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9.7.21

वामन मेश्राम का भ्रम जाल : राहुल सांकृत्यायन का कमाल...!

     शुंग वंश का शासक पुष्यमित्र शुंग
              185 ईसा पूर्व मौर्य वंश के 
 ब्राह्मण सम्राट पुष्यमित्र शुंग महानायक थे न कि खलनायक

                                    गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”

              185 ईसा पूर्व मौर्य वंश के शासक ब्रहदत्त की प्रशासनिक और कमजोर व्यवस्था बुद्धिस्ट निवृत्ति मार्ग के प्रति अतिशय मोह के कारण तथा ग्रीक राजा डेमोट्रीयस  के षड्यंत्र को ना रोकने की इच्छा के कारण सेनापति पुष्यमित्र शुंग द्वारा ब्रहदत्त की सरेआम हत्या की ना कि धोखे से मारा यह तथ्य डॉक्टर एच सी रायचौधरी ने शुंग डायनेस्टी पर स्पष्ट तौर पर विवरण लिखा है। राहुल सांस्कृत्यायन ने  कल्पना की कि हो सकता है पुष्यमित्र शुंग ही राम के तुल्य माना जाता  हो .  

इससे एक विद्वान बामसेफ के अध्यक्ष वामन मेश्राम ने तुरंत अपनी अभिव्यक्ति में पुष्यमित्र शुंग को अयोध्या का राजा बता दिया। और उन्होंने इसे गलत तरीके से जनता के बीच में प्रस्तुत किया। 5 मार्च 2019 को यूट्यूब पर अपलोड वीडियो में यह तथ्य स्पष्ट होता है बिना अध्ययन के वामन मेश्राम जी गलत तथ्य प्रस्तुत कर रहे हैं।

पुष्यमित्र शुंग के विरुद्ध जो भी इतिहास में दर्शाया गया है उस पर पुनर्विचार करना बहुत जरूरी है वरना वर्तमान समय में नव बौद्ध एवं कथित दलित चिंतक भारतीय सामाजिक संरचना को विघटित  करने में सर्वोपरि होंगे।

वर्तमान में आपको वामन मेश्राम के कुछ ऐसे वीडियो मिल जाएंगे जिसमें वे यह कहते सुने जाते हैं कि पुष्यमित्र शुंग एक क्रूर शासक था जिसने ब्राह्मण शासन की स्थापना के लिए नीची जाति के मौर्य वंश का समापन किया और पुष्यमित्र शुग ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से अयोध्या स्थानांतरित कर दी और उनकी तुलना मर्यादा पुरुषोत्तम राम से  कर दी है। यह पूरी तरह से काल्पनिक और वोल्गा के से गंगा तक के लेखक राहुल सांकृत्यायन की एक परिकल्पना है जो उन्होंने अपनी कृति के प्रभा कथानक में कुछ इस तरह वर्णित किया है .  (देखें प्रभा कथाक्रम 11 समय अवधि 50 ईसवी पेपरबैक संस्करण वोल्गा से गंगा तक पृष्ठ क्रमांक 161 पैराग्राफ दो)

    “इसमें तो कोई शक नहीं कि अश्वघोष में बाल्मीकि के मधुर काव्य का रसास्वादन किया। कोई ताज्जुब नहीं कि यदि बाल्मीकि शुंग वंश के आश्रित कवि रहे होजैसे कालिदास चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के और शुंगवंश की राजधानी की महिमा बढ़ाने के लिए उन्होंने  दशरथ की राजधानी वाराणसी से बदलकर साकेत या अयोध्या कर दी और राम के रूप में सम्राट पुष्यमित्र या अग्निमित्र की प्रशंसा की- वैसे ही जैसे कालिदास ने रघुवंश में रघु और कुमारसंभव के कुमार के नाम से पिता पुत्र चंद्रगुप्त विक्रमादित्य और कुमारगुप्त की।

