसारिका
तुम प्रतीक्षा करो मैं ज़ल्द ही मिलूंगा 
                                             यह अभिव्यक्ति किसी की भी हो सकती जो घोर नैराश्य से घिरा हो या महायोगी संत उत्सर्गी हो. महा मिलन को बस ये दो ही प्रकार लोग सहज स्वीकारतें हैं.सामान्य नहीं. यह वो बिंदु है जहां से "आत्म-हत्या शब्द को अर्थ मिलता है  महायोगी संत उत्सर्गी यह कृत्य नहीं करते वे भी नहीं करते जो घोर नैराश्य भोग रहे हों केवल वे ही ऐसा करतें हैं जो क्षीण और  विकल्पहीन हो जातें हैं. मुझे हुआ है मृत्यु में सौंदर्य का बोध अब भय नहीं खाता पर संघर्ष मेरी आदत है और प्राथमिकता भी  सो जो मित्र मेरी कविताओं से कुछ अर्थ निकाल रहे थे वे इससे समझें मुझे 

8.11.10

महफ़ूज़ मुझे खुद मुझसे ज़्यादा प्रिय हो..!

प्रिय महफ़ूज़
"असीम-स्नेह"
बज़ से जाना कि अब बिलकुल ठीक हो हम सबके लिये   खुशी की बात है. तुम्हारी कविता तुमको याद है न 

Fire is still alive.
But what of the fire?
Its wood has been scattered,
But the embers still dance.
Though the fire is tiny,
It survived.
Though the fire is weak,
It's still alive.

