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9.11.21

Freedom movement intensified in Balochistan.

क्या पाकिस्तान फिर टूटेगा ?
            विगत कुछ दिनों में 18 बलूच स्टूडेंट्स को जबरिया हॉस्टल से उठा कर ले हथियारों से लैस लोग अपहरण करके ले गए । घर से जबरन उठाना सिंध और बलूचिस्तान के नागरिकों लिए कोई नई बात नहीं है। नादिर बलूच बताते हैं कि- यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट और वाइस प्रेसिडेंट को अगवा करके ले जाया गया जिनका अब तक कोई अता पता नहीं है। अपहृत युवाओं एवं आंदोलनकारियों की हत्या भी कर दी जाती है और  हत्या के बाद शव को क्षत-विक्षत हालत में वीरान जगहों पर फेंक दिया जाता है। ऐसी क्रूरता लगभग 20 वर्षों से जारी होने की जानकारी ट्विटर स्पेस के जरिए इन दिनों आम होने लगी। इसी गुमशुदगी के विरोध में बलूचिस्तान यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स  एक दिनी स्ट्राइक की घोषणा की है। यह स्ट्राइक  8 नवंबर 2021 से प्रारंभ करने जा रहे हैं । आंदोलनकारियों का कहना है कि बलूचिस्तान के स्टूडेंट्स को यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर और पाकिस्तानी इंतजामियां के द्वारा उनके हॉस्टल से लगभग अपहृत किया जा रहा है। मानव अधिकार का घोर उल्लंघन करते हुए बलूचिस्तान में रियाज बलोच के अनुसार अब तक सैकड़ों लोगों को बिना किसी वैधानिक कार्रवाई के हिरासत में लेकर लापता कर दिया जाता है। बलूचिस्तान के मेंबर ऑफ पार्लियामेंट मेंबर ऑफ लेजिसलेटिव असेंबली तथा मुख्यमंत्री की भूमिका पर भी अब तो उस सवाल उठने लगे हैं। परंतु आई एस आई एवं पाकिस्तानी आर्मी का मानव अधिकार हनन का एजेंडा लगातार जारी है।
स्पेस पर मुखर होते बलूच नागरिक अब तो खुलेआम सरकार के कर्तव्यों और अपने अधिकारों की आवाज उठाते हैं। यह एक प्रतीकात्मक घटना है वास्तव में सिंध और बलूचिस्तान दोनों ही किसी भी हालत में पाकिस्तान के साथ रहना पसंद नहीं कर रहे है, और यही है पाकिस्तान के भविष्य में होने वाली विघटन का आधार। बलूचिस्तान तथा सिंधुदेश के नागरिक मूलभूत सुविधाओं के अभाव में घबराए हुए हैं।
    पिछले दिनों टि्वटर स्पेस में अपनी तकरीर करते हुए एक बलूच एक्टिविस्ट ने बताया था कि- जो नौजवान शादी करने जा रहा था उसे तक शादी की रस्म पूरी नहीं करने दी गई। और उसे लापता कर दिया गया। ऐसा नहीं है कि इस मामले में यूनाइटेड नेशन के सामने मानव अधिकार से संबंधित याचिकाएं प्रस्तुत नहीं की गई परंतु यूनाइटेड नेशन द्वारा इस पर बहुत तेजी से काम करने की जरूरत है।
    बलूचिस्तान लिबरेशन मूवमेंट के अधिकांश एक्टिविस्ट इन दिनों बलूचिस्तान से बाहर अमेरिका यूके तथा अन्य यूरोपीयन देशों में रहकर यथासंभव मदद कर रहे हैं परंतु पाकिस्तान आर्मी मानव अधिकार की सबसे बड़ी बाधा सिद्ध होती जा रही है। यदि हम बात करें कि अब तक कितने आंदोलन बलूचिस्तान में किए गए तो हम देखते हैं कि
• प्रथम संघर्ष (१९४७-१९५५)
• द्वितीय संघर्ष (१९५८-५९)
• तृतीय संघर्ष (१९६० के दशक में)
• चतुर्थ संघर्ष (१९७३-७७)
• पंचम संघर्ष (२००४ से २०१२ तक)
• षष्ट संघर्ष (२०१२ से अब तक)
         भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने वाला पाकिस्तान इन दिनों आर्थिक तनाव सामाजिक अस्थिरता के साथ-साथ नागरिक जीवन समंक सिटीजन लाइफ इंडेक्स के मामले में नकारात्मक स्थिति निर्मित कर रहा है।
•     वर्तमान में रोज आजादी की हिमायत करने वाले राष्ट्रों में  इराक, इजराइल, सोवियत संघ,अमेरिका  एवं भारत का नाम भी शुमार होता है (विकीपीडिया के अनुसार)। 
  सभी राष्ट्र उनकी मांगों को जायज स्वीकारते हैं तथा उन पर होने वाले जोर जुल्म के खिलाफ अपनी बात रखते हैं। परंतु विगत कई वर्षों से इस संबंध में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा ना के बराबर ही हुई है। बेशक उसका कारण जियो पोलिटिकल सिचुएशन और कोविड-19 की भयावह स्थिति भी हो सकती है इससे इनकार नहीं किया जा सकता।
   मित्रों पाकिस्तान के आजादी के उत्सव में बलूच और सिंधुदेश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मानसिक और भौतिक रूप से उपस्थित नहीं रहते। इन दोनों स्वतंत्रता की पक्षधर राज्य इन दिनों सोशल मीडिया पर तेजी से सक्रिय हुए हैं। लेकिन कोई भी आंदोलन केवल सोशल मीडिया के जरिए सफल नहीं हो सकता । आंदोलनकारियों को सुभाष चंद्र बोस की तरह अपनी रणनीति बनानी होगी तब वह किसी हालत में पाकिस्तान की वर्तमान आर्थिक अव्यवस्था सामाजिक प्रतिकूलता एवं अपनी राष्ट्रवादी आस्थाओं के साथ आगे बढ़ सकते हैं। ट्विटर पर आज स्पेस में पता चला कि स्टूडेंट्स का हड़ताल वाला आव्हान वर्तमान में लापता 15 स्टूडेंट्स की रिहाई की घोषणा तक चल सकता है और इस पर भी प्रो आर्मी पाकिस्तानी डेमोक्रेटिक सिस्टम ने अगर उन्हें रिलीज नहीं किया तो वह पूरी यूनिवर्सिटी को लगातार बंद रख सकते हैं।
     एफएटीएफ द्वारा लगे प्रतिबंधों में अगर मानव अधिकार को भी शामिल किया जाए तो पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से मुक्ति तो नहीं मिल सकती बल्कि उन्हें ब्लैक लिस्ट में भी जाना पड़ सकता है। भारत में संप्रदाय विशेष के लिए गाहे-बगाहे प्रश्न उठाने वाले पाकिस्तान के शीर्ष नेतृत्व एवं उनके कैबिनेट के लोग आत्म निरीक्षण कर कम से कम मानव अधिकारों के संबंध में ना तो गंभीर है और ना ही संवेदित नजर आते हैं ।
    वर्तमान परिस्थितियों को पर गौर करें तो पाकिस्तान की स्थिति 1971 वाली स्थिति हो सकती है इसमें कोई दो राय नहीं। यह पाकिस्तान की प्रो मिलिट्री डेमोक्रेसी आई एस आई और मिलिट्री स्वयं भी जानती है ।
गिरीश बिल्लोरे मुकुल

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