एक जिम्मेदार लेखक जो गली गली भटका हो और जानकारियां एकत्र की है की कलम यह क्या लिख रही है समझ से परे है। वैसे तो यह एक कयास मात्र है लेकिन इस स्टेटमेंट से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि-" भारत के साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन ने ना तो भारतीय इतिहास के साथ ईमानदारी बरती और ना ही साहित्य के प्रति ईमानदार रहे हैं और उन्होंने एक ऐसा वक्तव्य जारी कर दिया जिस का दुरुपयोग वामन मेश्राम जैसे अध्ययन हीन अनाड़ी व्यक्ति ने करना प्रारंभ कर दिया इसकी पुष्टि आप यूट्यूब पर 5 मार्च 2019 को अपलोड किए गए वीडियो पर कर सकते हैं।

हर प्राचीन लिखा हुआ सत्य हो ऐसा कैसे हो सकता। बिना पुष्टि किए हुए जातियों का ध्रुवीकरण करने के उद्देश्य से वामन मेश्राम में एक त्रुटि पूर्ण वक्तव्य दिया है . ऐसा नहीं है कि यह वक्तव्य केवल एक बार दिया गया है उनके कई सारे ऐसे वीडियो हैं जिनमें उन्होंने यह भ्रामक जानकारी प्रसारित की है।ईसा के सौ पचासी वर्ष पूर्व यवन भारत पर आक्रमण करने के लिए आमादा थे जिसका प्रमुख कारण था मौर्य डायनेस्टी का कमजोर पड़ जाना।

बृहदत्त एक ऐसा अकर्मण्य शासक था जो सीमाओं की रक्षा करने में असफल रहा है। सेनापति पुष्यमित्र शुंग को तब एक जानकारी प्राप्त हुई थी कि-" बौद्ध मठों में यवन सैनिक भिक्खुओं के वेश में आकर निवास कर रहे हैं। और उनका उद्देश्य केवल और केवल भारत में ग्रीक शासन की स्थापना करना है। जब राजा से इस संदर्भ में पुष्यमित्र ने चर्चा की तब राजा का यह कथन था कि-" हम वक्त आने पर देखेंगे..!"

फिर भी पुष्यमित्र ने बौद्ध मठों की जांच परख शुरू कराई। उन्हें लगभग 300 यवन सैनिक हथियार सहित मठों में मौजूद मिले। बौद्ध साधु ने यह स्वीकारा कि जब उन्होंने उन्हें बुद्धिस्ट बन जाने का आश्वासन दिया था। इस बात से क्रुद्ध होकर पुष्यमित्र शुंग ने समूचे 300 यवन सैनिकों के सर कलम कर दिए और बुद्ध साधुओं को गिरफ्तार करके कह कर दिया। इस बात पर भी राजा बृहदत्त जिसे व्रहद्रथ भी कहा जाता है ने पुष्यमित्र को क्रोध में आकर राज भवन से बाहर जाने के लिए कह दिया। पुष्यमित्र  को यह अपमान  राष्ट्र की रक्षा के लिए सहना पड़ा ।

एक दिन सेनापति पुष्यमित्र और राजा के बीच में राजभवन से बाहर कहीं मुलाकात हुई और इस मुलाकात में कहासुनी भी हुई। इतिहासकार कहते हैं कि राजा को सबके सामने पुष्यमित्र ने तलवार से चीर दिया। स्वयं को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित करते हुए पुष्यमित्र ने सत्ता पर अपना अधिकार उद्घोषक किया। इतिहासकार कहते हैं कि- ग्रीक योद्धा डोमेट्रियन अपनी बड़ी सेना लेकर भारत पर आक्रमण करना चाहता था । पुष्यमित्र शुंग ने डोमेट्रियन और उसकी सेना को जो अब ज्यादा उत्साह से सिंधु नदी के तट तैयार थी पर हमला बोलकर वापस भगा दिया गया।

फिर पुष्यमित्र ने अपनी राजधानी वर्तमान मध्यप्रदेश के विदिशा में स्थापित कर दी जिसे एक तत्सम कालीन भेलसा नगरी के रूप में जाना जाता है।

