Ad

पुष्यमित्र शुंग लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
पुष्यमित्र शुंग लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, जून 04, 2024

पुष्यमित्र शुंग नायक या खलनायक ?

              कुछ विद्वान  मौर्य वंश के अंत का ठीकरा ब्राह्मणों पर फोड़कर भारत में जातिगत भेदभाव पैदा करने में लगे हुए हैं।
मौर्य डायनेस्टी के अंतिम शासक ब्रहद्रथ को उसके ही सेना पति ने मार कर सत्ता पर अधिकार प्राप्त किया था।
मोनार्की में ऐसी घटनाएं होती रहती हैं। परंतु हम इस  घटना विशेष  पर चर्चा क्यों कर रहे हैं?
श्रोताओं, इसका कारण यह है कि - कुछ लोग भारत में जनता को आपस में उलझा कर अपने राजनैतिक, एवं सामाजिक  दब दबे को कायम करना चाहते हैं ।
ऐसा लगता है कि इन तथा कथित विद्वानों ने, सामाजिक विघटन का संकल्प लिया है।
इन लोगों का दावा है कि -" एक ब्राह्मण व्यक्ति द्वारा मौर्य - साम्राज्य के प्रतापी राजा ब्रहद्रथ की हत्या कर सत्ता पर हासिल की थी ।
ब्रहद्रथ मौर्य वंश से था जो   निचली जाति का थी, इसी कारण   उसकी एक ब्राह्मण ने हत्या कर दी ।
   नव प्राचीन इतिहास से ऐसे उदाहरण देते हुए वामपंथी और प्रगतिशील लेखकों , इतिहास करो तथा नव बौद्ध समूहों  द्वारा ऐसे ही मंतव्य स्थापित हैं। यह कार्य भारत को खंड-खंड करने की कोशिश ही तो है। वर्तमान में तो इसका सीधा रिश्ता जॉर्ज सोरोस तक नजर आ रहा है।
      मित्रों, सच्चाई जानना चाहिए । परंतु अधूरी सच्चाई को कभी सुनना भी नहीं चाहिए।
    आप जानते ही हैं कि पिछड़ी जाति के सम्राट महापद्मनंद  को सत्ता से हटाने के लिए आचार्य चाणक्य ने संकल्प लिया था।
वे  ब्राह्मण जाति के एक शिक्षक ने  ही  राष्ट्रीय हित में  मौर्य वंश  की स्थापना की थी । ऐसी घटनाओं को तथा कथित विद्वान अपने विचार विमर्श में कभी नहीं शामिल करते हैं।
  वास्तव में जर्जर हो रहे मौर्य साम्राज्य के लिए योग्य शासक के शासन की स्थापना मात्र से संबंधित राजनीतिक मामला था  ।
  मौर्य वंश के अंत होने के कारणों  की  निष्पक्ष पड़ताल से पता चलता है कि सेना पति पुष्यमित्र शुंग ने राष्ट्रहित में ब्रहद्रथ की हत्या की थी।
    दिव्यवदान में कुछ भी लिखा हो इसे हू ब हू स्वीकार करना समकालीन परिस्थितियों के अवलोकन के बाद उचित नहीं लगता।
   मेरे विचार से मौर्य वंश के अंतिम राजा को  सत्ता से इस कारण नहीं हटाया गया कि वह दलित था। बल्कि उसे इसलिए हटाया गया क्योंकि वह अपने राज्य के संचालन के दायित्व को निभाने में असफल था।
इसमें कोई दो राय नहीं कि  ब्रहद्रथ बेहद विद्वान और मानवतावादी राजा था।
    उसने स्वयं बुद्ध के निवृत्ति मार्ग को प्रबलता से स्वीकार किया था।
परंतु राजा के और भी धर्म होते हैं। राजा के रूप में राजधर्म का पालन करना राजा की नैतिक जिम्मेदारी होती है।
इस अवधि में  ग्रीक राजा डेमोट्रीयस के मन में मगध की सत्ता  के पर अधिकार जमाने की भावना बलवती हो रही थी ।
    ब्रहद्रथ ने ग्रीक राजा की योजनाओं की जानकारी  को गुप्तचर सूचनाओं से मिलने के बावजूद अनदेखा  किया था।
  जिससे राष्ट्रभक्त सेना पति पुष्यमित्र शुंग ब्रहदत्त से असहमत थे।
   ग्रीक राजा के  षड्यंत्र को रोकने में उदासीनता से दुखी  सेनापति पुष्यमित्र शुंग द्वारा ब्रहदत्त की सरेआम हत्या कर दी थी । इस संबंध में इतिहासकार डॉक्टर एच सी रायचौधरी ने शुंग डायनेस्टी पर स्पष्ट तौर पर  लिखा है कि - "शुंग ने ब्रहद्रथ को धोखे से नहीं बल्कि राष्ट्र हित में जानबूझकर मारा था।"
   