Mahfooz Ali

 महफ़ूज़ भाई तुम्हारे जीवन की कविता है सच  तुम वो आग हो जिसे कोई सहजता से खत्म कैसे कर सकता है. मैं क्या सारे लोग तुम्हारी ज़िंदगी के लिये अपने अपने तरीक़े से प्रार्थनारत थे. कौन हो किधर से हो कैसे हो मैं नहीं जानना चाहता. पर नेक़ दिल हो तभी तो "महफ़ूज़" हो. सारी बलाएं जो भी जब भी तुम पर आतीं हैं जिसकी आशंका मुझे सदा रहती है ईश्वर की कृपा से सच ज़ल्द निपट ही जातीं हैं.ज़िन्दगी में उतार-चढ़ाव सबके आतें हैं किन्तु तुममें प्रकृति ने जो ईर्षोत्पादक-तत्व  दिया है वो एक मात्र कारण है कि किसी न किसी की शिकारी निगाह तलाश ही लेतीं हैं तुमको. मेरे तुम्हारे जीवन में बस एक यही समरूपता है. मैं भी बार बार मारे जाने वाला इंसान हूं मुआं मरता ही नहीं  .वो.जो . जो बार बार पीछे से वार कर रहें है ईश्वर से विनत प्रार्थना करता हूं "प्रभू इन को माफ़ कर देना ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहें हैं..?" यक़ीन करो  तुम पर हमले वाले दिन बहुत बेक़ल फ़िर उस रात देर रात देखी तुम्हारी कविता और बस यकीं कर लिया महफ़ूज़ को  कोई मार नहीं सकता. महफ़ूज़ मुझे मालूम था शायद तुम मेरी स्थिति जान कर भावुक हो जाओगे रोने लगोगे तभी तो मैने अपना दर्द तुमसे शेयर नहीं किया. इन दिनों मैं बहुत तनाव जी रहा हूं लोग निरंतर कपट कर रहें हैं तुम भाग्यवान हो कि तुम्हारे शत्रु सामने हैं. मुझे दिखाई नहीं देते बस महसूस कर लेता हूं. २९  नवम्बर को  मेरा अड़तालीस का होना तय है  उम्र के इस मोड़ पर करूं तो क्या करूं खैर छोड़ो मेरे तनावों को गोली मारो... बस बताओ बिना संघर्ष के जीवन बेनूर नहीं लगता ? लगता है न हां तो संघर्ष में जीत का  पहला कवच सदा "धैर्य" ही होता है. जिसे मैं एक बार खोने जा रहा था पर बस सोचा "सवेरा तो रोज़ ही होता है न..? कब तक तिमिर रुक पाएगा. 
मेरे घरेलू एलबम में मेरी आठ माह की उम्र की एक तस्वीर हुआ करती थी "मरफ़ी-बेबी" तुलना करती थी मां फ़िर अक्सर  मुझे देखकर  आंखे भर आतीं थीं उनकी मैं बेखबर होता था यह घटना कई बार होती . एक बार मेरे चाचा जब आये और उनने यह दृश्य देखा तो मेरी फ़ोटो मांग ली ले भी गए अपने साथ अर्थ बहुत दिनों बाद समझ पाया कि मां की आंखें क्यों नम हो जाया करतीं थीं. रमेश काका फ़ोटो क्यों ले गये. मां-बाबूजी अक्सर मेरे भविष्य को लेकर चिंता करते थे इस बात का एहसास मुझे जब भी हुआ कोशिश की कि कुछ ऐसा करूं कि  वे निश्चिंत रहें .कोशिश की सफ़लता मिलीं किंतु आज़ बाबूजी मेरे लिये बेहद दु:खी हैं अस्सी बरस के बाबूजी का खून जल रहा है मेरा एक अफ़सर जिसके  बीमार पिता को मैंने अपने शरीर से खून दिया उसी ने सारे ऐसे-षड़यंत्र की रचना की है जो मेरे पिता के  खून जलाने का सर्व-प्रथम कारण  रहा उसे भी इस आलेख के ज़रिये उसे भी माफ़ कर रहा हूं . यह विवरण यहां इस लिये दे रहा हूं किसी  शत्रुओं से ज़्यादा खतरनाक होते हैं सबसे क़रीबी लोग होते हैं इनको पहचानना मुझे दे से आया तुम इनको ज़ल्द पहचानो मेरी मंशा है विश्वास भी है. इस बीच तुमको बताना चाहूंगा कि मेरे दो एलबम बहुत शीघ्र आएंगे अगर परिस्थियां अनुकूल रहीं एक तो टंग-ट्विस्टर गीतों का जो बच्चों के लिये होगा पूर्णत: चैरिटि के लिये होगा. दूसरे के लिये  आज़ ही सूचना मिली है. अब बताओ कि ज़िंदगी कितनी ज़रूरी है ईश्वर के हाथों सब कुछ संचालित होता है  दुश्मनों की सद गति के लिये हम सभी ईश्वर ये याचना करें यही जीवन का सर्वोच्च सत्य है. तुम्हारे और मेरे जीवन में एक अहम समानता है वो है दु:खों का आधिक्य तभी तो  महफ़ूज़ मुझे खुद मुझसे ज़्यादा प्रिय हो..!
अशेष शुभ कामनाओं के साथ दाल-बाटी खाने का न्योता भी दिये देता हूं