पुष्यमित्र शुंग ने दो अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया ये यज्ञ पाणिनी के शिष्य महर्षि पतंजलि ने संपादित कराए। और यज्ञ के दौरान एक युद्ध में पंजाब में राज्य करने वाले इंडो ग्रीक राजा मिलैण्डर या मिलान्दर का भी अंत हुआ।

भारतीय संस्कृति एवं सनातन धर्म के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए पुष्यमित्र ने तत्सम कालीन भ्रमित बौद्ध साधुओं को जेल में रखा। और उन मठों को नेस्तनाबूद किया जहां यवन सैनिकों का नियमित आना-जाना रहा है तथा राष्ट्रद्रोह की योजना को मूर्त स्वरूप दिए जाने की कोशिश होती रही है। 

यह सत्य है कि अपने 36 वर्षीय शासनकाल में पुष्यमित्र के पास इतनी शक्ति थी कि वह भारत भूमि से बुद्धिस्ट का समापन कर देता परंतु सांची के स्तूप इस बात की गवाही देते हैं कि उन स्तूपों में सुरक्षा की दृष्टि से स्तूप के इर्द-गर्द चट्टानों की बाउंड्री बनाई गई और यह बाउंड्री शुंग वंश के काल में ही बनी है।

शुंग-वंश के कार्यकाल में की सामाजिक व्यवस्था
शुंग वंश के काल में कर्म वाद के सिद्धांत को बढ़ावा मिला। निवृत्ति और निर्वाण के सिद्धांत के स्थान पर सनातनी पुरुषार्थ की अवधारणा प्रबल हुई। मनु स्मृति का लिपिबद्ध करण इसी युग में करने की स्थिति का वर्णन ग्रंथों एवं लब्ध जानकारियों में मिलता है।

आप सब जानते हैं के पुष्यमित्र शुंग के पुत्र क्रमष: अग्निमित्र, एवं देवभूति के उपरांत शुंग वंश का अंत हुआ। शुंग वंश ने केवल उन्हीं राजाओं को अपने अधीन किया या उन्हें सत्ता से अलग कर दिया जो ऐसे बुद्धिस्ट राजा थे जिन्हें जनता और विकास की बातें ना तो समझ में आती थी और ना ही वे बुद्ध धर्म के अत्यधिक प्रभाव में आकर प्रशासनिक कल्याणकारी कार्यों को निष्पादित नहीं कर पा रहे थे।

पुष्यमित्र शुंग द्वारा वृहद्रथ या बृहदत्त की हत्या करना तथा पाटिलीपुत्र पर अपना राज्य स्थापित कर देना किसी तरह की जातिगत समीकरण का आधार नहीं है।

वह ब्राह्मण था लेकिन वह सेनापति होने के नाते क्षत्रिय था। वामन मेश्राम विश्व अमन करते हुए भोली भाली जनता को यह समझाते हैं के पुष्यमित्र ब्राह्मण था और उसे मौर्य वंश पसंद नहीं था इसलिए उसने एक बौद्ध भिक्षु का सिर लाओ 100 स्वर्ण मुद्राएं पाओ जैसे आदेश जारी किए थे। अब वर्तमान परिस्थिति में आप ही निर्णय लेने की राष्ट्रद्रोह की सजा क्या होनी चाहिए..?

वामन मेश्राम जैसे वक्ताओं को विचार अभिव्यक्ति करने के पूर्व 370  ईस्वी से 515 तक के इतिहास का अध्ययन कर लेना चाहिए, ताकि वे समझ सकें कि-“हूणों का चर्चित राजाधिराज तोरमाण (जिसने वैष्णव सम्प्रदाय को अपनाया) के पुत्र क्रूर पुत्र राजा मिहिरकुल की जानकारी हासिल हो सके जिसने खुले तौर पर बौद्धों का अंत करने का संकल्प लिया था.

यद्यपि इतिहास को तोड़मरोड़ कर प्रस्तुत करने वालों की कलई अब हम जैसे इतिहास के अकिंचन पाठक भी करने लगें हैं. इस आलेख का आलेखन आम भारतीयों को “भारत को भारतीय नज़रिए से देखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देना है न कि रोमिला थापर, इरफान हबीव जैसे इतिहासकारों के ऐनक से ...!”


