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संगीता पुरी जी की कहानी मेरी जुबानी:अर्चना चावजी (पाडकास्ट)

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साभार: " स्वार्थ "ब्लाग से                आज इस व्‍हील चेयर पर बैठे हुए मुझे एक महीने हो गए थे। अपने पति से दूर बच्‍चों के सानिध्य में कोई असहाय इतना सुखी हो सकता है , यह मेरी कल्‍पना से परे था। बच्‍चों ने सुबह से रात्रि तक मेरी हर जरूरत पूरी की थी। मैं चाहती थी कि थोडी देर और सो जाऊं , ताकि बच्‍चे कुछ देर आराम कर सके , पर नींद क्‍या दुखी लोगों का साथ दे सकती है ? वह तो सुबह के चार बजते ही मुझे छोडकर चल देती। नींद के बाद बिछोने में पडे रहना मेरी आदत न थी और आहट न होने देने की कोशिश में धीरे धीरे गुसलखाने की ओर बढती , पर व्‍हील चेयर की थोडी भी आहट बच्‍चों के कान में पड ही जाती और वे मां की सेवा की खातिर तेजी से दौडे आते , और मुझे स्‍वयं उठ जाने के लिए फिर मीठी सी झिडकी मिलती। ( आगे= यहां ) संगीता पुरी जी की कहानी का वाचन करते हुए मैं अभिभूत हूं.

नाराज ना होना ..तकरार को दरार ना बनने देना

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 अंजना(गुड़िया) जी का आलेख यहाँ पढ़ें किसी तकरार को दरार ना बनने देना नाराज़ हो जाना, झगड़ लेना, मेरी गलती पे चाहे जितना डांट देना, पर अगली बार मिलो जो मुझसे, बस एक बार दिल से मुस्कुरा देना रंजिश ने हज़ारों दिलों में कब्रिस्तान बनाये हैं, तुम अपने दिल में दोस्ती को धड़कने देना बात होगी हो बात पे बात निकलेगी, किसी तकरार को दरार ना बनने देना नफरत, कड़वाहट, खुदगर्ज़ी नहीं मंज़ूर मुझे, इन में से किसी की भी ना चलने देना कुछ तो है जो हमारे खून का रंग मिलता है, इसमें मज़हब-ओ-सरहदों का रंग ना मिलने देना