टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
रेडियोवाणी पर मिली इस प्रस्तुति के लिये भाई युनुस का आभार ही कहूंगा मीना कुमारी के सुर खैयाम साहब के संगीत संयोजना में टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली जिसका जितना आंचल था, उतनी ही सौग़ात मिली । जब चाहा दिल को समझें, हंसने की आवाज़ सुनी जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली । मातें कैसी, घातें क्या, चलते रहना आठ पहर दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी फिर साथ मिली । और अब एक पेशक़श यहां भी खैयाम साहब आज़ शाम खैयाम साहब को सुनने जाना है तरंग हाल में बिखरेंगी सुर लहरियां हम भी होंगे तरंगित तरंग में और फ़िर देर रात आपसे मुलाक़ात कराना है रात दस बजे प्रोफ़ेसर मटुकनाथ से