    

  

 

    

2.5.21

बृहदत्त वध

बृहदत्त-वध 
   ईसा के 185 वर्ष पूर्व मगध में
बृहदत्त के शासनकाल में पुष्यमित्र को प्रियदर्शी अशोक के सिद्धांतों पर का गलत तरीके से बनाए गए नियमों एवं उनके क्रियान्वयन पर आपत्ति थी । सेना के लिए पर्याप्त धन कोषागार से ना मिलना उन्हें बहुत अखर जाता था, पुष्यमित्र का विधायक तब भी दिन हो जाता था  जब अनावश्यक रूप से सेना के व्यय से कटौती करके स्वर्ण मुद्राएं मठों को दी जाती थीं। अन्य मंत्रियों को भी अपने-अपने विभाग के कार्य संचालन के लिए यही समस्या बहुधा खड़ी हो जाती थी। परंतु बृहदत्त के समक्ष विरोध करने का किसी में साहस नहीं था। साहस तो मात्र एक व्यक्ति में था , वह था पुष्यमित्र ।
   ब्राम्हण वेद के साथ विधान के साथ सामान्यतः खड़ग नहीं उठाते खडग उठाएं लेकिन जब राष्ट्र के अस्तित्व का प्रश्न उठता है राष्ट्र के अस्तित्व को बचाने के लिए विप्रो को तलवार उठानी पड़ती है । राज निष्ठा और राष्ट्र निष्ठा दो अलग-अलग पहलू है।
   चाणक्य को यह नहीं मालूम था कि भविष्य का कोई ब्रहदत्त किसी विप्र के गुस्से का शिकार होगा ! राष्ट्र के धर्म को बचाने के लिए एक और ब्राम्हण को खडग उठाना होता है । 
     इसका प्रमाण जानने के लिए  आप सांची के स्तूपों पर ध्यान दीजिए ये स्तूप अभी के नहीं है यह बौद्ध स्तूप शुंग वंश के दौर मैं ही संरक्षित किए गए  हैं। मध्यप्रदेश में रहने वाले तथा इस लेख को पढ़ने वाले समझ गए होंगे कि पुष्यमित्र शुंग के बारे में जितना नकारात्मक कहा गया है वह एक तरफा नैरेटिव है। पुष्यमित्र शुंग बृहदत के खिलाफ था ना कि महात्मा बुद्ध की परंपरा के। कुछ ग्रंथों एवं इतिहास में जो भी लिखा हो उससे तनिक दूर हट के इस सवाल का उत्तर दीजिए क्या बौद्ध मठों में यूनान के जासूसों को शरण देना ठीक था..? 
    
