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जबलपुर सम्भाग अटल बाल मिशन का सम्भाग स्तरीय प्रशिक्षण

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                         जबलपुर। बच्चों को कुपोषण से मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से जिले स्तर पर अटल बिहारी बाजपेयी बाल आरोग्य एवं पोषण मिशन के तहत् जिला स्तरीय कार्य योजनाऐं तैयार कराई गयी । मिशन मोड में‘‘ कुपोषण से मुक्ति के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रम को प्रभावपूर्ण एवं परिणाम मूलक बनाने के उद्देष्य से संभाग स्तर पर 5-5 दिवसीय प्रशिक्षण सत्र संचालित किये जा रहे है । श्री एस.सी. चौबे संयुक्त संचालक महिला बाल विकास जबलपुर संभाग के मार्गदर्शन में आयोजित प्रथम सत्र में जबलपुर,मंडला,बालाघाट,सिवनी छिंदवाड़ा,नरसिंहपुर,कटनी जिलों के 47 प्रतिभागी प्रशिक्षण में शामिल है । विभाग के मैदानी अमले को प्रशिक्षण प्रदान करेंगे ।जबलपुर सम्भाग स्तरीय  ट्रेनिंग आफ़ ट्रेनर्स के पहले चरण में दिये गए प्रशिक्षण में क्लास रूम प्रशिक्षण के अलावा क्षेत्रीय भ्रमण, रोल-प्ले,समूह-चर्चा का भी प्रावधान किया गया था.          जबलपुर संभाग में आयोजित इन प्रशिक्षण सत्रों की उपादेयता को रेखांकित करते हुए संयुक्त संचालक श्री एस. सी चौबे ने बताया कि ‘‘ मिशन मोड में कुपोषण नियंत्रण एवं पोषण स्तर में सकारात्मक सुधार के

कुपोषण : सामाजिक तहक़ीक़ात

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जी हां ये सच है कि कुपोषण को हम खत्म कर सकते हैं यदि संकल्प लें तो कोई भी ताक़त नहीं जो हमारे देश इस समस्या को मुक्त करने से हमको रोके !! जी हां , भारत वर्ष में कुपोषण की समस्या को एक जटिल सवाल  की तरह पेश किया है जो वास्तव में उतनी जटिल है नहीं इसे आसानी से दूर किया जा सकता है . यदि कुछ एतियात बरतें तो भारत के माथे लगे इस कलंक को आसानी से हटाया जा सकता है . कुछ अति उत्साही लोग भारत को ईथोपिया के साथ ला के खड़ा करने कि कोशिश करतें हैं. जो वाक़ई एक सनसनाहट फ़ैलाने की नाक़ाम कोशिश है  अगर हम कारणों पर गौर करें तो पाएंगे कि सामाजिक सोच ही इस समस्या का दोषी है. समाज़ का बेटियों को बोझ समझना इस के कारणों में से एक कारण है बेटे की प्रतीक्षा करते दम्पत्ति परिवार का आक़ार बढ़ा लेतें हैं.   उन बेटियों को बोझ मानना जो किशोरावस्था आते-आते ब्याह दी जाती हैं यानि बेहद कठिन उम्र होतीं हैं किशोर-वय     की बेटियों को इस उम्र में जो नहीं देते परिवार . इस स्थिति के चलते भटकाव आ ही जाता है. किशोरी को बिना फ़िज़िकली स्ट्रांग एवं प्रजनन के योग्य होने संबंधी बातों का ज्ञान दिए इस बात का ज्ञान अवश्य ही दे दिया

“कुपोषण एक अहम् मुद्दा होना ही चाहिये !“

कुपोषण एक अहम् मुद्दा होना ही चाहिये एन डी टी वी की इस एक्सक्लूजिव रिपोर्ट अवश्य  देखिये :-'' कमी की कीमत '' भारत के संदर्भ  में यह अब तक की सबसे प्रभावशाली जन चेतना फैलाने वाली इस रिपोर्ट में. कुपोषण को लेकर जो बात कही गई है उसका वास्ता हम से है और हो भी क्यों न एक अरब हो रहे होने जा रहे हम लोगों के कल की तस्वीर साफ़ सुन्दर और ताज़ी हो...... मित्रो शब्दों नारों से नहीं भारत की तस्वीर बदलेगी हमारी सोच को आकार देने से.....! साथियो हाथ बढ़ाने की ज़रूरत है....आपको क्या करना है.............. कच्ची उम्र में सामाजिक सम्मान रीतियों  के नाम पर बालिकाओं के  विवाह  रोकें हर मां को  चिकित्सक की देखरेख में सुरक्षित प्रसव के लिये प्रेरित करें सहयोग करें बेटियों में होने वाली खून की कमी को रोकें गर्भवति महिला को आयरन के उपयोग की प्रेरणा दें  शिशु को कम से कम चार माह तक सिर्फ़ माता के दूध की सलाह दी जाये  बच्चे  को कम से कम पांच बार भोजन स्वच्छता  जन्म में अन्तर  सूक्ष्म-पोषक तत्व के प्रयोग पर बल 

'' कुपोषण कोई बीमारी नहीं, बल्कि बीमारियों को भेजा जा रहा निमंत्रण पत्र है

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जी हाँ एक अखबार में प्रकाशित  समाचार में  शिशु उत्तर जीविता के मसले पर सरकार द्वारा उत्तरदायित्व पालकों का नियत करना अखबार की नज़र में गलत है. इस सत्य को   अखबार चाहे जिस अंदाज़ में पेश करे  यह उनके संवाद-प्रेषक की निजी समझ है तथा यह उनका अधिकार है......! .  किन्तु यह सही है  कि अधिकाँश भारतीय ग्रामीणजन/मलिन-बस्तियों के निवासी  लोग महिलाओं के प्रजनन पूर्व  स्वास्थ्य की देखभाल और बाल पोषण के मामलों में अधिकतर उपेक्षा का भाव रखते हैं . शायद लोग इस मुगालते में हैं कि सरकार उनके बच्चे की देखभाल के लिए  एक एक हाउस कीपर भी दे ...? बच्चे को जन्म देकर सही देखभाल करना पालकों की ज़िम्मेदारी है अब तो क़ानून भी स्पष्ट है  . वर्ष 1990 में मेरे एक पत्रकार मित्र ने मुझसे यही कहा था.मित्र को मैंने कहा था कि पिताओं और परिवार के मुखिया की प्राथमिकता में  ''महिलाओं के प्रजनन पूर्व  स्वास्थ्य की देखभाल और बाल पोषण सबसे आख़िरी बिंदु है...! उनको यकीं न हुआ तब  हमने संयुक्त रूप से कांचघर चुक जबलपुर की पहाड़ी पे बसी  शहरी गन्दी बस्ती का संयुक्त भ्रमण किया दूसरे दिन उनने छै कालमी रिपोर्ट का शीर्षक