  5 मार्च 2019 को यूट्यूब पर अपलोड वीडियो में यह तथ्य स्पष्ट होता है कि बिना अध्ययन के वामन मेश्राम जी गलत तथ्य प्रस्तुत कर रहे हैं।
सोशल मीडिया एवं युटुब पर ऐसे वीडियो मिल जाएंगे जिसमें वे यह कहते सुने जा सकतें  हैं कि - "पुष्यमित्र शुंग एक क्रूर ब्राह्मण  शासक था   जिसने ब्राह्मण शासन की स्थापना के लिए नीची जाति के मौर्य वंश का समापन किया और पुष्यमित्र शुग ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से अयोध्या में स्थापित कर दी थी।
बृहदत्त एक अति आध्यात्मिक एवं प्रशासनिक रूप से अकर्मण्य शासक था।  जो सीमाओं की रक्षा करने में असफल रहा है।
सेना पति पुष्यमित्र शुंग को तब एक जानकारी प्राप्त हुई थी कि-" बौद्ध मठों में यवन सैनिक भिक्खुओं के वेश में आकर निवास कर रहे हैं। जिनका उद्देश्य,  केवल  भारत में ग्रीक शासन की स्थापना करना है।
  राजा से डेमोट्रीयस की महत्वाकांक्षा के संबंध में  पुष्यमित्र ने चर्चा की तब राजा का यह कहा था कि-" हम वक्त आने पर देखेंगे. अभी कुछ करने की जरूरत नहीं है.!"
  राष्ट्र के प्रति सम्मान रखने वाले सेनापति पुष्यमित्र ने बौद्ध मठों की जांच परख शुरू कराई।
     उन्हें लगभग 300 यवन सैनिक हथियार सहित मठों में मौजूद मिले।

  बौद्ध भिक्षुओं ने शुंग के समक्ष यह स्वीकार किया कि - यवन सैनिकों  ने उन्हें  बौद्ध  बन जाने का आश्वासन दिया था। इस कारण यमन सैनिकों को बौद्ध मठ में हमने आश्रय दिया।
   भिक्षुओं की इस बात से क्रुद्ध होकर पुष्यमित्र शुंग ने समूचे 300 यवन सैनिकों के सर कलम कर दिए और बौद्ध साधुओं को गिरफ्तार करके कैदखाने में डाल दिया।
जो बौद्ध भिक्षु मारे गए थे वे  भिक्षुओं के वेष में वे यूनानी सैनिक ही थे।
    इस बात पर भी राजा बृहदत्त जिसे व्रहद्रथ भी कहा जाता है ने पुष्यमित्र को क्रोध में आकर राज भवन से बाहर निकलना का आदेश दे दिया।
पुष्यमित्र  को यह अपमान  जवानों से मौर्य साम्राज्य की  रक्षा के लिए सहना पड़ा ।
   एक दिन सेना पति पुष्यमित्र और राजा के बीच में राजधानी से बाहर आखेट के दौरान  मुलाकात हुई और इस मुलाकात में कहा सुनी भी हुई। इतिहासकार कहते हैं कि राजा को सबके सामने पुष्यमित्र ने तलवार से चीर दिया
स्वयं को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कर सत्ता पर अधिकार  जमा लिया।
  इतिहासकार कहते हैं कि- ग्रीक योद्धा डोमेट्रियस अपनी बड़ी सेना लेकर भारत पर आक्रमण करना चाहता था ।  
   पुष्यमित्र शुंग ने डोमेट्रियस और उसकी  यूनानी सेना पर अचानक हमला बोलकर वापस भगा दिया गया।
इसके पश्चात  पुष्यमित्र ने अपनी राजधानी , वर्तमान मध्यप्रदेश के विदिशा में स्थापित कर दी।  जिसे तब   भेलसा नगरी के रूप में जाना जाता है।
  पुष्यमित्र शुंग ने दो अश्वमेध यज्ञों का आयोजन किया । ये यज्ञ महान व्याकरण आचार्य पाणिनी के शिष्य महर्षि पतंजलि ने संपन्न  कराए थे।