6.11.10

महाजन की भारत यात्रा

"स्वागत के क्षण "
                  अमेरिका के चवालीसवें राष्ट्रपति  "बराक़-ओबामा" जो व्यक्तिगत रूप से भारत के हितैषी माने जाते है की भारत यात्रा आज़ से अगले शेष दो  दिनों में क्या रंग दिखाएगी इस बात से का असर अगले तीन बरस के बाद से सामने आयेगा.कोई उनको अमेरिकी उद्योगों-उद्योगपतियों के वक़ील के रूप में  देख रहें हैं तो कुछ लोग बराक़ सा’ब को भारत का खैर-ख्वाह मान रहें हैं.शायद इस बात को सहजता  से स्वीकरने में मुझे हिचकिचाहट है. पर उनकी यात्रा पर लगातार अपडेट होतीं  खबरों से एक बात ज़रूर स्पष्ट है कि भारत के प्रति अमेरिकी नज़रिये में कुछ बदलाव ज़रूर आया है.सच यही कि भारत ने कम से कम इतना एहसास तो करा ही दिया है कि अब वो एक आर्थिक महाशक्ति  है.पहली बार लगा कि वे  भारत को  पाकिस्तान के बाजू वाले पलड़े में नहीं रख रर्हें हैं जैसी आशंका मेरे अलावा कई लोगों की थी .  अमेरीक़ी राष्ट्रपति महोदय ने नेहरू जी के कथन का पुनरुल्लेख :-"'हम आज़ादी की  मशाल को कभी बुझने नहीं देंगे, और कहा :- अमरीकी इस कथन पर विश्वास करते हैं !" सचाई भी यही है तभी तो ओबामा साहब यह भी जान चुकें हैं कि :-"भारत के बाज़ार में स्थान पाने के लिये दबाव की कूटनीति प्रभावशाली नहीं हो सकती" उनके भाषण से साफ़ तौर पर स्पष्ट हो चुका है कि वास्तव में अमेरीकी उत्पादों को भारतीय बाज़ार कितना ज़रूरी है. सो सुविधा -द्वार खोलना ज़रूरी भी है भारत के लिये भी यह ज़रूरी होगा कि अपने सुरक्षा-द्वारों की व्यवस्था सुनिश्चित कर ली जावे. 
इसरो,डीआरडीओ,डीई को काली सूची से हटाने की मांग जायज़ ही थी जिसे स्वीकार लेना अमेरिका के लिए बेहद ज़रूरी है.भारत के इन सम्मानित संगठनों का नाम काली सूची में दर्ज़ किया जाना अमेरीका की सबसे बड़ी भूलों में से एक भूल थीं. अब अमेरीकी सेटेलाईटस को भारत से लांच किया जा सकेगा. हमारी-तकनीकियों का आदान-प्रदान सहज हो सकेगा इससे कुक हद तक साबित हो रहा है कि भारत के विकास को अमेरीका हलके तौर पर नहीं ले रहा है. वरन भारत की सह-अस्तित्व की अवधारणा को अमेरिका नकार नहीं रहा है.. 
उम्मीद है कि ओबामा साहब अपने पहले भाषण की पहले वाक़्य को न भूलेंगें "मैं यहाँ स्पष्ट संदेश देने के लिए आया हूँ - आतंकवाद के ख़िलाफ़ अमरीका और भारत एक जुट हैं. हम 26 नवंबर 2008 के स्मारकों पर जाएँगे और कुछ पीड़ित परिवारों से मुलाक़ात भी करेंगें.
http://thatshindi.oneindia.in/img/10/01/091124153210_manmohan_singh226_thump.jpg

बराक़ साहब के नाम एक खत :ट्वीट कर दूंगा

दुखद सूचना : खुशदीप सहगल भैया के पिताश्री के  निधन की सूचना से ब्लाग जगत स्तब्ध है.  82 वर्षीय पिताजी का मेरठ के एक अस्‍पताल के आई सी यू में 5 नवम्‍बर 2010 की प्रात: बीमारी से निधन हो गया है। शोक-संतप्‍त परिवार के प्रति नुक्‍कड़ अपनी संवेदना व्‍यक्‍त करता है और परमपिता परमात्‍मा से दिवंगत आत्‍मा की शांति के लिए प्रार्थनारत हैं हम सभी (तीन)( चार  )

