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गिलगित - बालित्स्तान की सांस्कृतिक समारोह की तस्वीर |
पाकिस्तान के कितने टुकड़े होंगे ये तो आने वाला समय बताएगा
किन्तु ये तयशुदा है जम्हूरियत पसंदगी आज के दौर की सबसे बड़ी ज़रूरत है और आम
नागरिक को प्रजातंत्र के लिए अधिक आकर्षण समूचे विश्व के चप्पे चप्पे में पसंद आ
रहा है. और यही भावना आने वाले दौर को और अधिक सशक्त बनाएगी. इसी जम्हूरियत पसंदगी
के चलते वे सारे राष्ट्र जहां जम्हूरियत का नामोंनिशान नहीं है उन देशों के राष्ट्र
प्रमुखों को खासतौर पर सोचना ज़रूरी है जो धर्माधारित राष्ट्र के प्रमुख हैं अथवा
किसी धार्मिक राष्ट्र की संस्थापना के चिन्तन में हैं.वे सभी भी जो सभी धर्मों को
उपेक्षा भाव से देखते हुए केवल ख़ास विचारधारा को जनता पर लादते हैं. अर्थात
प्रजातंत्र जहां धर्म संस्कृतियों को सहज स्वीकारने और अपने तरीके से जीने का
अधिकार जो राज्य देता है जनता उस राज्य की नागरिकता अधिक पसंद करेंगे . और विश्व
में भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली के अधिकाँश अध्याय जुड़ेंगे . लोग उसे सहर्ष
स्वीकारेंगे .
भारत में हिंदुत्व नामक कोई अवधारणा या विचारधारा नहीं है
बल्कि सनातन सामाजिक व्यवस्था है. जो इतनी व्यवस्थित एवं स्वचालित है कि उसमें
किसी प्रकार की ऐसी कठोरता हो जो जनता को अस्वीकार्य हो. इसकी पुष्टि कुम्भों के
आयोजन से होती है. जहां भारत के सभी ऋषि, मुनि, संत, विद्वत समाज, आस्तिक एकत्र
होकर विगत 12 वर्षों में अपेक्षित व्यवस्थाओं की समीक्षा कर सनातन सामाजिक व्यवस्था को समयानुकूलित करने के लिए
नवीन बिन्दुओं का समावेश करते रहें हैं. यह परम्परा संसदीय थी सम्राट, रियासतों के
राजाओं एवं अन्य प्रशासनिकों को लागू करवाना होता था.
सनातन सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन न होता तो सनातन कठोर
होता जड़ता युक्त होता .. और यही जड़ता उसे क्षतिग्रस्त करती . और सनातन आज हम नहीं
स्वीकारते. क्योंकि नागरिक सदैव सहज जीवन जीना पसंद करते हैं. राजशाही / सामंत
शाही में धर्माचरण के निर्देश थे. बदलावों को सदैव ग्राह्य किया गया . पश्चिमी और
सनातन व्यवस्था में लचीलापन उसको स्थाईत्व देता है. मत भिन्नता को ग्राह्य करते
हुए सभी धर्मों का सम्प्रदायों में बंटना स्वाभाविक प्रक्रिया है जो धर्म की
स्थापना के बाद कालान्तर में होती है . एक ब्रह्म एकेश्वरवाद , द्वैत, अद्वैत,
निरंकार , साकार, शैव, शाक्त, वैष्णव, ट्रिनिटी , और अन्य सभी विचारधाराएं जो
मनुष्य की दिमागी उपज है उसी का अनुशरण राष्ट्र की जनता करती है जो उसे अधिक सहज
लगता है.
स्वामी शुद्धानंदनाथ ने धर्म की व्याख्या करते हुए कहा था
कि- “देश-काल-परिस्थिति” के अनुकूल व्यवस्था ही धर्म है . उदाहरण के लिए यदि आप
सफर में और आप त्रिसंध्या के नियम का पालन नहीं कर सकते हैं तो आप मानस-पूजा के
ज़रिये अपने आराध्य की वंदना कीजिये. सनातन का यही लचीलापन उसे सर्वग्राह्य बनाता
है. सनातन व्यवस्था में बाह्य-आचरण की
व्यवस्थाएं दीं हैं . किन्तु आतंरिक आध्यात्मिक विकास के लिए अध्ययन, तप, योग,
ध्यान, चिंतन के बिन्दुओं का समावेश धर्म गुरु करते हैं. सनातनी धर्मगुरु मेकअप
कराकर मनमोहक वातावरण बनाकर भाषण नहीं देते थे . बल्कि समाज के छोटे छोटे समूह को
आध्यात्मिक एवं सनातनी सामाजिक व्यवस्था का शिक्षा देते रहे हैं . आज भी भारत में
धर्म और उसका आतंरिक तत्व अर्थात अध्यात्म बहुसंख्यक रूप से स्वीकार्य है. सनातन सामाजिक व्यवस्था सत्ताभिमुख होने की बजाय राष्ट्रधर्म के पालन को बढ़ावा देती है .
