जबलपुर संभाग में आयोजित इन प्रशिक्षण सत्रों की उपादेयता को रेखांकित करते हुए संयुक्त संचालक श्री एस. सी चौबे ने बताया कि ‘‘ मिशन मोड में कुपोषण नियंत्रण एवं पोषण स्तर में सकारात्मक सुधार के उद्देश्य से नियमित रूप से पदस्थ अधिकारियों को मिशन मुख्यालय से प्राप्त अनुदे्शों के अनुरूप 5 दिवसीय प्रशिक्षण दिया जा रहा है। प्रशिक्षण सत्र के प्रभावी एवं सुचारू संचालन हेतु मेडिकल कालेज चिकित्सालय के डा. रवीन्द्र विश्नोई एवं डा.ए.आर.त्यागी भोपाल से राज्य प्रशिक्षक श्रीमति पुष्पा सिंह प्रशिक्षक के रूप में उपस्थित है। सुश्री डिंपल पोषण अधिकारी यूनिसेफ भोपाल भी प्रशिक्षक में उपस्थित रहीं । प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रबंधन में श्री अभिनव गर्ग श्री निषांत दीवान सुश्री तरंग मिश्रा, श्रीमति रीता हरदहा का सहयोग उल्लेखनीय है।
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शनिवार, मार्च 03, 2012
जबलपुर सम्भाग अटल बाल मिशन का सम्भाग स्तरीय प्रशिक्षण
रविवार, जून 20, 2010
कुपोषण : सामाजिक तहक़ीक़ात
जी हां ये सच है कि कुपोषण को हम खत्म कर सकते हैं यदि संकल्प लें तो कोई भी ताक़त नहीं जो हमारे देश इस समस्या को मुक्त करने से हमको रोके !!
जी हां , भारत वर्ष में कुपोषण की समस्या को एक जटिल सवाल की तरह पेश किया है जो वास्तव में उतनी जटिल है नहीं इसे आसानी से दूर किया जा सकता है . यदि कुछ एतियात बरतें तो भारत के माथे लगे इस कलंक को आसानी से हटाया जा सकता है . कुछ अति उत्साही लोग भारत को ईथोपिया के साथ ला के खड़ा करने कि कोशिश करतें हैं. जो वाक़ई एक सनसनाहट फ़ैलाने की नाक़ाम कोशिश है
अगर हम कारणों पर गौर करें तो पाएंगे कि सामाजिक सोच ही इस समस्या का दोषी है. समाज़ का बेटियों को बोझ समझना इस के कारणों में से एक कारण है
- बेटे की प्रतीक्षा करते दम्पत्ति परिवार का आक़ार बढ़ा लेतें हैं.
- उन बेटियों को बोझ मानना जो किशोरावस्था आते-आते ब्याह दी जाती हैं यानि बेहद कठिन उम्र होतीं हैं किशोर-वय की बेटियों को इस उम्र में जो नहीं देते परिवार . इस स्थिति के चलते भटकाव आ ही जाता है. किशोरी को बिना फ़िज़िकली स्ट्रांग एवं प्रजनन के योग्य होने संबंधी बातों का ज्ञान दिए इस बात का ज्ञान अवश्य ही दे दिया जाता है कि तुम पराई हो . तुम्हारा कल ससुराल के लिए विधाता ने बनाया है.. ससुराल जाते ही बिटिया के पांव भारी होते ही पुत्र वती भव: का आशीर्वाद दिया जाता है . किसी ने कभी गर्भवती महिला को पुत्रीवती होने का आशीर्वाद नहीं दिया. खानपान में अनियमितता, आहार थाली में अपर्याप्तता तत्वों युक्त भोज्य पदार्थों से जैसे तैसे पेट भर लेने की आदत आम भारतीय औरत की हो जी जाती है. मैने अपनी दादी-नानी और मां को कभी समय पर आहार लेते नहीं देखा. मेरी दादी और मां दौनो ही गाहे बगाहे एनीमिया की शिकार हो जाती थीं. किंतु जब बहुत बीमार हो जातीं थी तब ही आराम करते देखा है हमने वरना बस सदा काम ही काम. दूसरों के लिये जीना उनका धर्म था. ये करिश्मा ही था कि हम बच्चों का जन्म के समय का वज़न 3.00 किलो ग्राम से कम न था और हम कुपोषण का शिकार नहीं हुए किन्तु उन दौनों को जीवन भर अल्परक्तता से जूझना पड़ा. यद्यपि यह मसला विषयेतर है किंतु यह सत्य है कि अल्प-आय वाले परिवारों की अल्प-रक्तता ग्रस्त महिलाएं इससे अधिक कठिन स्थितियों से जूझतीं हैं. किशोरियों के स्वास्थ्य को लेकर सरकारें कुछ कम कर रहीं हैं ऐसा कहना ग़लत ही नहीं बल्की सफ़ेद झूठ है.हमारे पास इसे देखने का वक़्त होना चाहिये . सरकारों ने जो किया या जो कर रहीं है उसे आप भी देखिये और एक ज़िम्मेदार भारतीय नागरिक होकर ग़रीब अशिक्षित परिवारों को जानकारी ज़रूर दीजिये
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किशोरीयां को अपने स्वास्थ्य की देखभाल के लिये मानसिक रूप से तैयार करने की ज़िम्मेदारी समाज की और परिवारों की है. ताकि प्रजनन के पूर्व वे स्वस्थ्य हों. तथा प्रजनन के वक़्त अल्परक्तता को समय रहते आकार हीन कर दें.
