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27.8.22

बापू के बंदरों के वंशज

    *बापू के बंदरों के वंशज*
         ( व्यंग्य-गिरीश बिल्लोरे मुकुल)
   महात्मा गांधी ने हमें जिन तीन बंदरों से परिचय कराया था उन्हीं के वंशजों से हमारा अचानक मिलना हो गया। तीनों की पर्सनालिटी अलग अलग नजर आ रही थी यहां तक कि वे बंदरों से ही अलग थे।
   व्यक्तित्व में बदलाव तो होना चाहिए स्वाभाविक है कि विकास अनुक्रम में सांस्कृतिक विकास सबसे तेजी से होता है इसमें नए नए शब्द मिलते हैं। शारीरिक शब्दावली आप बदली हुई देख सकते हैं। बापू के तीनों बंदर वाकई में बदल चुके थे। बंदर क्या वह इंसानों से बड़े इंसान बंदर नजर आ रहे थे।
  आपको याद होगा जिस बंदर ने अपनी कान में अंगुलियां डाल रखी थी , उसकी  वंशज ने मुझसे गर्मजोशी से हाथ मिलाया। और कुछ नहीं लगा क्या कर रहे हो आजकल हमने अपना बायोडाटा रख दिया और कहा अब आप तीनों ने मेरा परिचय तो जान लिया होगा आप लोग क्या कर रहे हैं मुझे बताने का कष्ट कीजिए...!
  हां मेरे दादाजी कान में उंगली डाल कर गांधी जी के पास रहा करते थे। हम भी वही कुछ सबको सिखा रहे हैं।
अच्छा....यह तो बहुत अच्छी बात है।
नहीं नहीं आप समझ नहीं पा रहे हैं..! बंदर ने कहा, हम लोगों को बता रहे हैं कहां से कैसी आवाज आ रही है, कौन कह  रहा है, इस पर तुम्हें ध्यान देने की बिल्कुल जरूरत नहीं। क्योंकि तुम्हारी औकात तो है नहीं अगर सुनोगे तो फिर उत्तेजित होकर एक्शन मोड में आ जाओगे.. ! हो सकता है कि आ बैल मुझे मार वाली स्थिति का निर्माण भी कर लो। तो ऐसे मसलों को सुनने की जरूरत क्या है। भाई युक्ति से मुक्ति मिलती है युक्ति लगाओ और मुक्त रहो क्या बुराई है?
    मित्रों उस महान बंदर की संतान का जितना आभार माना जाए कम है। मध्यम वर्ग के लिए तो यह एकदम फिट बैठता है। मध्यवर्ग को इस प्रथम बंदर की औलाद का उपदेश आत्मसात कर लेना चाहिए भाई।
  तभी दूसरे बंदर ने सिगरेट जलाई और मेरी तरफ मुखातिब होकर पूछा - तुम कवि लेखक निबंधकार ब्लॉग लेखक हो?
मेरा उत्तर हां में था। मैंने भी उससे प्रति प्रश्न किया तो तुम्हें मेरा लिखा हुआ पसंद आता है?
    तभी कॉफी हाउस में चलने का अनुरोध सुनकर मैं उनके पीछे पीछे हो लिया।
    अनुकूल टेबल चुनकर हम बैठ गए। दूसरे बंदर ने कहा-" तुम्हें मैं बिल्कुल नहीं पढ़ता ! हां तुम्हारी फोटो शोटो पेपर में देख कर लगता है कि तुम लिखते हो किसी ने बताया भी था कि तुमने एक किताब लिख मारी है सॉरी भाई बुरा मत मानना अब हम ठहरे बंदर इधर से उधर उधर से इधर टाइम कहां मिलता है?
मैंने पूछा - चलो ठीक है बताओ तुम्हारा धंधा क्या है ?