                    इस वर्ष यानी 05 नवम्बर 2010 को  दीपावली पूजा का शुभ मुहुर्त सुबह 06:50 से 11:50 आज दोपहर  12:23 से 04:50 संध्या  05:57 से 09:12 ,रात 09:12 to 10:47 रात्रि 11:57 to 12:48 बजे ज्योतिषानुसार नियत है. शेयर बाज़ार  भी पूरे यौवन पर बंद हुआ. कुल मिला कर व्यापार के नज़रिये से भारत ऊपरी तौर मज़बूत नज़र आ रहा है.भारत में विदेशी पूंजी के अनियंत्रित प्रवाह को आशंका की नज़र से देखा जा रहा था,उस पूंजी की मात्रा में कमी दिखाई देना एक शुभ सगुन ही है (एक)एवम (एक-01) यानी  विदेशी कम्पनीयों पर लगाम लगाते हुए  भारतीय बाज़ार से प्राप्त लाभ के प्रतिशत में कमीं आना निश्चित है. किंतु क्या यह स्थिति बनी रहेगी क्या भारतीय घरेलू उत्पादन  को अवसर बाक़ायदा बेरोक हासिल होता रहेगा यह वित्त-विशेषज्ञता की पृष्ठभूमि  वाले प्रधानमंत्री एवं वित्त मंत्री महोदय को करना है.  अब तो और साफ़ रहना होगा कि वे घरेलू-कम्पनीयों  के सन्दर्भ में पाजीटिव हैं अथवा बराक साहब के बहाव में आ जावेंगे ? इस सवाल का हल खोजा भी जा रहा होगा हो सकता है कि खोज भी लिया हो. यदि भारतीय व्यापारिक-उत्पादक,कम्पनीयों, के प्रतिकूल कोई समझौता करना पड़ा तो उस मज़बूरी का खुलासा करना भी ज़रूरी होगा सरकार के लिये. क्योंकि भारतीय-बाज़ार की लक्ष्मी का पूजन अनुकूल मुहुर्त पर भारतीयों ने ही किया है उसका (लक्ष्मी का )  भारतीयों के पास ही होना ज़रूरी है. ओबामा साहब का स्वागत (दो) हम सभी करतें हैं हम  आत्मसम्मान के भी पक्षधर हैं, हमारी अपेक्षा साफ़ है कि भारत और पाक़िस्तान को "एक तराज़ू-तौल" के फ़ार्मूले से अलग कर दिया जावे. भारत भारत है पाक़िस्तान पाकिस्तान है . अमेरिका को इस बात को लेकर भ्रमित हो सकता है कि पाक़ उनका सहयोगी है पर भारत का बच्चा-बच्चा पाक़ के इरादों से परिचित है. हमें सामरिक-संसाधनों से ज़्यादा आपके द्वारा पाक को मुहैया कराए गये अथवा कराए जा रहे संसाधनों में कटौती की अपेक्षा है. हम चीन के अपनत्व से पंचशील से ही परिचित हैं पाकिस्तान के संबंध उनसे भी मधुर हैं इस मधुरता से भारतीयों को कोई आपत्ति नही यदि वे सामरिक न हों. भारत वैसे भी अहिंसा का अनुयायी है. लेकिन महाभारत और लंका-विजय को न भूला जावे जो जन-मन में कथानक के रूप में अंकित है.  
 बहरहाल एजेण्डा तो तय है हमारी इस राय से बेहतर कहने सुझाने वाले लोग आपके पास भी है हमारे प्रधान मंत्री साहब के पास भी आप तो हमारी ओर से हैप्पी दीवाली स्वीकारिये हमारा तो  काम था लिखना सो लिख दिया अब आपको ट्वीटर के ज़रिये भेज भी देते हैं किसी से पढ़वा लीजिये अंग्रेज़ी में हम न लिखेंगें आप हिंदी को पढ़ेंगे नहीं सो किसी से पढ़वा लीजिये. 
पुन: अशेष-शुभकामनाओं सहित 
    ट्विटर पर चार बराक ओबामा है 
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-:टिप्पणीयाँ एवम लिंक्स  :-
(एक) "विदेशी मुद्रा आस्तियों में गिरावट के कारण 22 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 1.034 अरब डॉलर घटकर 295.40 अरब डॉलर रह गया जिससे पाँच सप्ताह से जारी तेजी का दौर थम गया।पिछले सप्ताह विदेशी मुद्रा भंडार 64.1 करोड़ डॉलर बढ़कर 296.43 अरब डॉलर पर पहुँच गया था।भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए गए आँकड़ों में दर्शाया गया है कि समीक्षाधीन सप्ताह में विदेशी मुद्रा की तेजी का प्रमुख कारक विदेशी मुद्रा आस्तियों की मात्रा 98.8 करोड़ डॉलर घटकर 267.69 अरब डॉलर रह गई थीं।.आँकड़े दर्शाते हैं कि भारत का स्वर्ण मुद्रा भंडार 20.51 अरब डॉलर पर अपरिवर्तित रहा जबकि विशेष निकासी अधिकार (एसडीआर) भी 3.3 करोड़ डॉलर घटकर 5.178 अरब डॉलर रह गया(स्रोत:-वेब दुनिया )"
(एक-01) :- एक विश्लेषण राम त्यागी जी के ब्लाग "मेरी आवाज़" पर
(दो) वेब-पोर्टल प्रवक्ता पर : -प्रभात कुमार रॉयका आलेख  बराक़ ओबामा की भारत यात्रा के आयाम
(तीन) :-शोक-सूचना  अविनाश वाचस्पति के ब्लाग पिताश्री  से
(चार) :-पाबला जी के ब्लाग ज़िंदगी के मेले से 

