धर्म का बहुविकल्पीय होना जरूरी है..!
*धर्म का बहुविकल्पीय होना जरूरी है* *गिरीश मुकुल* धर्म अगर विकल्पों से युक्त ना हो तो उसे धर्म कहना ठीक नहीं है। धर्म का सनातन स्वरूप यही है। या कहिए सनातन धर्म की विशेषता भी यही है। हम धर्म को परिभाषित करने और समझने के लिए बहुतेरे कोणों उपयोग और अंत में यह कह देते हैं कि-" भारत मैं पूजा पाठ का पाखंड फैला रखा है ब्राह्मणों ने। सनातन धर्म को केवल पूजा पाठ एवं कर्मकांड से जोड़ना अल्प बुद्धि का परिचायक है। सनातन एक व्यवस्था है बहुविकल्पीय व्यवस्था है सनातन में नवदा-भक्ति का उल्लेख मिलता है। श्रवण, कीर्तन,स्मरण, पादसेवन,अर्चन , वंदन , दास्य , सख्य एवं आत्मनिवेदन - यहां यह स्पष्ट हो जाता है कि जो हम रिचुअल्स अर्थात प्रक्रियाएं अपनाते हैं जिसे सामान्य रूप से कर्मकांड कहते हैं ही सनातन नहीं है बल्कि 9 प्रकार की उपरोक्त समस्त भक्ति सनातन व्यवस्था में वर्णित है। आप सभी समझ सकते हैं कि नवदा भक्ति से ब्रह्म तत्व की प्राप्ति संभव है। बहुत से पंथों मतों और संप्रदायों संस्थापक द्वारा दिए गए निर्देशों का ही पालन होता है। जबकि सनातन धर्म में उपासना को भी बंधनों से