गृहणी श्रीमति विधी जैन के कोशिश से आयकर विभाग में हरक़त
भारतीय भाषाओं के सरकारी एवम लोक कल्याणकारी , व्यावसायिक संस्थानों द्वारा अपनाने में जो समस्याएं आ रही थीं वो कम्प्यूटर अनुप्रयोग से संबंधित थीं. यूनिकोड की मदद से अब कोई भी हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं को प्रयोग में लाने से इंकार करे तो जानिये कि संस्थान या तो तकनीकि के अनुप्रयोग को अपनाने से परहेज कर रहा है अथवा उसे भारतीय भाषाओं से सरोकार नहीं रखना है. भारतीय भाषाओं की उपेक्षा अर्थात उनके व्यवसायिक अनुप्रयोग के अभाव में गूगल का व्यापक समर्थन न मिल पाना भी भाषाई सर्वव्यापीकरण के लिये बाधक हो रहा है. ये वही देश है जहां का युवा विश्व को सर्वाधिक तकनीकी मदद दे रहा है. किंतु स्वदेशी भाव नहीं हैं.. न ही नियंताओं में न ही समाज में और न ही देश के ( निर्णायकों में ? ) बदलाव से उम्मीद है कि इस दिशा में भी सोचा जावे. वैसे ये एक नीतिगत मसला है पर अगर हिंदी एवम अन्य भारतीय भाषाई महत्व को प्राथमिकता न दी गई तो बेतरतीब विकास ही होगा. आपको आने वाले समय में केवल अंग्रेज़ियत के और कुछ नज़र नहीं आने वाला है. हम विदेशी भाषाओं के विरुद्ध क़दापि नहीं हैं किंतु भारतीय भाषाओं को ताबू