4.11.10

अंतर्जाल के : सुकुमार गीतकार राकेश खण्डेलवाल

सुपरिचित ब्लागर राकेश खण्डेलवाल के गीत-कलश वाक़ई वो अक्षय कलश है जो कभी रीत ही नहीं सकता, 2005 से निरंतर ब्लागिंग कर रहे राकेश जी का यह गीत
आज फिर गाने लगा है गीत कोई
खुल गये सहसा ह्रदय के बन्द द्वारे
कोई प्रतिध्वनि मौन ही रह कर पुकारे
और सुर अंगनाईयां आकर बुहारे
आ गई फिर नींद से उठ आँख मलती रात सोई
आज फिर गाने लगा है गीत कोई (आगे पढ़ने के लिये यहां क्लिक कीजिए)
यही गीत श्री राकेश खण्डेलवाल जी के ब्लाग से साभार पाडकास्ट


                                                      स्वर:अर्चना चावजी     

3.11.10

"मिसफ़िट की ओर से दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं"

आओ हम मिल दूर करें आज सबके अंतस के अंधकार
दीपशिखाओं की ज्योति से रोशन हो सबके घर-द्वार
        निश्छल ,निर्मल पावन मन में स्वर्ण रश्मियाँ हों अपार
                                             बिना भेद के सब मिल जाएं,दिल में हों बस प्यार ही प्यार
...( अर्चना )


नन्हें  दीपों  की  माला से  स्वर्ण रश्मियों का विस्तार -
 बिना भेद के स्वर्ण रश्मियां  आया बांटन ये    त्यौहार !
    निश्छल निर्मल पावन मन ,में भाव जगाती दीपशिखाएं ,
 बिना भेद अरु राग-द्वेष के सबके मन करती उजियार !! “(गिरीश)


गिरीश बिल्लोरे                                                  अर्चना चावजी

1.11.10

एक गज़ल ---गिरीश पंकज जी की

एम.ए (हिंदी), पत्रकारिता (बी.जे.) में प्रावीण्य सूची में प्रथम,लोककला संगीत में डिप्लोमा. पैतीस सालों से साहित्य एवं पत्रकारिता में समान रूप से सक्रिय. -सदस्य-साहित्य अकादेमी, दिल्ली/प्रांतीय अध्यक्ष-छत्तीसगढ़ राष्ट्र्भाषा प्रचार समिति -बत्तीस पुस्तकें प्रकाशित: तीन व्यंग्य- उपन्यास- मिठलबरा की आत्मकथा, माफिया, और पालीवुड की अप्सरा. आठ व्यंग्य संग्रह- ईमानदारों की तलाश, भ्रष्टाचार विकास प्राधिकरण, ट्यूशन शरणम गच्छामि, मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाएँ, मूर्ति की एडवांस बुकिंग, हिट होने के फार्मूले, नेता जी बाथरूम में, एवं ''मंत्री को जुकाम''., नवसाक्षरों के लिये चौदह पुस्तकें बच्चो के लिये चार किताबें, एक हास्य चालीसा, दो ग़ज़ल संग्रह. -कर्णाटक एवं मध्यप्रदेश में दो लोग गिरीश पंकज के व्यंग्य-साहित्य पर पीएच.डी. कर रहे है.प्रवास-अमरीका, ब्रिटेन, त्रिनिदाद, मारीशस आदि लगभग दस देशो का प्रवास. -
ईमेल- girishpankaj1@gmail.com 

