जिसके बाबूजी वृद्धाश्रम में.. है सबसे बेईमान वही.
बरगद पीपल नीम सरीखे , तेज़ धूप में बाबूजी “ मां ” के बाद नज़र आते हैं , “ मां ” ही जैसे बाबूजी ..!! अल्ल सुबह सबसे पहले , जागे होते बाबूजी- पौधों से बातें करते पाए जाते बाबूजी ...! ! अखबारों में जाने क्या बांचा करते रहते हैं दुनिया भर की बातों से जुड़े हुए हैं बाबूजी ..!! साल चौरासी बीत गए जाने क्या क्या देखा है बातचीत न कर पाएं हम घबरा जाते बाबूजी..!! जाने कितनी पीढ़ा भोगी होगी जीवन में उसे भूल अक्सर मित्रों संग मुस्काते हैं बाबूजी ..!! चौकस रहती आंखें उनकी , किसने क्या क्या की गलती पहले डांटा करते थे वे , अब समझाते हैं बाबूजी...!! दौर पुराना याद है उनको, सैतालिस की रातों का देश हुआ आज़ाद जिस दिन, वो पल था सौगातों का उपरैनगंज की कुलियों में हो खुश घूमे हैं बाबूजी ... खेल कबड्डी हाकी कुश्ती, चैस वैस सब उनके थे – शिब्बू दादा बोले भैया- बहुत तेज़ थे बाबूजी . आज़ साथ हैं हम सबके वो हम सब का धन मान वही जिसके बाबूजी वृद्धाश्रम में.. है सबसे बेईमान वही. लेकर आओ, झटपट आके पूजो पिता प्रभू ही हैं समझा