  पुष्यमित्र शुंग यज्ञ के माध्यम से विदेशियों को भारत से हटाना चाहते थे।   अश्वमेध यज्ञ के दौरान  एक युद्ध में समकालीन अखंड भारत के  पंजाब क्षेत्र में राज्य करने वाले इंडो ग्रीक राजा मिलैण्डर या मिलान्दर का भी अंत हुआ  था।
पुष्यमित्र शुंग के जातिवादी होने का आरोप लगाने वाले लोगों ने फाह्यान के संबंध में कुछ कम पढ़ा है।
    पांचवी शताब्दी में पुष्यमित्र शुंग के बाद चीनी यात्री फाह्यान ने बुद्धिस्म के अस्तित्व पर जो विचार रखे हैं वह आप सब जानते हैं।
फ़ाह्यान  वैशाली में स्थित  हीनयान और महायान संप्रदायों के मठों का जिक्र किया है।
फ़ाह्यान ने अपनी किताब में धर्म आधारित अथवा जाति आधारित संघर्ष का वर्णन नहीं किया है।
फिर भी यदि ऐसे कुछ प्रमाण  कमिटेड विद्वान प्रस्तुत करते हैं तो उनके बौद्धिक श्रम  महत्वपूर्ण हो सकता है।
     राष्ट्र  के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए पुष्यमित्र ने तत्सम कालीन केवल भ्रमित बौद्ध साधुओं को बंदी गृहों में  रखा था.. न कि सभी बौद्ध भिक्षुकों  को किसी भी तरह की यंत्रणा दी गई थी।
साथ ही यह कहना युक्ति संगत हो सकता है कि पुष्यमित्र शुंग ने उन मठों को नेस्तनाबूद किया हो जहां यवन सैनिकों का नियमित आना-जाना रहा है तथा राष्ट्रद्रोह की योजना को मूर्त स्वरूप दिए जाने की कोशिश होती रही होगी। 
अगर पुष्यमित्र शुंग को बौद्ध धम्म समाप्त करना ही होता तो वह अपनी 36 वर्षीय कार्यकाल में ही कर देता।  अपने राष्ट्र  धर्म  को निभाते हुए सांची और भरहुत के स्तूपों  का जीर्णोद्धार  कराया गया तथा पुष्यमित्र शुंग ने  स्तूपों में सुरक्षा की दृष्टि से उनके  इर्द-गर्द चट्टानों की बाउंड्री वाल बनवाईं थीं।
    शुंग वंश के काल में कर्म फल वाद के सिद्धांत को बढ़ावा मिला। निवृत्ति और निर्वाण के सिद्धांत के स्थान पर सनातनी पुरुषार्थ की अवधारणा प्रबल हुई।
शुद्ध मनुस्मृति  भी इसी काल में लिपिबद्ध की गई थी।
   आप सब जानते हैं कि पुष्यमित्र शुंग के पुत्र अग्निमित्र, एवं देवभूति के उपरांत शुंग वंश का अंत हुआ ।
सॉन्ग डायनेस्टी के  मंत्री कण्व ने देवभूति की हत्या कर दी थी ।
पुष्यमित्र शुंग द्वारा वृहद्रथ अर  की हत्या करना तथा पाटिलीपुत्र पर अपना राज्य स्थापित कर देना किसी तरह की जातिगत समीकरण का आधार नहीं है। यह तो  एक राजनीतिक घटनाक्रम है।