आज दिजिये गिरीश पंकज जी को जन्मदिन की बधाई व सुनिये उनकी एक गज़ल ------





पंकज जी की  ग़ज़लें उनकी इस साईट पर उपलब्ध हैं

31.10.10

प्रभाष जोशी जी ने कहा :- “.... अपना ईमान बेचा,”

https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjmQo2w9K7wgTmET_MSeyMSxuJ_lA4qLsd3wcrRAp8fHXhhgc-KtHYTAzY2eYvyGLLAav3N9CtGdB7rJqok8IQCPLQ3hIabj_yh8wLDzpK26jluo-PDmOde9ejU0duuRzJcS959f-yCjaQ/s320/fea5-1_1208628913_m.jpgअपने अंतर्मन की जिज्ञासा  को तृप्त करना चाहता है समाज  उसे चाहिये सकारात्मकता उसे चाहिये व्यापक दृष्टिकोण उसे चाहिये सार्थक नज़रिया. कोई भी यह करने तैयार है तो आगे आये आज एक खबरी चैनल ने अभिषेक- ऐशवर्या  के दाम्पत्य जीवन पर एक खबर प्रसारित की जिसमें पति-प्त्नि के बीच के मन मुटाव को सरे बाज़ार कर दिया. यदि यही है पत्रकारिता तो  अब बस और नहीं इस का अवसान ज़रूरी है  खत्म कर दो ये रवैया वरना ये दुनियां में इतनी नकारात्मकता हो जावेगी कि खुद तुम्हारा जीना और  सांस लेना दूभर हो जाएगा.देश वासियो ये तो उदाहरण मात्र था सर्वत्र  सबसे पहले हमें इस तरह की नकारत्मक्ता को नियंत्रित करना ही होगा.  प्रज़ातंत्र के चारों स्तम्भ  नेगेटिविटी की गिरफ़्त में आ जाएं तो प्रजातन्त्र की समीक्षा अत्यावश्यक हो जाती है.. लोक कल्याणकारी राष्ट्र की कल्पना करते हुए शहीदों ने ये तो न सोचा था न .सेक्स,विवाहेत्तर-संबंध,फ़िल्म,गाशिप, राजनैतिक छीछालेदर,खबरों से सजे मीडिया अनुशासित है क्या..? आपका सोचना जो भी हो मैं सोचता हूं नहीं.ये साजिश है भारतीय सकारात्मक पहलू को खत्म करने की. ये पश्चिमी बुनावट की "पत्रकारिता गणेश शंकर विद्यार्थी, महावीरप्रसाद द्विवेदी ,से प्रभाष जोशी तक    पुरोधाओं ने शायद यह तो न कहा था करने को. प्रभाष जी ने तो यहां तक कहा था:-  ""... ने अपना ईमान बेचा " इसका अर्थ यदि यही है तो है कि मामला शर्मनाक है.  समाज के साथ छल है. यहां उनको नही कुछ सोचना है जो सकारात्मकता के साथ इस नोबल-प्रोफ़ेशन में हैं..