पटना को जानते हैं वही जिसे बिहार की राजधानी और प्राचीन काल में पाटलिपुत्र कहते थे ।  मौर्य वंश के महान प्रतापी राजा चंद्रगुप्त मौर्य से लेकर बृहदत्त तक बहुत बड़ी कहानियां लिखी गईं ।  मौर्य वंश के प्रतापी राजाओं की सम्राट अशोक भी थे और बहुत सारे राजा जिन्होंने मगध पर शासन किया और उस वक्त मगध पर शासन अर्थात अखंड भारत का सम्राट हो जाना ही तो था। 16 महाजनपदों में सबसे बलवान समृद्ध और शक्तिमान मगध ही तो था। परंतु यह क्या अचानक नदियों के किनारे से आदित्य स्त्रोत की आवाजें आनी बंद हो गईं। मंदिरों से वेद मंत्रोच्चार ना सुनकर सेनापति पुष्यमित्र के मन में हलचल पैदा हो गई। फिर पुष्यमित्र भूल गए कुछ समय के लिए। तभी एक गुप्तचर ने आकर सूचना दी सेनापति जी आपने पूछा था ना कि आदित्य स्त्रोत भूल रहा हूं नदी के तटों से आवाज नहीं आ रही शिव महिम्न स्त्रोत भी नहीं सुनाई देती है अब इसकी वजह जानना चाहेंगे ?
पुष्यमित्र चकित होकर गुप्तचर को देखते रहे।
  और फिर बोल पड़े हां बताओ क्या वजह है ?
सेनापति जी मठों में यूनान से आए लोग जो आम जनता नहीं है बल्कि गुप्तचर है निवास कर रहे हैं
दीर्घ सांस छोड़ते हुए पुष्यमित्र ने कहा- ठीक तो है महात्मा बुद्ध के संदेश यवनों को कुछ आचरण सिखा देंगे सीखने दो रहने दो. और मठों में उनके निवास करने से शिव महिम्न स्त्रोत और आदित्य स्त्रोत का क्या लेना देना बच्चों जैसी बात कर रहे हैं गुप्तचर आप तो ?
गुप्तचर- नहीं सेनापति जी, आप विषय की गंभीरता से दूर है मैं यह नहीं कह रहा हूं की यूनानी यात्री कहां रुकें कहां ना रुकें ..? परंतु जो स्थिति है वह राष्ट्र की अस्मिता पर हमला होने जा रहा है। यूनानी लोग महाराज बृहदत्त के विरुद्ध वातावरण निर्माण कर रहे हैं।
आप विश्वास करें या ना करें हो सकता है कि मैंने गलत देखा हूं परंतु अगर एक बार आप इसका परीक्षण करा लेते तो बेहतर होता।
    पुष्यमित्र बहुत देर तक अपने महल में बेचैन से घूमते रहे और विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि ये मठ सिहासन के पायदान कमजोर करने की तैयारी में लिप्त हो गए हैं। अचानक पुष्यमित्र कुछ विश्वसनीय लोगों को बुलाते हैं और कई मठों में उन्हें भिक्षुक बना कर भेजते हैं। एक टीम के साथ वे खुद भी जाते हैं। इस बात का खास ध्यान रखा गया कि जिन मठों में यूनानी लोग रुके हैं उनसे ज्यादा से ज्यादा संपर्क में रह जाए। बहुत जल्दी ही कहानी स्पष्ट हो गई और पता चला कि निकट भविष्य में कोई बड़ी सेना यूनान से भारत आएगी और अखंड भारत का यह महत्वपूर्ण महाजनपद उनके दासता में होगा...!
     पुष्यमित्र से रहा न गया वे तुरंत ही बृहदत्त से मिलना चाहते थे। परंतु वे जानते थे कि महाराज समय भोग विलासी शाम के बाहु पास में बंद होंगे। अगले दिन प्रातः काल की संपूर्ण जानकारी के साथ दरबार में पहुंचे तो पता चला कि महाराज आज भी दरबार में नहीं आए और ना ही आएंगे।
   सैनिकों के वेतन पर कटौती एवं सैन्य में कमी का वस्त्र पत्र देखकर सिर से पांव तक क्रोध की अग्नि के संचार का एहसास करते हुए पुष्यमित्र अब रुकने वाले कहां थे। हाथों में खड़ग लिखकर दरबार से सीधे राजमहल की ओर चल पड़े जहां से उन्हें वापस लौटना पड़ा। तीसरे दिवस में राजा सी भेंट हो सकी वह भी दरबार में बहुत इंतजार किया था दरबारियों ने उनके साथ और राजा से मिलते ही पुष्यमित्र ने अपनी समस्या बता दी। परंतु राजा ने ना तो सैनिकों की पगार में कटौती को वापस लिया नाही सैन्य बल में कमी के आदेश को बदलने की कोई पहल की थी। तब भरी सभा में इस बात का रहस्योद्घाटन करना पड़ा कि किसी भी वक्त यूनान की सेना भारत पर आक्रमण कर सकती है। और इस बात के सबूत भी प्रस्तुत किए गए।