ब्रहद्रथ के शासन काल में समूचा भारत आंतरिक कलह और अराजकता का शिकार हो चुका था ।
  पुष्यमित्र शुंग ने संपूर्ण भारत को व्यवस्थित करने के उद्देश्य से कमजोर शासक की हत्या की थी।
आज की प्रजातांत्रिक व्यवस्था में जनता अगर किसी से सहमत नहीं है तो उसे अपने वोट से वंचित कर देती है। और उसे सत्ता से अलग कर देती है।
   शुंग  जन्म से एक ब्राह्मण था,  लेकिन सेना पति था । शुंग के ब्राह्मण होने पर भी विभिन्न मत है। इतिहासकार इस पर एक राय नहीं है। जब यह स्थिति है तो ब्राह्मणों के प्रति दुराग्रह की भावना फैलाने वाले तथा कथित विद्वान ऐसा क्यों कर रहे हैं ? यह गंभीर विचारणीय विषय है।
सनातनी   वर्ण व्यवस्था के अनुसार सामाजिक व्यवस्था के संचालन हेतु रक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाला क्षत्रिय ही होता था । तदनुनुसार पुष्यमित्र शुंग एक क्षत्रिय था।
  वामन मेश्राम भोली भाली जनता को यह समझाते हैं , कि पुष्यमित्र ब्राह्मण था और उसे मौर्य वंश पसंद नहीं था इसलिए उसने एक बौद्ध भिक्षु का सिर लाओ 100 स्वर्ण मुद्राएं पाओ जैसे आदेश जारी किए थे। अगर ऐसा हुआ होता तो शुंग डायनेस्टी के समाप्त होने के बावजूद कई शताब्दी तक बौद्ध धम्म  भारत में फलता फूलता रहा।
वामन मेश्राम कभी भी सांस्कृतिक निरंतरता पर विचार नहीं करते।
न ही वे मुस्लिम आक्रांताओं के बल पूर्वक पथ परिवर्तन के प्रयासों पर भी टिप्पणी नहीं करते। वे मिहिर कुल के मामले में भी शांत है। जिसने बौद्ध धम्म को सबसे ज्यादा क्षति पहुंचाई थी।
वामन मेश्राम जैसे वक्ताओं को विचार अभिव्यक्ति करने से पहले 370  ईस्वी से 515 तक के इतिहास का अध्ययन कर लेना चाहिए, ताकि वे समझ सकें कि-“हूणों का चर्चित राजाधिराज तोरमाण (जिसने वैष्णव सम्प्रदाय को अपनाया) के पुत्र क्रूर पुत्र राजा मिहिरकुल की जानकारी हासिल हो सके जिसने खुले तौर पर बौद्धों का अंत करने का संकल्प लिया था.
यद्यपि इतिहास में हेर फेर करके मनपसंद मंतव्य स्थापित करने वालों की  कलई अब हम जैसे इतिहास के अकिंचन पाठक भी खोलने लगे हैं।
  इस विचार को आपके समक्ष रखने का उद्देश्य “भारत को भारतीय नज़रिए से देखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देना है । हम चाहते हैं कि किसी खास एजेंडे को स्थापित करने वाले नजरिये का समापन हो।