उन पर यह बात लागू नहीं है.... सोचना तो उनको है जो नकारात्मकता बो रहे हैं. सचाई दिखाना देखना कोई अपराध नहीं है सत्य सदा उज़ागर हो ये भी ज़रूरी है किंतु "अर्धसत्य" सदा से ही घातक विध्वंसक कभी कभी आत्म घाती भी हो सकता है इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है मित्र.अपने जीवन में आप देखेंगें तो पाएंगे आज़ादी की 25वीं वर्षगांठ के बाद तक या कहें अभी तक मीडिया कर्म आदरस्पद रहा है किंतु जैसे ही विदेशी-मीडिया-सिस्टम ने हमारे देश की ओर मुंह किया हमारे मूल्य अचानक अर्रा के गिर गये ये सब क्या है क्यों है क्या कोई अनुशासन कोई लगाम नहीं होना चाहिये . रोज़ एक पोर्टल रोज़ एक अखबार हज़ारों मीडिया कर्मी लाखों पाठक करो्ड़ों का व्यापार और हासिल क्या "तनाव कुण्ठा,वैमनस्यता, अलगाव, वैचारिक विभ्रम,अलगाव, अविश्वास...! "
                                           अगर आप गिनें तो जो सनसनी फ़ैलाते हैं वो समाचार सर्वाधिक प्रकाशित और प्रसारित हो रहे हैं. प्रतिशत में आप स्वयम गणना कीजिये सत्तर-प्रतिशत  से कम न होगा नकारात्मकता भरी खबरों का प्रतिशत.
   संजीव शर्मा नामक एक स्टिंगर/ पत्रकार ने देह व्यापार पर स्टिंग  के लिये अपने परिवार को दांव पर लगा दिया किंतु फिर उसी एजेंसी  ने   उनको निकाल दिया  किंतु वे डिगे नही उन्हीं के शब्दों में ".. मुझे भी मक्खी की तरह दूध से निकल कर फेंक दिया गया ...... सिर्फ इस लिए क्यूँ की मैं एक मिशन मैं फ़ैल हो गया ...... लेकिन आज मैं ताल ठोक कर कह सकता हूँ .... मैं असल जिंदगी में पास हूँ और रहूँगा क्यूंकि बेईमानी ...चाटुकारिता ...चापलूसी ....मेरी खून मैं नहीं हैं और जिस दिन आएगी उस दिन मीडिया को अलविदा कहूँगा ....आज मैं एक अच्छे चैनल मैं हूँ और पोस्ट मैं भी खुद से ज्यादा मुझे आपने टीम पर भरोसा है ..... बस उस खुदा ये ही दुआ है ..... ऊंचाई तक पहुँचाना जरूर लेकिन ज़मीन से दूर भी ना करना जो कुछ मेरे साथ मेरे चैनल ने उस दौरान किया मैं कभी अपने स्टिंगर के साथ न ऐसा न कर सकूँ .... "

