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मंगलवार, जुलाई 03, 2012

मत्स्य गंधी होके जल से आपको एतराज़ कैसा


मत्स्य गंधी होके जल से आपको एतराज़ कैसा
इस आभासी फलक पे आपका विश्वास कैसा..?

पता था की धूप में होगा निकलना ,
स्वेद कण का भाल पे सर सर फिसलना
साथ छाजल लेके निकले, सर पे साफा बाँध के
खोज है  इस खोज में मधुमास क्या बैसाख कैसा ?

बागवां हो   बाड़ियों में शूल के बिरवे न रोपो
तुम सही  हो इस सत्य को कसौटी पे कसो सोचो
बूढ़ा बरगद और पीपल सब तो हैं
कंटीली झाड़ी तले तपस्वी आवास कैसा …?




रविवार, फ़रवरी 26, 2012

जो गीत तुम खुद का कह रहे हो मुकुल ने उसको जिया है पगले




कि जिसने देखा न खुद का चेहरा उसी  के  हाथों  में  आईना है,
था जिसकी तस्वीर से खौफ़ सबको,सुना है वो ही तो रहनुमां है.
हां जिनकी वज़ह से है शराफ़त,है उनकी सबको बहुत  ज़रूरत-
वो  चार लोगों से डर रहा हूं… बताईये क्या वो सब यहां हैं..?
अगरचे मैंने ग़ज़ल कहा तो गुनाह क्या है.बेचारे  दिल का...
वो बेख़बर है उसे खबर दो    कि उसके चर्चे कहां कहां हैं..?
वो लौटने का करार करके गया था, लेकिन कभी न लौटा-
करार करना सहज सरल है- निबाहने का ज़िगर कहां है .
जो गीत तुम खुद का कह रहे हो मुकुल ने उसको जिया है पगले
किसी को तुम अब ये न सुनाना सभी कहेंगे सुना- सुना है .

मंगलवार, फ़रवरी 07, 2012

ग़ज़ल:ज़िंदगी


From भारत-ब्रिगेड
कभी स्याह रात कभी माहताब ज़िंदगी
इक अर्से से मुसलसल बारात -ज़िंदगी
तेरी बज़्म , तू बेखबर मैं बेख़बर....
इक ऐसी ही सुहाग-ए-रात "ज़िंदगी"
बाद अर्से के मिला यार मेरा-
तब उफ़नके रुके ज़ज़्बात ज़िंदगी..
बाद मरने के कहोगे मेरे...
धुंये के बुत से थी मुलाक़ात ज़िंदगी..
न पूछ इस उससे कैसे जियें इसको ..
बहुत हसीन है जी ले चुपचाप-ज़िंदगी !!

सोमवार, दिसंबर 19, 2011

ब्लाग क्यों बांचें भई ?

