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रविवार, अक्तूबर 17, 2010

मानव-अधिकारों का हनन क्यों ?

भड़ास वाले ब्लॉगर यशवंत जी की माता जी के साथ जो भी हुआ है उचित कदापि नहीं. अब एक माँ  को चाहिए न्याय...एक बेटी से अपेक्षा है कि वे यशवन्त जी ने पूरे आत्म नियंत्रण के साथ जो पोस्ट लिखी घटना के 72 घंटे बाद देखिये क्या हुई थी घटना :-"वो मायावती की नहीं, मेरी मां हैं. इसीलिए पुलिस वाले बिना अपराध घर से थाने ले गए. बिठाए रखा. बंधक बनाए रखा. पूरे 18 घंटे. शाम 8 से लेकर अगले दिन दोपहर 1 तक. तब तक बंधक बनाए रखा जब तक आरोपी ने सरेंडर नहीं कर दिया. आरोपी से मेरा रिश्ता ये है कि वो मेरा कजन उर्फ चचेरा भाई है. चाचा व पिताजी के चूल्हे व दीवार का अलगाव जाने कबका हो चुका है. खेत बारी सब बंट चुका है. उनका घर अलग, हम लोगों का अलग. उस शाम मां गईं थीं अपनी देवरानी उर्फ मेरी चाची से मिलने-बतियाने. उसी वक्त पुलिस आई. ये कहे जाने के बावजूद कि वो इस घर की नहीं हैं, बगल के घर की हैं, पुलिस उन्हें जीप में बिठाकर साथ ले गई. (आगे यहां से )."इस घटना का पक्ष ये है कि किन कारणों से किसी भी अपराध के आरोपी को तलाशने का तरीक़ा कितना उचित है.जबकी कानून इस बात की कितनी इज़ाज़त देता है इसे  "Legal Provision regarding arrest-detention" आलेख पर देखा जा सकता है. अमिताभ ठाकुर ने अपने आलेख में कानूनी प्रावधान की व्याख्या की है. व्याख्या के अलावा सामान्य सी बात है कि किसी अपराध के आरोपी की तलाश में किसी अन्य नातेदार को जो एक प्रथक इकाई का सदस्य है वृद्ध है को पुलिस-स्टेशन में रख उसके मानव-अधिकारों का हनन किस आधार पर  किया जा सकता है. ? पुलिस की  इस प्रक्रिया से हम असमत हैं. 
 

रविवार, अप्रैल 11, 2010

सांड कैसे कैसे

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एक बुजुर्ग लेखक  अपने शिष्य को समझा रहे थे -"आव देखा न ताव टपका दिये परसाई के रटे रटाए चंद वाक्य परसाई के शब्दों का अर्थ जानने समझने के लिये उसे जीना होगा. परसाई को बिछौना समझ लिये हो का.?, दे  दिया विकलांग श्रद्धा को रोकने का नुस्खा हमको. अरे एक तो चोरी खुद किये उपर से कोतवाल को लगे बताने चोर का हुलिया . अगर  पुलिस के चोर खोजी कुत्ते नें सूंघ लिया तो सांप सूंघ जायेगा . ....?
 तभी दौनो के पास से एक सांड निकला चेला चिल्लाया-जाने सांड कैसे कैसे ऐरा घूम रहे हैं इन दिनों कम्बख्त मुन्सीपाल्टी वाले इनको दबोच कानी हाउस कब ले जावेगें राम जाने.
बात को नया मोड देता चेला गुरु से बोला:-गुरु जी, अब बताइये दस साल हो गये एक भी सम्मान नसीब न हुआ मुझे ?
तो, क्या कबीर को कोई डी-लिट मिली,तुलसी को बुकर मिला ?
अरे गुरु जी , मुझे तो शहर के लोग देदें इत्ता काफ़ी है .
सम्मान में क्या मिलता है बता दिलवा देता हूं ?
गुरु, शाल,श्रीफ़ल,मोमेन्टो...और क्या.....?
मूर्ख, सम्मान के नारीयल की ही चटनी बनाये गा क्या...इत्ती गर्मी है शाल चाहता है, कांच के मोमेंटो चाहिये तुझे इस के लिये हिन्दी मैया की सेवा का नाटक कर रहा था ? जानता हूं तुझे आदमी से हट के रुतबा चाहिये उन अखबारों में नाम चाहिये जिसको रद्दी-पेप्पोर बाला पुडे बनाने बेच आता है, या कोई बच्चे की ................ साफ़ करने में काम आता है उसमें फ़ोटो छपाना है..वाह से हिन्दी-सुत, तुझे सूत भर भी अकल नईं है. जा जुमले रट के बने साहित्यकार. मैने तुझे मुक्त किया जा भाग जा घूम उसी छुट्टॆ-सांड सा जो पिछले नुक्कड पे मिला था.
गुरु से मुक्त हुआ साहित्यकार इन दिनों ब्लागिंग कर रहा है जहां साड सा एन सडक पे गोबर कर देता है. चाहे किसी का पैर कोई आहत हो उसे चरे हुए को निकालना है सो निकाल रहा है. इधर न तो संपादक के खेद सहित का डर न ही ज़्यादा प्रतिस्पर्धी ........ कभी इसकी पीठ खुजा आता तो कभी उसकी........ बेचारा करे भी तो क्या. दफ़्तर में मुफ़्त का कम्प्यूटर फ़िर हिन्दी की सेवा का संकल्प... हा हा हा......?

सोमवार, जून 23, 2008

अन्तरजाल पर सुखद अनुभूतियाँ

रंजू ranju जी ने अमृता प्रीतम की याद में पोस्ट प्रकाशित कर जहाँ अभिभूत किया है । वहीं दूसरी ओर मुद्दत हुई है यार को मेहमां किये हुए पोस्ट भी असरदार है लेकिन मीत साहब कलकत्ता वालों के इस ब्लॉग किस से कहें ? पे पहुंचा तो दंग रह गया।
किस से कहें ? ब्लॉग खजाना है अन्तर जाल पे लुटा रहे हैं अपने मीत जी इनकी जितनी तारीफ़ करुँ कम है ।
MANAS BHARADWAJ --THE LAST POEM IS THE LAST DESIRE ब्लॉग है मानस भारद्वाज का जो इंजीनियरिंग की पढाई में व्यस्त होकर भी पोस्ट करतें हैं एक कविता लगभग रोज़ ....!

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