गरीबी रेखा की सूची में सेठ गरीब दास

                             दीवाली के पहले गरीबी से परेशान हमारे गांव में लंगड़,दीनू,मुन्ना,कल्लू,बिसराम और नौखे ने विचार किया इस बार लक्ष्मी माता को किसी न किसी तरह राजी कर लेंगें . सो बस सारे के सारे लोग माँ को मनाने हठ जोगियों की तरह रामपुर की भटरिया पे हो लिए जहां अक्सर वे जुआ-पत्ती खेलते रहते थे पास के कस्बे की चौकी पुलिस वाले आकर उनको पकड़ के दिवाली का नेग करते ये अलग बात है की इनके अलावा भी कई लोग संगठित रूप से जुआ-पत्ती की फड लगाते हैं….. अब आगे इस बात को जारी रखने से कोई लाभ नहीं आपको तो गांव में लंगड़,दीनू,मुन्ना,कल्लू,बिसराम और नौखे की कहानी सुनाना ज़्यादा ज़रूरी है.
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तो गांव में लंगड़,दीनू,मुन्ना,कल्लू,बिसराम - नौखे की बात की वज़नदारी को मान कररामपुर की भटरियाके बीचौं बीच जहां प्रकृति ने ऐसी कटोरी नुमा आकृति बनाई है बाहरी अनजान समझ नहीं पाता किवहां छुपा जा सकता है. जी हां उसी स्थान पर ये लोग पूजा-पाठ की गरज से अपेक्षित एकांतवासे में चले गए ..हवन सामग्री उठाई तो लंगड़ के हाथौं से गलती से घी ज़मींन में गिर गया . बमुश्किल जुटाए संसाधन का बेकार गिरना सभी के क्रोध का कारण बन गयाकल्लू ने तो लंगड़ को एक हाथ रसीद भी कर दिया ज़मीं के नीचे घी रिसता हुआ उस जगह पहुंचा जहां एक शापित-यक्ष बंधा हुआ था .उसे शाप मिला था की सबसे गरीब व्यक्ति के हाथ से गिरे घी की बूंदें तुम पर गिरेंगीं तब तुम मुक्त होगे सो मित्रों यक्ष मुक्त हुआ मुक्ति दाता लंगड़ का आभार मानने उन तक पहुंचा . यक्ष को देखते ही सारे घबरा गए कल्लू की तो घिग्घी बंध गई. किन्तु जब यक्ष की दिव्य वाणी गूंजीमित्रो,डरो मत, तो सब की जान में जान आई.
यक्ष:तुम सभी मुझे शाप मुक्त किया बोलो क्या चाहते हो…?
मुन्ना: हमें लक्ष्मी की कृपा चाहिए उसी की साधना में थे हम .
यक्ष: ठीक है तुम सभी चलो मेरे साथ
सभी मित्र यक्ष के अनुगामी हुए पीछे पीछे चल दिए पीपल के नीचे बैठ कर यक्ष ने कहा :-”मित्रो,मैं पृथ्वी भ्रमण पर निकला था तब मैनें अपनी शक्ति से तुम्हारे गांव के ज़मींदार सेठ गरीबदास की माता से गंधर्व विवाह किया था उसी से मेरा पुत्र जन्मा है जो आगे चल के सेठ गरीबदास के नाम से जाना जाता है.”
यक्ष की कथा को बडे ही ध्यान से सुन रहे चारों मित्रों के मुंह से निकला :-”तो आप ही हमारे बडे ज़मींदार हैं ?”
हां, मैं ही हूं, घर-गिरस्ति में फ़ंस कर मुझे वापस जाने का होश ही न रहा सो मुझे मेरे स्वामी ने पन्द्र्ह अगस्त उन्नीस सौ सैतालीस रात जब भारत आज़ाद हुआ था शाप देकररामपुर की भटरिया में कैद कर दिया था और कहा था जब गांव का सबसे गरीब आदमी घी तेल बहाएगा और उसके छींटै तुम पर गिरेंगे तब तुम को मुक्ति-मिलेगी.
आज़ तुम सबने मुझे मुक्त किया चलो…. बताओ क्या चाहते हो ?
सभी मित्रों ने काना-फ़ूसी कररोटी-कपडा-मकानमांग लिए मुक्ति दाताओं के लिये यह करना यक्ष के लिए सहज था. सो उसने माया का प्रयोग कर गाँव के ज़मींदार के घर की लाकर तिजोरी बुला कर ही उन गरीबों में बाँट दी . जाओ सुनार को ये बेच कर रूपए बना लो बराबरी से हिस्सा बांटा कर लेना और हां तुम चारों के लिए मैं हर एक के जीवन में एक बार मदद के लिए आ सकता हूं.
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उधर गांव में कुहराम मचा था. सेठ गरीब दास गरीब हो गया. पुलिस वाले एक एक से पूछताछ कर रहे थे. इनकी बारी आये सभी मित्र बोलेहम तो मजूरी से लौटे हैं.” किन्तु कोई नहीं माने झुल्ला-तपासी में मिले धन को देख कर सबको जेल भेजने की तैयारी की जाने . कि लंगड़ ने झट यक्ष को याद कर लिया . यक्ष एक कार में गुबार उडाता पहुंचा और पुलिस से रौबीली आवाज़ में बोलाइनको ये रूपए मैंने इनाम के बतौर दिए हैं.”ये चोर नहीं हैं.
रहा सवाल सेठ गरीब दास का सो ये तो वास्तव में गरीब हैं
हवालदार ने कहा :-सिद्ध करोगे
यक्ष: अभी लो गाँव के सचिव से गरीबी रेखा की सूची मंगाई गई जिसमें सब से उपर सूची अनुसार सबसे ऊपर सेठ गरीब दास का नाम था
सूची में जो नाम नहीं थे वो लंगड़,दीनू,मुन्ना,कल्लू,बिसराम और नौखे के…?

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धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...