साभार: रायटोक्रेट कुमारेंद्र जी के ब्लाग से 
हिंदी ब्लागिंग अब व्यक्तिगत-डायरी की संज्ञा से मुक्ति की पक्षधर नज़र्  आ रही है. इस विषय की पुष्टि इन दिनों आ रही पोस्ट से सहज ही हो जाती है . कुछ ब्लाग्स पर गौर करें तो बेशक वे सामयिक परिस्थितियों पर त्वरित अभिव्यक्ति की तरह सामने आ रहे हैं. इतना ही नहीं कुछ ब्लाग्स अपनी विषय परकता के कारण पढ़े जा रहे हैं.   यानी  एक ग़लत फ़हमी थी बरसों तक कि ब्लाग केवल व्यक्तिगत मामला है किंतु हिन्दी ब्लागिंग में माइक्रो ब्लागिंग साइट ट्विटर को छोड़ दिया जाए तो अब ऐसी स्थिति नहीं अब तो ट्विटर पर भी विषय विस्तार लेते नज़र आ रहे हैं. हिंदी ब्लागिंग का सकारात्मक पहलू ये है कि अब लोग स्वयम से आगे निकल कर बेबाक़ी से अपनी बात सामाजिक राजनैतिक वैश्विक मामलों पर रखने लगे हैं. ज़ी-न्यूज़ दिल्ली के सीनियर प्रोड्यूसर खुशदीप सहगल के ब्लाग देशनामा www.deshnama.com  पर समसामयिक मसलों पर  आलेखों की भरमार है तो दिल्ली के मशहूर व्यवसायी राजीव तनेजा आम जीवन से जुड़ी घटनाऒं एवम परिस्थियों से उपजे हास्य को पेश करते नज़र आते हैं अपने ब्लाग “हंसते-रहो” ( http://www.hansteraho.com), भाषा,शिक्षा और रोज़गार(http://blog.eduployment.in) ब्लाग पर आपको शिक्षा और रोज़गार से सम्बंधित ताज़ा तरीन सूचनाएं मिल जाएंगी. उधर एक अनाम ब्लागर भारतीय नागरिक ब्लाग(http://indzen.blogspot.com) पर सामयिक परिस्थितियों पर तल्ख त्वरित टिप्पणी सरीखे आलेख मिल ही जाएंगें.  पश्चिम बंगाल कलकत्ता के  अमिताभ मीत जी एक संगीत भरा किससे कहें (http://kisseykahen.blogspot.com) ब्लाग चलाते हैं. जिसमें हिन्दुस्तानी फ़िल्म एवम फ़िल्मों से हटकर संगीत से सम्बंधित सूचनाएं अटी पड़ीं हैं.    रविरतलामी जी हिंदी ब्लागिंग में नवीन तम तक़नीकों के अनुप्रयोग के लिये साधन एवम जानकारी “छींटे और बौछारें” (http://raviratlami.blogspot.com) पर देते हैं . ये केवल उदाहरण है कमोबेश सभी ब्लाग्स जो विषयाधारित आलेखन कर रहे हैं उन पर पाठकों की निर्बाध आवाजाही आज़ भी जारी है जब कि एग्रीगेटर्स का टोटा है यदि एग्रीगेटर है भी तो वे ब्लागवाणी अथवा चिट्ठाजगत का स्थान नही ले पाए. फ़िर भी संगीता पुरी जैसी ब्लागर लाख पाठक जुटाने में कामयाब हुईं हैं. तो हम भी पचास हजारी हो ही चुके हैं.  अमीर धरती गरीब लोग, स्वास्थ्य-सबके लिए, आरंभ Aarambha, गिरीश पंकज, अभिनव अनुग्रह, तीसरा खंबा, ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र, भारतीय नागरिक-Indian Citizen, अविनाश ,अर्पित सुमन :तेरा साथ वाचस्पति, आर्यावर्त, उच्चारण, जैसे ब्लाग नियमित रूप से बांचे जा रहे हैं...इनकी पठनीयता का कारण इनमें पठनीय-तत्व का होना है. ये ही नहीं और भी कई ऐसे ब्लागस हैं जिन तक पाठकों का पहुंचना तय है.

