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14.12.20

मानसिक संवाद एक रहस्यमयी घटना भाग -एक

रहस्य रोमांच और आध्यात्म
आप संवाद कर सकतें हैं बिना किसी उपकरण के हज़ारों मील दूर आश्चर्य हो रहा है ना कि आप से यह कहा जा रहा है कि हजारों किलोमीटर दूर बिना किसी यंत्र के संवाद कर सकते हैं। जी हां यह यथार्थ है और संभव भी कि आप अपने से हजारों किलोमीटर दूर ऐसे लोगों से संवाद कर सकते हैं जिनको नाम जानते हो ना ही आपका उनसे कोई परिचय हो।
   यह प्रक्रिया इस घटना से समझी जा सकती है
घटना साई बाबा के जीवन से जुड़ी है
एक समय की बात है कि साईं बाबा मस्जिद में बैठे हुए अपने भक्तों से वार्तालाप कर रहे थे| उसी समय एक छिपकली ने आवाज की, जो सबने सुनी और छिपकली की आवाज का अर्थ अच्छे या बुरे सकुन से होता है| उत्सुकतावश उस समय वहां बैठे एक भक्त ने बाबा से पूछा - "बाबा यह छिपकली क्यों आवाज कर रही है? इसका क्या मतलब है? इसका बोलना शुभ है या अशुभ?"
बाबा ने कहा - 'अरे, आज इसकी बहन औरंगाबाद से आ रही है, उसी खुशी में यह बोल रही है " उस भक्त से सोचा - 'यह तो छोटा-सा जीव है..!
उसी समय औरंगाबाद से एक व्यक्ति घोड़े पर सवार होकर बाबा के दर्शन करने आया ।  बाबा उस समय नहाने गये हुए थे । इसलिए उसने सोचा कि जब तक बाबा आते हैं तब तक मैं बाजार से घोड़े के लिए चने खरीद कर ले आता हूं| ऐसा सोचकर उसने चने लाने का जो थैला कंधे पर रखा हुआ था, धूल झाड़ने के उद्देश्य से झटका तो उसमें से एक छिपकली निकली - और फिर देखते-देखते वह तेजी से दीवार पर चढ़ते हुए पहली वाली छिपकली के पास पहुंच गयी ।  फिर दोनों खुशी-खुशी लिपटकर दीवार पर इधर-उधर घूमती हुई नाचने लगीं । यह देखकर सब लोग आश्चर्यचकित रह गये । यह कहना बाबा की सर्वव्यापकता का सूचक था ।  वरना कहां शिरडी और कहां औरंगाबाद..!
इस कथानक के तीन बिंदु अति महत्वपूर्ण हैं । दो छिपकलियाँ और उनके सन्देश को  इंटरसेप्ट करने वाले साईं बाबा ।  साईं ने उस फ्रीक्वेंसी को पकड़ लिया जिसे एक छिपकली ने दूसरी को  आगमन की सूचना के रूप में भेजा गया था या रिसीव किया था । यह अगर काल्पनिक लगती है...?
   1943 में दूसरे विश्वयुद्ध के समय एक गरीब दम्पति का बेटा ब्रिटिश भारत के सैनिक के रूप में बर्मा फ्रंट पर तैनात था ।  उसके माता-पिता फतेहगढ़  में रह रहे थे । एक शाम अचानक नीम करौली बाबा उन वृद्ध दंपत्ति के घर पहुँचते हैं ।  वृद्ध दंपत्ति उनको भोजन कराते हैं और  बाबा एक बिस्तर पर सो जाते हैं । रातभर दंपत्ति इस बैचैनी में सो न पाए कि बाबा को हम उचित सम्मान न दे सके । पर उनने देखा बाबा रात भर कराहते कसमसाते रहे । स-रो-पा कंबल में ढंके बाबा ने सुबह उठकर उनको वही कंबल सौंपा । और आदेश दिया कि -"इसे गंगा में विसर्जित कर आओ रास्ते में खोलना मत । और हाँ तुम्हारा पुत्र एक माह में लौट आएगा !"
    कंबल अपेक्षाकृत भारी था उसमें  कुछ धातुओं की आवाज़ आ रही थी । पर भक्त दम्पत्ति ने गुरुदेव के आदेश के अनुसार चाह कर भी न देख सके ।