रविवार, मई 02, 2021

बृहदत्त वध

बृहदत्त-वध 
   ईसा के 185 वर्ष पूर्व मगध में
बृहदत्त के शासनकाल में पुष्यमित्र को प्रियदर्शी अशोक के सिद्धांतों पर का गलत तरीके से बनाए गए नियमों एवं उनके क्रियान्वयन पर आपत्ति थी । सेना के लिए पर्याप्त धन कोषागार से ना मिलना उन्हें बहुत अखर जाता था, पुष्यमित्र का विधायक तब भी दिन हो जाता था  जब अनावश्यक रूप से सेना के व्यय से कटौती करके स्वर्ण मुद्राएं मठों को दी जाती थीं। अन्य मंत्रियों को भी अपने-अपने विभाग के कार्य संचालन के लिए यही समस्या बहुधा खड़ी हो जाती थी। परंतु बृहदत्त के समक्ष विरोध करने का किसी में साहस नहीं था। साहस तो मात्र एक व्यक्ति में था , वह था पुष्यमित्र ।
   ब्राम्हण वेद के साथ विधान के साथ सामान्यतः खड़ग नहीं उठाते खडग उठाएं लेकिन जब राष्ट्र के अस्तित्व का प्रश्न उठता है राष्ट्र के अस्तित्व को बचाने के लिए विप्रो को तलवार उठानी पड़ती है । राज निष्ठा और राष्ट्र निष्ठा दो अलग-अलग पहलू है।
   चाणक्य को यह नहीं मालूम था कि भविष्य का कोई ब्रहदत्त किसी विप्र के गुस्से का शिकार होगा ! राष्ट्र के धर्म को बचाने के लिए एक और ब्राम्हण को खडग उठाना होता है । 
     इसका प्रमाण जानने के लिए  आप सांची के स्तूपों पर ध्यान दीजिए ये स्तूप अभी के नहीं है यह बौद्ध स्तूप शुंग वंश के दौर मैं ही संरक्षित किए गए  हैं। मध्यप्रदेश में रहने वाले तथा इस लेख को पढ़ने वाले समझ गए होंगे कि पुष्यमित्र शुंग के बारे में जितना नकारात्मक कहा गया है वह एक तरफा नैरेटिव है। पुष्यमित्र शुंग बृहदत के खिलाफ था ना कि महात्मा बुद्ध की परंपरा के। कुछ ग्रंथों एवं इतिहास में जो भी लिखा हो उससे तनिक दूर हट के इस सवाल का उत्तर दीजिए क्या बौद्ध मठों में यूनान के जासूसों को शरण देना ठीक था..? 
    