रविवार, नवंबर 13, 2011

लोकरंग का सार्थक आयोजन

                   शनिवार दिनांक 12 नवम्बर 2011 को सरस्वतिघाट भेड़ाघाट में   जिला पंचायत अध्यक्ष भारत सिंह यादव,के मुख्य-आतिथ्य, एवम श्री अशोक रोहाणी,पूर्व-सांसद पं.रामनरेश त्रिपाठी,नगर-पंचायत अध्यक्ष श्री दिलीप राय,पूर्व-महापौर सुश्री कल्याणी पाण्डेय के विशिष्ठ आतिथ्य  में आयोजित लोकरंग का शुभारंभ मां नर्मदा एवम सरस्वती पूजन-अर्चन के साथ हुआ .
      इस अवसर पर विचार रखते हुए श्री भारत सिंह यादव ने कहा –“लोक-कलाओं के संरक्षण के लिये ऐसे आयोजन बेहद आवश्यक हैं मेला-संस्कृति के पोषण के लिये भी कम महत्व पूर्ण नहीं हैं ऐसे आयोजन. सरस्वतिघाट पर हो रहे ऐसे आयोजन के आयोजन एवम प्रायोजक दौनों ही साधुवाद के पात्र हैं”.
 पूर्व सांसद श्री रामनरेश त्रिपाठी ने कहा –“मोक्षदायिनी मां नर्मदा के तट पर मां नर्मदा का यशोगान बेशक स्तुत्य पहल है विग्यान के नियमों को उलट देने वाली मां नर्मदा का तट पर आयोजित लोकरंग एक सार्थक-पहल है जिसके साक्षी बन कर हम हितिहास का एक हिस्सा बन रहे हैं.”
 सुश्री कल्याणी पाण्डेय के अनुसार-“ जहां एक ओर मां नर्मदा के तट पर अध्यात्म, संस्कृति को बढ़ावा मिला वहीं पुण्य-सलिला के तट पर अकाल, महामारियों को कोई स्थान नहीं ”
      लोकरंग के प्राम्भिक चरण में डा० नीलेश जैन,नारायण चौधरी, भूपेंद्र सिंह , की उपस्थिति   उल्लेखनीय है.
ग्रामीणों की नज़र मे आयोजन :-
 लोकरंग पर अपनी प्रतिक्रिया पिपरिया निवासी संतोष मल्लाह की प्रतिक्रिया थी “देहात के लाने जो कार्यक्रम ऐंसो लगो जैसों हमाओ कार्यक्रम है.”
सुनाचर निवासी परसुराम विश्वकर्मा की राय थी -“जे लोकगीत हमाई गांव की परम्परा है. हमाए लाने जो कछु करौ बहुतई अच्छौ लगो..”
हल्ला गुल्ला वारे कार्यक्रम तो सब करात हैं हमाए लाने हमाओ कार्यक्रम पहली बार भओ अच्छो लगो भैया ... ये विचार थे झिन्ना निवासी दमड़ी लाल चौधरी के. इसी तरह किशोर दुबे, राजाराम सेन, मनोज जैन, सुरेश तिवारी, धवल अग्रवाल, दीपांकर अग्रवाल, संटू पाल, लखन पटेल, राजू९ जैन, मुन्ना पटेल हनमत सिंह, गनपत तिवारी, मधुरा जैन, विपिन सिंह, बहादुर बर्मन बल्ली-रजक, सोनू श्रीवास्तव, आशीष जैन, चतुर पटैल, उमराव रज़क, अशोक उपाध्याय, भोजराज सिंह, संजय साहू, मोती पाठक , मनोज साहू आदी ने कार्यक्रम की मुक्त कण्ठ सराहना की.
कार्यक्रम के आयोजन में श्री विद्यासागर दुबे, नितिन अग्रवाल (मजीठा),वीरेंद्र गिरी (छेंड़ी) ,दिलीप अग्रवाल (भेड़ाघाट चौक),  एड.सम्पूर्ण तिवारी, गिरीष बिल्लोरे “मुकुल”,डा.लखन अग्रवाल, कंछेदीलाल जैन, महेश तिवारी,सुनील जैन, किशोर दुबे,धर्मेंद्र पुरी,सुरेश तिवारी, विद्यासागर दुबे, राजू जैन,मंजू जैन, संजय साहू, धीरेंद्र प्रताप सिंह, सुखराम पटेल,पं शारदा प्रसाद दुबे, धवल अग्रवाल,गनपत तिवारी,सुधीर शर्मा,सीता राम दुबे,चतुर सिंह पटेल, बल्ली रजक, के साथ क्षेत्रीय सरपंच देवेंद्र पटेल(बिलखरवा),हनुमत सिंह ठाकुर (बिल्हा),लखन पटेल(आमाहिनौता), जग्गो बाई गोंटिया(कूड़न)राजू पटेल (तेवर),डा०राजकुमार दुबे(बंधा),मुन्नाराज (सहजपुर),परसुराम पटेल(सिहौदा),जानकी अनिल पटेल(लामी) की महत्वपूर्ण  भूमिका थी.
छा गये दविंदर सिंह ग्रोवर
सुप्रसिद्ध रंगकर्मी दविंदर सिंह ग्रोवर की एका टीम ने जब लोकनृत्य की प्रस्तुति दी तब क्षेत्रीय जनता ने तालियों से सराहना की कारण था दविंदर का शुद्ध बुन्देली में  लोक गायन . नृत्य निर्देशक श्री दविंदर के हरेक प्रस्तुति में रिर्कार्डेड गीत रचना का प्रयोग नहीं किया गया.. वे स्वयं राई बम्बुलियां, बरेदी गीतों के बोल गा रहे थे. एक अहिंदी भाषी का शुध्द बुंदेली में प्रस्तुति करण पर खचाखच भरा जन सैलाब मोहित सा था.
फ़िल्मी गीत –संगीत पर आधारित एक भी प्रस्तुति नहीं
लोकरंग में एक भी ऐसी प्रस्तुति नहीं देखी गई जिसमें फ़िल्मी गीत संगीत का प्रभाव हो “एकजुट कला श्रम के श्री मनोज चौरसिया का कहना था- लोककलाओं से फ़िल्में हैं फ़िल्मों से लोककलाएं कदापि नहीं.
 बुंदेली-भाषा में संचालन
सम्पूर्ण तिवारी-मनीष अग्रवाल की जोड़ी द्वारा संचालित सम्पूर्ण  कार्यक्रम का संचालन बुंदेली में ही किया
मशहूर लोकगायक मिठाई लाल चक्रवर्ती ने बांधा समा
                       लोकगीतों के सरताज़ मशहूर लोकगायक मिठाई लाल चक्रवर्ती के गाए राई, फ़ाग, डिमरयाई, एवम लोकभजनों ने श्रोताओं का मन मोह लिया.
लाफ़्टर चैलेंज में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर चुके हास्य-कला कार श्री विनय जैन एवम मनीष जैन ने खूब हसांया बावज़ूद इसके कि उनकी एक किसी भी प्रस्तुति में फ़ूहड़ता एवम वल्गरिटी की झलक न थी कुल मिला कर  हास्य-प्रस्तियां स्तरीय रहीं