बृहदत्त ने अट्टहास करते हुए कहा कि आप अनावश्यक भ्रमित है ऐसा कुछ नहीं हो सकता। हमें लगता है कि आपके मस्तिष्क पर किसी ने वैदिक मंत्रों और ऋचाओं से आक्रमण आप जाएं और बच्चों को जातक कथाओं की जानकारी दें अनावश्यक राष्ट्र की चिंता ना करें।
   खून का घूंट पीकर पुष्यमित्र वापस अपने महल में आए। और फिर अचानक उन्होंने सेना को टुकड़ियों में तैयार रहने को कहा और उन मठों में प्रवेश किया जहां पर यूनानी जासूस मौजूद थे।
लगभग 40 से 50 बंदी बनाए गए साक्ष्य सहित दरबार में जब बंदियों सहित पुष्यमित्र शुंग उपस्थित हुए तब बृहदत्त आक्रोश में आ गए।
  बृहदत्त : पुष्यमित्र आप अपनी सीमाओं को पार कर रहे हैं राजआज्ञा के विरुद्ध आपने राजा की सहमति के बिना यह कार्य किया है यह दंडनीय है।
पुष्यमित्र - मान्यवर हम इस देश के प्रति वफादार हैं
बृहदत्त : और राजा के लिए
पुष्यमित्र : राष्ट्र सर्वोपरि है शायद आप नहीं अगर आप राष्ट्र के विरोध में काम करेंगे तो। राष्ट्रीय जनता से बनता है आप तो बस सेवक हैं मेरी तरह। हे राजन यह किसी भी तरह आपके लिए अपमान कारक कार्य नहीं है जो मैंने किया अपमान तो तब होता जब यूनान की सेना आप को बंदी बना कर ले जाती।
बृहदत्त: सेनापति पुष्यमित्र तुम अपनी हदें पार कर रहे हो। मुझे लगता है राज्य के प्रति तुम्हारी निष्ठा समाप्त प्रतीत होती है। क्यों ना मैं तुम्हें कारागार में डलवा दूं अभी भी वक्त है यूनानी बौद्ध भिक्षुओं को छोड़ दीजिए। यह राजाज्ञा है 
पुष्यमित्र शुंग : महाराज मेरे पास पर्याप्त सबूत है और जनता के प्रति मेरा उत्तरदायित्व है आप भले ही प्रमाद में डूबे रहे परंतु मैंने यह भी जानकारी हासिल कर ली है कि आप केवल एक धर्म सापेक्ष और सेना का अपमान करने वाले राजा सिद्ध हो गए हैं। आपने मठों को अकारण ही बहुत सारा धन दिया है। जनता के श्रम पसीने से श्रेणिकों  के श्रम से अर्जित धन से प्राप्त कराधान राशि का दुरुपयोग किया है।
मान्यवर यह बताएं कि आपने कितने गुरुकुलों को धन दिया है कितने जैन मंदिरों को टूटने से बचाया है कितने वेदाश्रमों को आपने राजाश्रय दिया है। राजन आपका यह एकपक्षीय व्यवहार मगध की जनता को दुखी कर रहा है।
     इतना सुनना था कि बृहदत्त ने म्यान से तलवार निकाली और झपट पड़े पुष्यमित्र शुंग पर आक्रामक होकर। सेनापति पुष्यमित्र शरीर पर तलवार का प्रहार रक्त की एक लकीर दरबार में सबने देखी। और फिर क्या था पुष्यमित्र शुंग के अंतस बैठा परशुराम जाग उठे और आत्मरक्षा के लिए ही नहीं बल्कि मगध की रक्षा के लिए पुष्यमित्र ने गंभीर प्रहार करके विलासी एवं अल्पज्ञ प्रशासन संरक्षक बृहदत्त को समाप्त कर दिया।
     इसके साथ ही शुरू हुआ शुंग वंश का मगध राज। विशुद्ध रूप से ब्राह्मणों का राज परंतु अधिकार किसी के नहीं छीने गए
विदिशा का बौद्ध स्तूप के सुधार कार्य एवं उसके विस्तार के लिए  सबसे पहले राजकोष से राशि आवंटित की गई। और फिर सभी मतों संप्रदायों के साथ वैदिक धर्म के उत्थान के लिए कार्य प्रारंभ हुए।

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