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6.2.21

किसान आंदोलन का आयतन

चिंता मत कीजिए किसान आंदोलन को लेकर । हठ का अर्थ क्या होता है यह आप बेहतर तरीके से समझ सकते हैं, शायद अब तक समझ भी चुके होंगे। अगर आप आंदोलन के स्तर की ओर जाएं तो आप पाएंगे की प्रारंभिक दिनों में यह आंदोलन कैनेडियन सपोर्ट से चलता रहा। 
इससे इंकार इसलिए कोई नहीं कर सकता क्योंकि 26 जनवरी तक उन्होंनेे जो तथा वह उनकी द्वारा कर लिया गया। तिरंगे के साथ  पंथ का झंडा लगाकर  सरकार को कुछ ऐसा करने आंदोलनकारियों के मुख्य रणनीतिकार का मुख्य उद्देश्य था कि - भारत सरकार ऐसा कोई कठोर कदम उठा ले जोो गणतंत्र के लिए एक धब्बा बन जाए और उसे ना केवल भारतीय बल्कि विश्व स्तर पर प्रचारित किया जा सके। 
लेेेेकिन उस दिन अर्थात 26 जनवरी 2021 को दिल्ली पुलिस के जवानों ने अद्भुत धैर्य रखा और अपने आप को चोटिल भी करवा लिया  लेकिन  प्रतिक्रिया स्वरूप  कोई भी ऐसी कार्यवाही नहीं की जिससे कि रणनीतिकार सफल हो जाएं।
  अंततोगत्वा स्थिति यह बनी की अब किस तरह की टूल का इस्तेमाल किया जाए?
मेरी राय में आप उस दृश्य की कल्पना कीजिए जो वीडियो के रूप में मौजूद है। एक इनोसेंट आंदोलन कर्ता ने तिरंगा उस जवान को दिया जो खंंबेे हुआ था  । 
और उसने  बेरहमी  और बेइज्जती से भारतीय  तिरंगे को  तथा फिर निशान साहिब का पवित्र ध्वज फहरा दिया । 
  चिंतन कीजिए कि 26 जनवरी वाली भीड़ में निसंदेह खालिस्तान समर्थक मौजूद थे। ऑस्ट्रेलिया कनाडा से भारत आए थे हो सकता है कि वह अभी भी अर्थात 6 फरवरी तक आंदोलन में अप्रत्यक्ष रूप से भागीदार हैं। मित्रों इस पर चिंतन कीजिए और तय कीजिए कि अब आप क्या सोचते हैं ?
यह सर्वथा  हठधर्मिता है। जिस तरह से आंदोलन के साथ अनुषांगिक घटनाएं हो रही हैं  उससे जो संदेश निकल कर आ रहा है कि देश में तोड़फोड़ की राजनीति आंदोलनकारियों को संवाद हीनता के मार्ग पर ले जा रही है । और इस बात को शेष भारतीय जनता समझ चुकी है। 
      लगातार मैंने इस प्रश्न को लेकर मित्रों से संवाद कर रहा हूं  कि अधिनियम में कौन सी ऐसी कमी है जिस पर आंदोलन इतना लंबा खींचा जा सकता है। मित्रों का मानना है कि-  मासूमियत का आधिक्य और पैसों की उपलब्धता इस आंदोलन को लंबा बना रही है ताकि किसी तरह से ही सही आंदोलन जिसमें वास्तविक कृषक की मौजूदगी अपेक्षाकृत कम है को ख्याति प्राप्त हो।
उन मुद्दों पर जो पूर्व में डिस्कस हो चुके हैं तथा सरकार ने उन पर रिव्यू करने का आश्वासन दिया है । ढिठाई तो इतनी की संवाद स्थापित ही नहीं करेंगे !
अगर संवाद ही नहीं करना चाहते तो फासीवादी हो आंदोलन कुल मिलाकर पैरासाइट बन चुका है अस्थिरता के पैरोंकारियों का ।
भारतीय गणतंत्र पर्व पर दो महान ध्वजाओं का अपमान हुआ । एक तिरंगा दूसरा निशान साहिब ।
अगर किसी ने भी भारत से जनतंत्र का समापन कराने का प्रयास घोर साम्यवाद के आगमन की आहट होगा। शेष आप सब समझदार है । 
संवाद के लिए  एक फोन काल की दूरी पर प्रधानमंत्री का ऐलान वह वाक्य था जिसने मानो आंदोलन को स्तब्ध कर दिया था। किंतु लोगों का कृत्रिम समर्थन  आंदोलन की लिए संजीवनी बूटी बन गया। रणनीतिकारों का दबाव और आंदोलन को विश्व प्रसिद्ध बनाने  के लिए पैसेे देकर ट्वीट करने वाली तथाकथित हस्तियों के समर्थन हासिल किए गए । 
इससे दो बात सामने आ रहे हैं एक आंदोलन का प्रायोजित होना दूसरा भारत में ऐसा वातावरण निर्मित करना जिससे भारतीय लोकतंत्र को बदनाम किया जा सके।
   अब आप समझ ही गए होंगे कि एक्सट्रीम लेफ्ट खास तौर पर अर्बन नक्सल वादियों का इसमें कितना योगदान है और न्यू यॉर्क टाइम्स जैसे पत्र के माध्यम से अपनी विचारधारा और नैरेटिव किस तरह से विकसित किया जा रहा है। यहांं एक तथ्य और विचारणीय है कि ट्वीट करने वाली रेहाना ग्रेटा और मियां खलीफा को सर्च इंजन में ऊपर लानेे का फंडा भी इसमें अंतर्निहित है ।
   चलिए अब चिंतन का वक्त है । हम अभी भी अगर आप सत्य की पड़ताल नहीं कर पाए हैं तो आर्टिकल की पढ़ने के बाद जरूर कीजिए । 
   ( समस्त फ़ोटो गूगल से साभार )

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