शुक्रवार, अक्तूबर 21, 2011

साहब आए और गये

    विक्रम की पीठ पे लदा बेताल टाइम पास करने की गरज़ से बोला :- विक्रम,   साहब का आने और वापस जाने के बीच से  एक  बरसाती नदी की तरह सियासती नदी उन्मुक्त रूप से बहा करती है. सुनो कल सा’ब आएंगे ? अच्छा कल ! काहे से आएंगे .. चलो अच्छा हुआ वो पुराना वाला था न ससुरा हर छुट्टी में आ धमकता था.. इनमें एक बात तो है कि ये .. छुट्टी खराब नहीं करते थे  ज़्यादा परेशान भी नहीं करते.  और ये अरे राम राम........मत पूछो गुप्ता बाबू.. 
      इस "अरे राम राम........मत पूछो गुप्ता बाबू.." में जितना कुछ छिपा है उसे आसानी से कोई भी समझ सकता है. 
      पुराना साहब अक्सर बुरा और उपेक्षा भाव से भरे "ससुरा" शब्द से कमोबेश हर डिपार्टमेंट में अलंकृत हुआ करता है. जितने भी साहब टाइप के पाठक इस आलेख को बांच रहे हैं बाक़ायदा अपनी स्थिति को खुद माप सकते है.यानी आज़ से उम्दा और कल से बेदतर न कुछ था न होगा ऐसा हर सरकारी विभाग में देखा जा सकता है. कल ही की बात है एक विभाग का अधिकारी अपने आकस्मिक आन पड़े कार्यों के चलते दिल्ली मुख्यालय से रीजनल आफ़िस आए स्थानीय अधिकारी  निर्देश के परिपालन में  कोताही न हो इसके मद्देनज़र एक अनुभवी इंतज़ाम-अली को ज़िम्मेदारी कार्यालयीन परंपरानुसार सौंप दी. आला-अफ़सर विज़िट में ऐसी बात का खास खयाल रखा जाता है  कि कोई ऐसा तत्व विज़िटार्थी अफ़सर के सामने न आ जाए जिसमें विज़िटार्थी  को प्रभावित करने सामर्थ्य हो अथवा तत्व विघ्न-संतोषी हो. हां एक बात और चुगलखोर और आदतन शिकायतकर्ता अधिकारी को तो क़तई पास न फ़टकने दिया जाता है. यथा सम्भव ऐसे तत्वों को सूचना से मरहूम रखने के भरसक प्रयास एवम बंदोबस्त कर लिये जाते हैं. पर साक्षर प्यून एवम हमेशा दफ़्तर की हर खबर से खुद को बाखबर रखने वाला "निषेधित-तत्व" सब कुछ जान ही लेता है. 
              तो दिल्ली से साहब आए  सरकारी कारज़ आड़ में ढेरों निजी निपटा गए .तो पाठको कैग की नज़र में  पर अन्ना-कसम  ये सरकारी है और अ-सरकारी भी.. जनता जनार्दन  का राजकोष को दिया कर का एक हिस्सा ऐसे काम पर भी खर्च होता है..क्या यह सही है विक्रम बोल ज़ल्दी बोल वरना....... 
विक्रम ने करा :-बैताल, आला अफ़सर को नहीं दोष गुसाईं..इस बात की पुष्टि तुम स्वर्गीय श्री श्रीराम ठाकुर के सटायर "अफ़सर को नहिं दोष गुसाईं"  से कर सकते हो.. विक्रम बोला और बेताल फ़ुर्र    

