ध्वज तिरंगा लौहित किले पे अनमना है ।
यह कविता राष्ट्र द्रोहियों की दुरभि संधि को उजागर कर रही है 26 जनवरी से लेकर 3-4 अप्रैल 2021 तक की घटनाओं की निकटता को प्रस्तुत कर रही है। देखना है शाहीन बाग पर अश्रुपात करने वाली कलमों की #पहल क्या होगी ..? व्योम पे देखो ज़रा क्या तम घना है ? रुको देखूँ शायद ये मन की वेदना है ।। रक्त वीरों का सड़क को रंग रहा है - ध्वज तिरंगा लौहित किले पे अनमना है । आज ग़र कौटिल्य मिल जाये कदाचित कहूँगा जन्म लो चाणक्य मेरी याचना है । बंदूक से सत्ता के पथ खोजे जा रहें हैं- जनतंत्र मेरे वतन का अब अनमना है ।। आयातित बकरियों, का चरोखर देश ये कर्मयोगी बोलिये, अब क्या बोलना है ? आज़ाद मुक्ति मांगते बेशर्म होकर - मुक्ति की ये मांग कैसी, और कैसी चेतना है ? आज़ फिर सुकमा की ज़मीं को रंगा उनने दुष्टों का संहार कर दो भला अब क्या सोचना है ।।