     एक माह पश्चात जब पुत्र लौटा तो उसने युद्ध की दास्तां बयाँ की । और बताया कि वह किस प्रकार जापानी सेना की गोलियों की बौछार से घिरा था । पर एक भी कारतूस उसे छू न सका । उस तक आने वाली हर गोली कभी दाएं से तो कभी बाएं से निकल जाती ।
    निश्चित ही मृत्यु के निकट होने पर माता-पिता को अन्तस् से याद करने वाले युवा ने करुणा भाव से माता-पिता को याद किया होगा । शायद पुकारा भी हो ?
   सुधि पाठकों यह सत्य है कि उस संदेश को इंटरसेप्ट करने वाले नीम करौली के बाबा ही थे ।
   कैसे होता है यह कम्युनिकेशन
ऐसे संदेश मानसिक ऊर्जा से प्रसारित होते हैं । आप बिना किसी पावर के न तो फोन चला सकते न अन्य कोई यंत्र । फोन रिसीवर एवम ब्रॉडकास्टर दौनों कार्य ऊर्जा और निर्धारित फ्रीक्वेंसी पर सक्रिय होता है । आपका मन और मस्तिष्क विचारों को हाई फ्रीक्वेंसी पर विस्तार देते हैं । अक्सर हम अपने स्नेही जन को जब याद करते हैं तब वह भी आपको तुरन्त याद करता है । शायद आपका फोन उसी समय के आसपास बज उठे और स्नेहीजन कह दे कि -"मुझे तुम्हारी याद आ रही थी , सो कॉल कर लिया । आप ने अवश्य ही कहा होगा कि -"और मुझे भी..!"
     हम ऐसी घटनाओं को हल्के में लेते हैं । जबकि यह एक प्रणाली है। इसके आधार पर आप को हमको सबको सिखाया जाता है कि-"ईश्वर को अंतर-आत्मा से याद करो, वे अवश्य ही मदद करेंगे ।"
   होता भी यही है । हमारा परिवार गोसलपुर में पिता जी के साथ रहता था । और जब भी कोई कठिनाई होती तब ब्रह्मलीन मूलानंद जी ब्रह्मचारी आ जाते थे । ब्रह्मलीन स्वामी शिवदत्त महाराज तो हमारे सरकारी आवास के चक्कर लगाया करते थे । 
   मित्रो, यह सब संभव है योग क्रिया से । योगी तो लाखों किलो मीटर दूर तक संवाद कर लेते हैं । पक्षी भी इसी प्रकार से संवाद कर सकते हैं । रामायण महाभारत काल में तो यह सब सहज सम्भव था । दक्षिण का राजा रावण उत्तर के राम के साम्राज्य के हर पहलू से भिज्ञ था । राम के वंश के राजाओं को भी वैश्विक जानकारी थीं । तब जब कि न सड़के उम्दा रहीं थीं कि कोई हरकारा सन्देश शीघ्र ही लाए । फिर क्या था कम्यूनिकेशन प्लान ? मेरे हिसाब से केवल "मानसिक-सन्देश सम्प्रेषण"  और यह सब ध्यान योग से ही सम्भव है । 
   एक क्रिया मैं करता हूँ । जिससे मिलना है उसे ध्यानस्त होकर तीव्रतम उत्कंठा के साथ स्मरण किया करता हूँ । इसका परिणाम उसका या तो फोन आ जाता है या प्रत्यक्ष भेंट । तीन दिन पूर्व एक एस एल आर श्री ललित ग्वालवंशी का अचानक ही स्मरण हो आया । हम कई दिनों से कोविड की वजह से नहीं मिल सके । आज इस आलेख के लिखते समय शाम को उनका स्वयम फोन आ गया । 
    हममें और योगियों में यही अंतर है । हम स्मरण करते हैं । वे पूर्ण संवाद किया करते हैं । 
   यह आर्टिकल क्यों लिख रहा हूँ मुझे नहीं ज्ञात होता है । न ही समझ पा रहा हूँ । परन्तु एक ब्रह्म सत्य यह है कि मुझे बार बार यही महसूस हुआ कि कोई कहता है कि इस विषय पर लिखो। सुबह से लगा हूँ पर अब पूर्ण हुआ लेखन एक नींद के बाद किसी की आवाज़ ने उठा कर इसे पूर्ण कराया । प्रातः के 4 बजने को हैं । आर्टीकल सुप्रभात के साथ सादर प्रस्तुत है । 