बुधवार, अगस्त 17, 2011

इतिहास तमाशबीनों का नहीं होता…. ..अविनाश दास


   मेरे नेटिया मित्र अविनाश दास ने अपनी बात में सभी को सजग कर दिया कि किसी भी स्थिति में तमाशबीन महत्व हीन हो जाते हैं इतिहास के लिये.. अविनाश की बात के पीछे से एक ललकार सुनाई दे रही है कि... आंदोलन यानी बदलाव के लिये की गई कोशिश कमज़ोर न हो..
यह किसी आंदोलन में विश्‍वास करने या न करने का समय नहीं है। समय है, इस उबाल को व्‍यवस्‍था के खिलाफ एक सटीक प्रतिरोध में बदल देने का । जिन्‍हें अन्‍ना से दिक्‍कत है, वे अन्‍ना का नाम न लें, लेकिन सड़क पर तो उतरें । जिन्‍हें लोकपाल-जनलोकपाल से दिक्‍कत है, वे इस जनगोलबंदी को एक नयी दिशा देने के लिए तो आगे बढ़ें। इतिहास तमाशबीनों का नहीं होता….” अविनाश का कथन एक वास्तविकता है.
अनपढ़ ग़रीब तबका जिसे ये बात समझने का सामार्थ्य नहीं रखता पर वो ये बात जानता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ़ एक जुट होना ज़रूरी है ऐसा जैसे आज़ादी के वक़्त हुआ था वही सब हो रहा है. गांधी सहित सभी समकालीन आईकान्स के संदेशों में क्या था यही न कि :-अंग्रेज़ों से मुक्ति के लिये एकता ज़रूरी है बस इसी संदेश ने एक तार में पिरो दिया लोग गोलबंद हो गए.. और शुरु हो गया परदेशियों को भगाने का अभियान.
सूरत वाली नेटिया मित्र से मिली खबर में पता चता चला कि रविशंकर भी दूसरी पारी के लिये सहयोगियों को बुला रहें हैं. यानी सिलसिला जारी रहेगा. रुकेगा नहीं. सवाल तो ये भी होंगे कि (कदाचित हैं भी ) : क्या अन्ना के जनलोक पाल बिल से तस्वीर बदल जाएगी..?’
सच तो ये है कि अन्ना एण्ड कम्पनी के बिल से तस्वीर बदलने न बदलने पर परिसंवाद से ज़्यादा ज़रूरत इस बात को समझ लेने की है कि:-अब जनता भ्रष्ट आचरण से मुक्ति चाहती है..! इतना ही काफ़ी है. इस गोलबंदी में जो तस्वीर उभर के आ रही है उससे साफ़ है कि- आंदोलित किया नहीं जा रहा बल्कि भारत के उजले कल की तस्वीर देखने वाली आम जनता को रास्ता मिल गया.इतना ही काफ़ी था . उसे (जनता को ) न तो अन्ना ने भड़काया न केजरीवाल ने उकसाया, किरण बेदी और रविशंकर जी का हाथ है इसमें.. बस इतना जानिये ये आवाज़ बरसों से दिल में गूंज रही थी.. खासकर मध्यम वर्ग के जो मुखर हो गई है अब.
            संसद को क़ानून बनाने के अधिकार की बात को आधार बनाया गया जनता के इस आंदोलन के संदर्भ में. सही है तो ये भी सही है कि प्राप्त अधिकार जेबी घड़ी नहीं हो सकते. एक पिता अगर अपनी संतान को प्राकृतिक अधिकार प्राप्त होने के बावज़ूद उपेक्षित करे तो पिता के खिलाफ़ की गई बग़ावत को रोकना असंभव है. 
            मेरी नज़र में जो भी चल रहा है  अन्ना वर्सेस सरकार जैसा कोई भी झगड़ा नहीं है बल्कि एक जनजागरण है एक सिंहनाद है एक हुंकार है जो देर सबेर सामने आती ही . 

सोमवार, अगस्त 15, 2011

अन्ना हज़ारे को समर्पित समर्थन-गीत : वो जो गा रहा है वह भी तो है राष्ट्र गीत..!



आज़ वक़्त है सही.......
हज़ारों को तू पाठ दे .
सोच मत कि क्या बुरा 
क्या भला है मेरे मीत
हिम्मतवर की ही 
होती  है सदा ही जीत.!