पटना को जानते हैं वही जिसे बिहार की राजधानी और प्राचीन काल में पाटलिपुत्र कहते थे ।  मौर्य वंश के महान प्रतापी राजा चंद्रगुप्त मौर्य से लेकर बृहदत्त तक बहुत बड़ी कहानियां लिखी गईं ।  मौर्य वंश के प्रतापी राजाओं की सम्राट अशोक भी थे और बहुत सारे राजा जिन्होंने मगध पर शासन किया और उस वक्त मगध पर शासन अर्थात अखंड भारत का सम्राट हो जाना ही तो था। 16 महाजनपदों में सबसे बलवान समृद्ध और शक्तिमान मगध ही तो था। परंतु यह क्या अचानक नदियों के किनारे से आदित्य स्त्रोत की आवाजें आनी बंद हो गईं। मंदिरों से वेद मंत्रोच्चार ना सुनकर सेनापति पुष्यमित्र के मन में हलचल पैदा हो गई। फिर पुष्यमित्र भूल गए कुछ समय के लिए। तभी एक गुप्तचर ने आकर सूचना दी सेनापति जी आपने पूछा था ना कि आदित्य स्त्रोत भूल रहा हूं नदी के तटों से आवाज नहीं आ रही शिव महिम्न स्त्रोत भी नहीं सुनाई देती है अब इसकी वजह जानना चाहेंगे ?
पुष्यमित्र चकित होकर गुप्तचर को देखते रहे।
  और फिर बोल पड़े हां बताओ क्या वजह है ?
सेनापति जी मठों में यूनान से आए लोग जो आम जनता नहीं है बल्कि गुप्तचर है निवास कर रहे हैं
दीर्घ सांस छोड़ते हुए पुष्यमित्र ने कहा- ठीक तो है महात्मा बुद्ध के संदेश यवनों को कुछ आचरण सिखा देंगे सीखने दो रहने दो. और मठों में उनके निवास करने से शिव महिम्न स्त्रोत और आदित्य स्त्रोत का क्या लेना देना बच्चों जैसी बात कर रहे हैं गुप्तचर आप तो ?
गुप्तचर- नहीं सेनापति जी, आप विषय की गंभीरता से दूर है मैं यह नहीं कह रहा हूं की यूनानी यात्री कहां रुकें कहां ना रुकें ..? परंतु जो स्थिति है वह राष्ट्र की अस्मिता पर हमला होने जा रहा है। यूनानी लोग महाराज बृहदत्त के विरुद्ध वातावरण निर्माण कर रहे हैं।
आप विश्वास करें या ना करें हो सकता है कि मैंने गलत देखा हूं परंतु अगर एक बार आप इसका परीक्षण करा लेते तो बेहतर होता।
    पुष्यमित्र बहुत देर तक अपने महल में बेचैन से घूमते रहे और विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि ये मठ सिहासन के पायदान कमजोर करने की तैयारी में लिप्त हो गए हैं। अचानक पुष्यमित्र कुछ विश्वसनीय लोगों को बुलाते हैं और कई मठों में उन्हें भिक्षुक बना कर भेजते हैं। एक टीम के साथ वे खुद भी जाते हैं। इस बात का खास ध्यान रखा गया कि जिन मठों में यूनानी लोग रुके हैं उनसे ज्यादा से ज्यादा संपर्क में रह जाए। बहुत जल्दी ही कहानी स्पष्ट हो गई और पता चला कि निकट भविष्य में कोई बड़ी सेना यूनान से भारत आएगी और अखंड भारत का यह महत्वपूर्ण महाजनपद उनके दासता में होगा...!
     पुष्यमित्र से रहा न गया वे तुरंत ही बृहदत्त से मिलना चाहते थे। परंतु वे जानते थे कि महाराज समय भोग विलासी शाम के बाहु पास में बंद होंगे। अगले दिन प्रातः काल की संपूर्ण जानकारी के साथ दरबार में पहुंचे तो पता चला कि महाराज आज भी दरबार में नहीं आए और ना ही आएंगे।
   सैनिकों के वेतन पर कटौती एवं सैन्य में कमी का वस्त्र पत्र देखकर सिर से पांव तक क्रोध की अग्नि के संचार का एहसास करते हुए पुष्यमित्र अब रुकने वाले कहां थे। हाथों में खड़ग लिखकर दरबार से सीधे राजमहल की ओर चल पड़े जहां से उन्हें वापस लौटना पड़ा। तीसरे दिवस में राजा सी भेंट हो सकी वह भी दरबार में बहुत इंतजार किया था दरबारियों ने उनके साथ और राजा से मिलते ही पुष्यमित्र ने अपनी समस्या बता दी। परंतु राजा ने ना तो सैनिकों की पगार में कटौती को वापस लिया नाही सैन्य बल में कमी के आदेश को बदलने की कोई पहल की थी। तब भरी सभा में इस बात का रहस्योद्घाटन करना पड़ा कि किसी भी वक्त यूनान की सेना भारत पर आक्रमण कर सकती है। और इस बात के सबूत भी प्रस्तुत किए गए।