    

18.3.13

पलाश से संवाद !

श्रीमति रानी विशाल जी के
ब्लाग  काव्यतरंग से साभार

                     पलाश तुम भी अज़ीब हो कोई तुम्हैं  वीतरागी समझता है तो कोई अनुरागी. और तुम हो कि बस सिर पर अनोखा रंग लगाए अपने नीचे की ज़मीन तक  को संवारते दिखते हो. लोग हैरान हैं... सबके सब अचंभित से तकते हैं तुमको गोया कह पूछ रहे हों.. हमारी तरह चेहरे संवारों ज़मीन को क्यों संवारते हो पागल हो पलाश तुम ..
                      जिसके लिये जो भी हो तुम मेरे लिये एक सवाल हो पलाश, जो खुद तो सुंदर दिखना चाहता है पर बिना इस बात पर विचार किये ज़मीन का श्रृंगार खुद के लिये ज़रूरी साधन से करता है.. ये तो वीतराग है. परंतु प्रियतमा ने कहा था –
आओ प्रिय तुमबिन लौहित अधर अधीर हुए
अरु पलाश भी  डाल-डाल  शमशीर हुए.
रमणी हूं रमण करो फ़िर चाहे भ्रमण करो..
फ़ागुन में मिलने के वादे प्रियतम अब तो  तीर हुए ...!!
                  मुझे तो तुम तो वीतरागी लगते हो.. ये तुम्हारा सुर्ख लाल  रंग जो हर सुर्ख लाल रंग से अलग है.. अपलक देखता हूं तो मुझे लगता है... कोई तपस्वी युग कल्याण के भाव  लिये योगमुद्रा में है. तुम चिंतन में होते हो पलाश और फ़ागुन की मादक बयार के सताये  प्रेमी तुमको चिंतनरत देख चिंतित नज़र आते हैं. ऐसा भ्रम मत फ़ैलाओ पलाश तुम योगी हो. यदि तुम योगी न होते तो वेदपाठी ब्राह्मण  पुत्र तुम्हैं याज्ञिक  न मानते .
                    मन कवि के विचार प्रवाह तब अचानक और तीव्रता से प्रवाहित होने लगे जब वन पथ से गुज़रती गाड़ी से दाएं-बांए एक पूरा विस्तृत पलाश वन दिखा अलमस्त पलाश जिसे कुछ लोग कहते हैं.. दहकते पलाशों से झरित रोगन सारी वन भू को रंगोली की तरह सजाया.. ! 
            तुमको किंसुक , पर्ण , याज्ञिक , रक्तपुष्पक , क्षारश्रेष्ठ , वात-पोथ , ब्रह्मावृक्ष , ब्रह्मावृक्षक , ब्रह्मोपनेता , समिद्धर , करक , त्रिपत्रक , ब्रह्मपादप , पलाशक , त्रिपर्ण , रक्तपुष्प , पुतद्रु , काष्ठद्रु , बीजस्नेह , कृमिघ्न , वक्रपुष्पक , सुपर्णी कहा जाता है.. तुम लता, वृक्ष , और क्षद्म रूप में प्रकृति को सजाते हो. तो कहीं वैद्य के लिये तुम से सर्वसुलभ कोई वनस्पति नहीं होती जो कई रोग से मुक्ति दे. 
      तुम्हारी जड़ के रेशे अघोर-तापस की जटाओं से कम नहीं हैं पलाश. वनचारी जानते हैं कि नारियल के तंतुओं को तुम्हारी जड़ में छिपे रेशे मात देते हैं. उनसे ऐसी डोर बुनी जाती जो लोहे के तारों से को भी पराजित करतीं हैं. तुम्हारी छाल के रेशों से पाल-नौकाओं, जहाज़ों की दरारों से आते पानी को रोकना प्राचीन सभ्यता को ज्ञात था.  
            पर्ण विहीन होते होकर माधव महीने में तुम ऐसा अदभुत रूप रखते हो कि सदेह बैरागी भी भावातुर हो जाए. चलो पलाश इस बार इतना ही .. तुम मेरी नज़र और नज़रिये से भले वीतरागी हो पर प्रणयातुर कामिनी और उसके प्रियतम के लिये प्रेमातुर ही आभासित होना.. प्रेम के प्रतीकों में कमी आ जाएगी जो आज़ के हिंसक एवम कुंठित समय के लिये अधिक घातक होगा. और हां कवियों को भी माधव माह में तुम्हारे बिना कौन सा प्रतीक मिलेगा तुम उन सबकी दृष्टि में अनुरागी थे हो और बने रहना ..........  
     

7.2.10

अनूप शुक्ल जी से संवाद

ब्लॉग के सशक्त हस्ताक्षर अनूप शुक्ला संयुक्त महाप्रबंधक लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर  हैं .  आज ब्लॉग जगत के लिए उनसे हुए संवाद को पेश करते हुए मुझे ख़ुशी है
उनके ब्लॉग फुरसतिया  चिट्ठा चर्चा 
मैं ही प्रथम नहीं हूँ जो पाडकास्ट इंटरव्यू ले रहा हूँ मुझसे बेहतरीन अंदाज़ में इस  चर्चा के पहले भी पॉडभारती पर अनूप जी से चर्चा हुई उसे मत भूलिए उसे भी सुन ही लीजिये यहाँ

http://farm1.static.flickr.com/68/180964552_311e124a34.jpg
 

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धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...