हमेशा की तरह एक बार फ़िर मध्यम वर्ग ने किसी हुंकार में हामी भरी और एक तस्वीर बदल देने की कवायद नज़र आने जगी. इस बात पर विचार करने के पूर्व दो बातों पर विचार करना आवश्यक हो गया है कि
- जय प्रकाश जी के बाद पहली बार युवा जागरण में सफ़ल रहे..अन्ना हजारे ?
- क्या अन्ना के पास कोई फ़लसफ़ा नहीं है..?
पहला सवाल पर मेरी तो बिलकुल हां ही मानिये. अधिक या कम की बात मत कीजिये दौनों के पास जितनी भी जन-सहभागिता है उसकी तुलना गैर ज़रूरी ही है. आपातकाल के पूर्व जय प्रकाश जी का आव्हान गांव गांव तक फ़ैला था. आज़ भी वही स्थिति है. तब तो संचार क्रांति भी न थी फ़िर.. फ़िर क्या क्या आज़ादी जैसी सफ़लता में किसी फ़ेसबुकिया पोस्ट की कोई भूमिका थी ? न नहीं थी तो क्या होता है कि एक आव्हान होता है और जनता खासकर युवा उसके पीछे हो जाते हैं...? यहां उस आव्हान के विजन की ताक़त की सराहना करनी चाहिये. जो सबको आकर्षित कर लेने की जो लोकनायक में थी. अन्ना में भी है परंतु विशिष्ठ जन मानते हैं कि लोकनायक के पास विचारधारा थी..जिसे सम्पूर्ण क्रांति कहा जिसमें युवाओं को पास खींचने का गुण था. तो क्या अन्ना के पास नहीं है..? कुछ की राय यह है कि "न, अन्ना के पास विचारधारा और विजन नहीं है बस है तो भीड़.जिसके पास आवाज़ है नारे हैं .!" ऐसा कहना किसी समूह विशेष की व्यक्तिगत राय हो सकती है सच तो ये है कि बिना विज़न के कोई किसी से जुड़ता नहीं . और अन्ना हज़ारे जी ने सम्पूर्ण क्रांति को आकार देने का ही तो काम किया है. तभी मध्यम वर्ग खिंचता चला आया है ..
तो क्या अन्ना के पास कोई फ़लसफ़ा नहीं है..? जी नहीं, अन्ना की फ़िलासफ़ी साफ़ तौर पर भावात्मक बदलाव से प्रेरित है.. बस आप खुद सोचिये कि कल से क्यों न आज़ से ही संकल्प लें कि "अपना काम बनाने किसी भी गलत तरीके का सहारा न लेंगे "
यानी सम्पूर्ण रूप से "व्यक्तिगत-परिष्कार" यही तो दर्शन की पहली झलक है.
यहां मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ अन्ना की बात कर रहा हूं उनके सिपहसलारों की नहीं. पर हां एक बात से आपको अवश्य आगाह कर देना चाहता हूं कि व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन लाने के पूर्व सुरक्षा-उपकरणों का चिंतन ज़रूरी है वरना डेमोक्रेसी से हाथ न धोना पड़ जाए. पूरे आंदोलन को गौर से देखें तो आप पाएंगे अन्ना ने आपकी उकताहट को आवाज़ दी नारे दिये. आप जो मध्यम वर्ग हैं. आप जो परेशानी महसूस कर रहे हैं. आप जो असहज पा रहे थे खुद को आपको आपकी बात कहने वाला मिला तो आप उनके साथ हुए वरना आप भी आराम करते घरों में अपने अपने.. है न ..?
मेरा अब साफ़ तौर पर कथन है कि :- "कहीं ऐसा न हो कि आप अन्ना के नाम पर किसी छद्म स्वार्थ को समर्थन दे दें." यानी किसी भी स्थिति में आंदोलन से जुड़ा आम आदमी खासकर मध्य-वर्ग किसी भी सियासती लाभ पाने की कोशिशों की आहट मिलते ही उतने ही मुखर हो जाएं जितने कि अभी हैं.. बस निशाना बदलेगा . आपने देखी सारी स्थियां मात्र सत्ता तक पहुंचने के लिये आप इस्तेमाल होते थे..