मूंछ्मुंडन क्रिया का दार्शनिक पक्ष
जागरण से साभार * गिरीश बिल्लोरे”मुकुल” मुहल्ले वाले नत्थू लाल जी के घर से निकले एक व्यक्ति को हम घूर घूर के देखे जा रये थे पर समझ न पाए कि कौन हैं.. दिमाग पे ज़ोर जबरिया पिल पड़े कि भाई दिमाग याद दिला याद दिला तब भी याद न आया तो हमने भी हार न मानी हम समझे कदाचित मैन्यूफ़ेक्चरिंग डिफ़ेक्ट की वज़ह से से हमारा दिमाग घुटने पे न आ गया होगा सो अपना घुटना खुजा खुजा खूना खच्चर कर लिया पर याद न दिलाया कि नत्थू भाई के घर से निकला व्यक्ति कौन है. पर हमारा दिमाग भी अजीब था सामान्यत: घुटने तक जाता था पर अब किधर खो गया राम जाने ? पर बार बार मन कहे जा रहा था- “ यार , तुमने इसे कहीं देखा है. . ? पर दिमाग ने एक न सुनी न ही बताया कि नत्थूलाल के घर से निकला व्यक्ति कौन है. ? सोच ही रहा था कि व्यक्ति नज़दीक आया तब जाके समझ आया कि ये तो अपने नत्थूलाल जी हैं. बेवज़ह दिमाग को कोसा. जित्ता है कभी काम आता मुझे डर है कि कहीं मेरा दिमाग अब मुझस