या जोगी पहचाने फ़ागुन, हर गोपी संग दिखते कान्हा
फ़ागुन के गुन प्रेमी जाने , बेसुध तन अरु मन बौराना या जोगी पहचाने फ़ागुन , हर गोपी संग दिखते कान्हा रात गये नज़दीक जुनहैया , दूर प्रिया इत मन अकुलाना सोचे जोगीरा शशिधर आए , भक्ति - भांग पिये मस्ताना प्रेम रसीला, भक्ति अमिय सी , लख टेसू न फ़ूला समाना डाल झुकीं तरुणी के तन सी , आम का बाग गया बौराना जीवन के दो पंथ निराले , कृष्ण की भक्ति अरु प्रिय को पाना दौनों ही मस्ती के पथ हैं , नित होवे है आना जाना--..!! चैत की लम्बी दोपहरिया में– जीवन भी पलपल अनुमाना छोर मिले न ओर मिले, चिंतित मन किस पथ पे जाना ?