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बुधवार, अक्तूबर 06, 2010

"असफ़लता"


मां ने कहा था सदा से असफ़ल लोगों जीवन हुये के दोषों को अंवेषण करने का खुला निंमंत्रण है..... लोगों के लिये. कोई भी न रुकता पराजित के मन की समकालीन परिस्थियों को समझने बस दोष दोष और दोष जी हां यहीं से शुरु होती हैं ग्लानि जो कभी कुंठा तो कभी बगावत और कभी अपराध की यात्रा अथवा कभी पलायन . बिरले पराजित ही स्वयम को बचा पातें हैं. इस द्वंद्व से यक़ीन कीजिए....मां ने सही ही तो कहा था .

शुक्रवार, सितंबर 25, 2009

बिंदु-बिंदु विचार

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कल एक कवि गोष्टी करनी है बताओ किस किस को बुला लूं..?
 मेरे सवाल पर भाई सलिल समाधिया बोले-"क्या बताऊँ आप से बेहतर किसे जानकारी है शहर के कवियों के बारे में मैं तो किसी को जानता नहीं ?
सलिल भाई,मैं सभी को जानता हूँ इसी  कारण पशोपेश में हूँ ....! 
मेरा हताशा भरा उत्तर सुनकर सलिल भाई का ठहाका गूंजने लगा .
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योग निद्रा 
 वो सरकारी आदमी योग निद्रा में लीन अपनी  फाइल पर निपूते की संपदा पर बैठे सांप सा बैठा हुआ था,कल्लू की मौत के बाद अनुकम्पा नियुक्ति के केस में कल्लू की औरत से कुछ हासिल करने की गरज से उसकी फाइल एक इंच भी नहीं खिसका रहा था. एक दिन अचानक बाबू बालमुकुन्द नामदेव का निधन हार्ट अटैक से हो गया और एक नए बाबू ने कुर्सी सम्हाली . दौनों विधवाए की अनुकम्पा नियुक्ति की फाइल को लेकर उसी टेबल के सामने बैठीं थी. और नए गुप्ता बाबू योग निद्रा में थे . 

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