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प्रीत की तुम मथानी ले मेरा मन मथ के जाती हो

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प्रीत की तुम मथानी ले  मेरा मन मथ के जाती हो कभी फ़िर ख्वाब में  आके  मुझे  ही  थपथपातीं हो ! क़िताबों में तुम्हीं तो हो ,दीवारों पे तुम्ही तो हो - बनके  मीठी  सी  यादें तुम मन  को  गुदगुदातीं हो..! विरह की पोटली ले के कहो अब मैं किधर जाऊं आ भी जाओ कि क्यों कर तुम मुझे अब आज़माती हो