इससे पाकिस्तान में सत्ता का आधार ही कठोर है लोकप्रशासन भी बेहद लचर है . वहां कोई भी
बदलाव राज्य को ही अस्वीकार्य है तो जनता के मन में सदैव आशंका होती है . राज्य का
प्रबंधन की समझ रखने वाले प्रोग्रेसिव विद्वानों को वहाँ स्थान नहीं मिला इसी वज़ह
से प्रजातंत्र की रक्षा के तरीके न खोज सका पाकिस्तान और इसी के चलते 1971 यानी
मेरे जन्म के आठ वर्ष बाद उस देश को दो खंड में विभक्त होना पड़ा . 48 साल बाद उसे छल से छीनी भूमि बलोचस्तान, के साथ साथ गिलगित-बल्तिस्तान, सिंध,
आदि को खोना पड़ सकता है. पाकिस्तान का जन्म कायदे आज़म कुंठा और भ्रम से हुआ. कुंठा और भ्रम में
निर्मित कोई रचना दीर्घायु भला कैसे हो सकती है. पाकिस्तान का पंजाब सूबा देश का
सबसे कम आय-अर्जक है पर वहाँ (पंजाब में) शोषण करने वालों की संख्या अधिक है,
पाकिस्तान की जो भी विकास की नीतियाँ हैं उनका सीधा और सबसे अधिक लाभ केवल
पंजाब को हासिल है. शेष जैसे बलोचिस्तान, सिंध, गिलगित-बल्तिस्तान आदि की उपेक्षा
हुई है. 48 सालों में इन्हीं गलत एवं गैर-समानता वाली व्यवस्था के चलते पाकिस्तान
की फैडरल-व्यवस्था फिर से चरमराने लगी है
. जिससे आम शहरी बेहद घायल महसूस करता है . यहीं से रास्ते बनतें हैं जनक्रांति के
जो भौगोलिक सीमाओं में तक परिवर्तन ला सकती हैं. एक सत्य भी पाकिस्तानी सदर यानी
वहाँ के वजीर-ए-आज़म विश्व फॉर्म पर उजागर करते हैं हैं कि पाकिस्तान को आतंकवाद
सबसे अधिक क्षतिग्रस्त करता है . सत्य भी है पर इसके तीन कारण हैं ..
एक कि वो ऐसा कहकर वो विश्व समुदाय से सिम्पैथी हासिल करना
चाहता है जिससे उसकी करतूतों पर पर्दा डाला रहे
दूसरे उसको देश चलाने के लिए अमेरिकी डालर मिलते रहें . जिससे
उसके पंजाब सूबे की जनता का जीवन सामान्य हो सके.
तीसरा और सबसे अहम कारण है उसके पास अब इतना भी धन नहीं है
जिससे वो अपने पाले आतंकवादी संगठनों का खर्च भी उठा सके.
अक्सर भारत के कुछ विचारक भारत को कम आंककर अनाप-शनाप आरोप
लगाकर हमारी विदेशनीति पर सवाल खड़े करते हैं . लेकिन दिनांक 16 जुलाई 17 को आतंक
के खिलाफ दृढ़ता से आवाज़ उठाने वाले मनिंदर सिंह बिट्टा के संकल्प को समझाने की
ज़रूरत है कि आतंकवाद के खिलाफ जंग को धार्मिक साँचें में ढालकर पेश न किया जाए.
अधिकाँश आयातित विचारधारा के पोषक सदा वर्गीकरण करतें हैं
ताकि व्यवस्था में उन्माद का प्रवेश हो तथा अंतर्कलह की स्थिति उत्पन्न हो .
किन्तु भारत ने विश्व को अपने मज़बूत कूटनीति से जिस तरह पाकिस्तान और उसके आका चीन
को पोट्रेट किया है उससे विश्व का भारत के प्रति झुकाव भी बढ़ा है . और हमारी
वैश्विक साख में इजाफा हुआ है.
जहां तक भारत के अल्पसंख्यकों का प्रश्न है वे चाहे यहूदी
हों बौद्ध, सिख, पारसी, ज्यूस्थ, जैन, अथवा मुसलिम हों उनको बहुसंख्यकों से भयातुर
होने की ज़रूरत कदापि नहीं . भारत सर्वधर्म समभाव का स्वप्रमाणित राष्ट्र है.
बावजूद इसके कि पश्चिम बंगाल सहित कई प्रान्तों में सनातनियों की स्थिति सामान्य न
हो .
परन्तु एक बाद सबको समझनी आवश्यक है कि पाकिस्तान को
सर्वाधिक क्षति चीन और उसके अपने बलोचस्तान, गिलगित-बल्तिस्तान, सिंध, के नागरिक
ही दे सकतें हैं.