     मैं भी सोशल एजुकेशन फील्ड में काम कर रहा हूं। मैं ऐसे नेगेटिव स्थापित करने में अपनी क्लाइंट की मदद करता हूं जिससे क्लाइंट के पक्ष में वातावरण निर्मित हो। मैं पब्लिक को सिखाता हूं यह मत देखो वह मत देखो जो मैं दिखा रहा हूं वही देखो। और फिर मैं वह चीज दिखा देता हूं जिसे मुझे बेचना होता है। छोटी सी बात है कि घर में कपूर जलाने से इंसेक्ट भाग जाते हैं। मैंने सिखाया है-" प्रिय भारतवंशियों , प्रगतिशील हो इंसेक्ट किलर स्प्रे रखो। सर में दर्द हो तो तेल पानी की मालिश मत करो अरे भाई फला कंपनी ने दवा बनाई है ना बहुत रिसर्च किया है एक बार फिर पुरानी रूढ़ीवादी बातों से छुटकारा भी तो चाहिए तुम्हें। मेरी बातें सुनकर लोग जरूर प्रभावित होते हैं मेरा क्लाइंट मुझे धन देता है मेरे बच्चों का लालन-पालन होता है। सब का मस्तिष्क ठंडा ठंडा कूल कूल रखता हूं मैं। सच बताऊं मैं सब कुछ बेच सकता हूं। कभी आजमाना मेरी सेवा में लेकर देखना..!
  मैंने उस बंदर से कहा-"भाई.., मैं ठहरा ऑफिस का बाबू मैं क्या कर सकता हूं मेरे पास कोई प्रोडक्ट नहीं है।
   बंदर बोला-" मौका तो दो मैं तुम्हें भी बेच सकता हूं"
  अब तक  वेटर चार कॉफी लेकर आ चुका था। सब जानते हैं कि मैं नाकारा नामुराद व्यक्ति हूं मुझसे किसी को कोई फायदा कभी हो सकता है भला? परंतु मेरे भी भाव लग सकते हैं मैं बेचा जा सकता हूं सुनकर मुझे विस्मित होना स्वभाविक था। एक बार तो मैं महसूस करने लगा कि वह बंदर  मुझे नीलाम कर रहा है सामने बहुत सारे गधे खड़े हैं और मुझे खरीदने का मन भी कई लोग बना चुके हैं। तभी मुंह पर हाथ रखने वाले बंदर की औलाद ने मुझे हिलाया और पूछा- श्रीमान कहां खो गए?
  स्वप्नलोक से वापस आते मैंने देखा कि बंदरों ने लगभग आधी कॉफी समाप्त कर दी थी। तीसरे बंदर ने अपने आप अपनी कहानी बिना पूछे बतानी शुरू कर दी। उसे मालूम था कि मैं उससे भी कुछ पूछने वाला हूं।
    भाई मैं तो दुनिया की हर चीज देखता हूं हर चीज सुनता हूं और अपने पूर्वज की तरह मुंह बंद रखता हूं। जानते हो क्यों..?
मैं नहीं जानता तुम ही बता दो..!
तीसरा बंदर कहने लगा-" भाई सब देखने सुनने के बाद मैं उन लोगों के पास जाता हूं जिनसे बुरा हुआ है जिनमें बुरा किया है और फिर बताता हूं कि भाई इस सब को पब्लिक फोरम पर मैं नहीं लाने वाला अगर आप मेरे लिए पत्रं पुष्पं की व्यवस्था कर दें। मैं अपने मुंह पर उंगली रख लूंगा बिलकुल वैसे ही जैसे मेरे पूर्वज जो गांधी जी के साथ थे ने अपने मुंह पर उंगली रखी थी।
   इतना कहकर बंदर अचानक गायब होने लगे, कॉफी हाउस का वेटर मेरी ओर बिल लेकर आ रहा था, कि... मेरी पत्नी ने मुझे हिलाया, और चीखते हुए बोली-" तुम लेखकों का यही दुर्भाग्य है रात भर जागना और 9:00 बजे तक बिस्तर पर पड़े रहना.. बच्चों का ख्याल नहीं होता तो कब की तुम्हें छोड़कर मैके चली जाती..!"
    हम जैसे बेवकूफ लेखकों का भूतकाल वर्तमान और भविष्य इसी तरह की लताड़ का आदि हो गया है। यह अलग बात है कि स्वप्न में जिन बंदरों से मुलाकात हुई वह बंदर कितने विकसित हो चुके हैं कितने परिपक्व हैं यह हम अब तक ना समझ सके।
*डिस्क्लेमर : इस व्यंग्य का किसी से कोई लेना देना नहीं जिसे पढ़ना है पढ़ें समझना है समझो अपने दिल पर ना लें अगर आप गांधीजी के बंदर हैं तो भी और नहीं है तब भी*

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