बृहदत्त ने अट्टहास करते हुए कहा कि आप अनावश्यक भ्रमित है ऐसा कुछ नहीं हो सकता। हमें लगता है कि आपके मस्तिष्क पर किसी ने वैदिक मंत्रों और ऋचाओं से आक्रमण आप जाएं और बच्चों को जातक कथाओं की जानकारी दें अनावश्यक राष्ट्र की चिंता ना करें।
   खून का घूंट पीकर पुष्यमित्र वापस अपने महल में आए। और फिर अचानक उन्होंने सेना को टुकड़ियों में तैयार रहने को कहा और उन मठों में प्रवेश किया जहां पर यूनानी जासूस मौजूद थे।
लगभग 40 से 50 बंदी बनाए गए साक्ष्य सहित दरबार में जब बंदियों सहित पुष्यमित्र शुंग उपस्थित हुए तब बृहदत्त आक्रोश में आ गए।
  बृहदत्त : पुष्यमित्र आप अपनी सीमाओं को पार कर रहे हैं राजआज्ञा के विरुद्ध आपने राजा की सहमति के बिना यह कार्य किया है यह दंडनीय है।
पुष्यमित्र - मान्यवर हम इस देश के प्रति वफादार हैं
बृहदत्त : और राजा के लिए
पुष्यमित्र : राष्ट्र सर्वोपरि है शायद आप नहीं अगर आप राष्ट्र के विरोध में काम करेंगे तो। राष्ट्रीय जनता से बनता है आप तो बस सेवक हैं मेरी तरह। हे राजन यह किसी भी तरह आपके लिए अपमान कारक कार्य नहीं है जो मैंने किया अपमान तो तब होता जब यूनान की सेना आप को बंदी बना कर ले जाती।
बृहदत्त: सेनापति पुष्यमित्र तुम अपनी हदें पार कर रहे हो। मुझे लगता है राज्य के प्रति तुम्हारी निष्ठा समाप्त प्रतीत होती है। क्यों ना मैं तुम्हें कारागार में डलवा दूं अभी भी वक्त है यूनानी बौद्ध भिक्षुओं को छोड़ दीजिए। यह राजाज्ञा है 
पुष्यमित्र शुंग : महाराज मेरे पास पर्याप्त सबूत है और जनता के प्रति मेरा उत्तरदायित्व है आप भले ही प्रमाद में डूबे रहे परंतु मैंने यह भी जानकारी हासिल कर ली है कि आप केवल एक धर्म सापेक्ष और सेना का अपमान करने वाले राजा सिद्ध हो गए हैं। आपने मठों को अकारण ही बहुत सारा धन दिया है। जनता के श्रम पसीने से श्रेणिकों  के श्रम से अर्जित धन से प्राप्त कराधान राशि का दुरुपयोग किया है।
मान्यवर यह बताएं कि आपने कितने गुरुकुलों को धन दिया है कितने जैन मंदिरों को टूटने से बचाया है कितने वेदाश्रमों को आपने राजाश्रय दिया है। राजन आपका यह एकपक्षीय व्यवहार मगध की जनता को दुखी कर रहा है।
     इतना सुनना था कि बृहदत्त ने म्यान से तलवार निकाली और झपट पड़े पुष्यमित्र शुंग पर आक्रामक होकर। सेनापति पुष्यमित्र शरीर पर तलवार का प्रहार रक्त की एक लकीर दरबार में सबने देखी। और फिर क्या था पुष्यमित्र शुंग के अंतस बैठा परशुराम जाग उठे और आत्मरक्षा के लिए ही नहीं बल्कि मगध की रक्षा के लिए पुष्यमित्र ने गंभीर प्रहार करके विलासी एवं अल्पज्ञ प्रशासन संरक्षक बृहदत्त को समाप्त कर दिया।
     इसके साथ ही शुरू हुआ शुंग वंश का मगध राज। विशुद्ध रूप से ब्राह्मणों का राज परंतु अधिकार किसी के नहीं छीने गए
विदिशा का बौद्ध स्तूप के सुधार कार्य एवं उसके विस्तार के लिए  सबसे पहले राजकोष से राशि आवंटित की गई। और फिर सभी मतों संप्रदायों के साथ वैदिक धर्म के उत्थान के लिए कार्य प्रारंभ हुए।

Ad

यह ब्लॉग खोजें

मिसफिट : हिंदी के श्रेष्ठ ब्लॉगस में