सोच मत कि क्या
                                                          करेगा  लोकपाल 
                                                          सोच मत कि
इंतज़ाम झोल-झाल ,
ऊपरी कमाई बिन
कैसा होगा अपना हाल !
वक़्त शेष है अभी 
सारे काम टाल दे !
जेब भर तिज़ोरी भर
बोरे भर के नोट भर ,
खैंच हैंच फ़ावड़े से
या यंत्र का प्रयोग कर !
सवाल पे भी नोट ले
जवाब के भी नोट ले !
ले सप्रेम भेंट मीत -
परा ज़रा सी ओट से !
किसने धन से जीतीं है
हज़ारों दिल की धड़कनें.!
मुफ़लिसी के दौर में 
पुख़्ता होती हैं जड़ें..!!
मेरी बात मान ले ...
मीत अब तू ठान ले
क्यों अभी तलक तू चुप
आगे आ उफ़ान ले..
क्यों तुझे देश के दुश्मनों
से प्रीत मीत
वो जो गा रहा है
वह भी तो है राष्ट्र गीत..!!
न ओट से तू नोट ले
न बोरे भर के नोट ले
न सवाल न ज़वाब
किसी वज़ह से नोट ले
न वोट के तू नोट ले
न खोट के तू वोट ले..!
न किसी ग़रीब को
लूट ओ’ खसोट ले..!!
भोर पहली बार की
भोर तेरे द्वार की
आज़ देश में हुई
भोर मददगार सी..!!
भूमिका में आजा मीत
अब तो समझदार की..!!

शनिवार, जुलाई 16, 2011

वेड्नेस डे : "स्टुपिट कामन मैन की क्रांति "


wednesday  फ़िल्म को देखते ही अहसास हुआ  एक कविता का एक क्रांति का एक सच का  जो कभी भी साकार हो सकता है.अब इन वैतालों का अंत अगर व्यवस्था न कर सके तो ये होगा ही "अपनी पीठ पर लदे बैतालो को सब कुछ सच सच कौन बताएगा शायद हम सब .. तभी एक आमूल चूल परिवर्तन होगा... चीखने लगेगी संडा़ंध मारती व्यवस्था , हिल जाएंगी  चूलें जो कसी हुईं हैं... नासमझ हाथों से . अब आप और क्या चाहतें हैं ?
 अब भी हाथ पर हाथ रखकर घर में बैठ जाना. ..?

सच तो ये है कि अब आ चुका है वक़्त सारे मसले तय करने का हाथ पर हाथ रखकर घर में बैठना अब सबसे बड़ा पाप होगा 

      



गुरुवार, जून 30, 2011

वो आदमी सुलगाया जाता है..!!


सुबह  अखबार बांचते ही
चाय की चुस्कियों के साथ एकाध गाली
निकल जाती है
अचानक
मुंह से उसके
व्यवस्था के खिलाफ़ !
फ़िर अचानक बत्ती का गुम होना
बिजली वालों की
मां-बहनों से शाब्दिक दुराचरण
सब्जी के दाम सुन कर
फ़िर उसी अंदाज़ में एक बार फ़िर
मंत्र की तरह गूंजती गालियां..!!
अचानक मोबाईल पर
बास का न्योता भी उसे पसंद नहीं..आता
हर बार तनाव के कारणों पर
वो बौछार कर देता है
अश्लील गालियों की
शाम
बेटी के हाथ से रिमोट ले
समाचार देखता वो
झल्ला जाता है
पर्फ़्यूम के “ब्लू-फ़िल्मिया-एड”
देख कर ..!
फ़िर लगा लेता है मिकी-माउस वाला चैनल
 अच्छा है उसमें इतनी तमीज़ तो है
बेटी के सामने गाली न देने की..!!
सोचता हूं..
फ़िर भी दिन भर में
कितनी बार
और क्यों
भभकता है
ये आदमी
करता है कितनों की 
मां बहनों से
शाब्दिक दुराचरण..?
नहीं सच है 
वो ये सब न करता था
पहले कभी !
सुलगता भी न था
भभकता भी तो न था
आज़कल क्या हुआ उसे
तभी
सेंटर-टेबिल पर रखा
अखबार फ़ड़फ़ड़ाया
दीवार पर टंगा टी.वी. मुस्कुराया
अब समझा
वो आदमी सुलगाया जाता है
रोज़
इन्हीं के ज़रिये

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