क्रमश: जारी आगे देखिये : कुपोषण कारण और निदान , हमारे प्रयास
संदर्भ (लिंक्स) शनिवार, मई 22, 2010
“कुपोषण एक अहम् मुद्दा होना ही चाहिये !“
कुपोषण एक अहम् मुद्दा होना ही चाहिये एन डी टी वी की इस एक्सक्लूजिव रिपोर्ट अवश्य देखिये :-'' कमी की कीमत '' भारत के संदर्भ में यह अब तक की सबसे प्रभावशाली जन चेतना फैलाने वाली इस रिपोर्ट में. कुपोषण को लेकर जो बात कही गई है उसका वास्ता हम से है और हो भी क्यों न एक अरब हो रहे होने जा रहे हम लोगों के कल की तस्वीर साफ़ सुन्दर और ताज़ी हो...... मित्रो शब्दों नारों से नहीं भारत की तस्वीर बदलेगी हमारी सोच को आकार देने से.....! साथियो हाथ बढ़ाने की ज़रूरत है....आपको क्या करना है..............
- कच्ची उम्र में सामाजिक सम्मान रीतियों के नाम पर बालिकाओं के विवाह रोकें
- हर मां को चिकित्सक की देखरेख में सुरक्षित प्रसव के लिये प्रेरित करें सहयोग करें
- बेटियों में होने वाली खून की कमी को रोकें
- गर्भवति महिला को आयरन के उपयोग की प्रेरणा दें
- शिशु को कम से कम चार माह तक सिर्फ़ माता के दूध की सलाह दी जाये
- बच्चे को कम से कम पांच बार भोजन
- स्वच्छता
- जन्म में अन्तर
- सूक्ष्म-पोषक तत्व के प्रयोग पर बल
गुरुवार, मार्च 18, 2010
'' कुपोषण कोई बीमारी नहीं, बल्कि बीमारियों को भेजा जा रहा निमंत्रण पत्र है
जी हाँ एक अखबार में प्रकाशित समाचार में शिशु उत्तर जीविता के मसले पर सरकार द्वारा उत्तरदायित्व पालकों का नियत करना अखबार की नज़र में गलत है. इस सत्य को अखबार चाहे जिस अंदाज़ में पेश करे यह उनके संवाद-प्रेषक की निजी समझ है तथा यह उनका अधिकार है......! . किन्तु यह सही है कि अधिकाँश भारतीय ग्रामीणजन/मलिन-बस्तियों के निवासी लोग महिलाओं के प्रजनन पूर्व स्वास्थ्य की देखभाल और बाल पोषण के मामलों में अधिकतर उपेक्षा का भाव रखते हैं . शायद लोग इस मुगालते में हैं कि सरकार उनके बच्चे की देखभाल के लिए एक एक हाउस कीपर भी दे ...? बच्चे को जन्म देकर सही देखभाल करना पालकों की ज़िम्मेदारी है अब तो क़ानून भी स्पष्ट है . वर्ष 1990 में मेरे एक पत्रकार मित्र ने मुझसे यही कहा था.मित्र को मैंने कहा था कि पिताओं और परिवार के मुखिया की प्राथमिकता में ''महिलाओं के प्रजनन पूर्व स्वास्थ्य की देखभाल और बाल पोषण सबसे आख़िरी बिंदु है...! उनको यकीं न हुआ तब हमने संयुक्त रूप से कांचघर चुक जबलपुर की पहाड़ी पे बसी शहरी गन्दी बस्ती का संयुक्त भ्रमण किया दूसरे दिन उनने छै कालमी रिपोर्ट का शीर्षक दिया 'उनकी प्राथमिकता है शराब न कि अपनी मासूम संताने' परन्तु पालकों के प्रति व्याकुल मन की तासीर बदलने वाली कहाँ ..? जिद ठान ली कि कम से कम अपनी कोशिश पूरी करूंगा पिछले चार साल से गाँवों के लिए काम कर रहा हूँ अपने मेरे प्रोजेक्ट क्षेत्र में मेरी पर्यवेक्षिका श्रीमती सुषमा नाईक ने सूचना -संचार-प्रणाली , का विकास किया जिसके सहारे आँगनवाड़ी केन्द्रों की संचालिकाएं [जिनको आँगनवाड़ी कार्यकर्ता कहा जाता है ] कुपोषण के शिकार बच्चों की प्रतीक तस्वीरों के ज़रिये बतातीं हैं कि आपका शिशु/बच्चा किस पोषण स्तर पर है . नीचे ग्राम देवरी पंचायत बहोरीपार, जनपद जबलपुर ग्रामीण से चिन्हित सात गंभीर कुपोषित बच्चों के तीन माह के वज़न आधारित पोषण स्तर को दिखाया जा रहा है. पहले माह माह में सातों प्रतीक बच्चे खतरनाक ज़ोन यानि लाल ज़ोन में थे . जिनमें से तीन बच्चे उबर आये हैं खतरे से और कम खतरे वाले क्षेत्र में आ गए हैं . पर्यवेक्षिका,आंगनवाडी-कार्यकर्ताऑ के साथ मेरी चिंता अभी बरकरार है कि कब ये बच्चे हरे-क्षेत्र में आ जावेंगे. यानि खतरे से बाहर
इस चित्र में श्रीमती नाईक बता रहीं हैं कि लाल पुतले जो गाँव विशेष के गंभीर कुपोषित बच्चों के प्रतीक हैं जिनको पहले पीले फिर धीरे-धीरे हरे ज़ोन में लाना हर माँ-बाप की ज़िम्मेदारी है. !''-इस तरह चार्ट का अनुप्रयोग कर जाग्रतिलाने की कोशिशें जारी हैं पिछले तीन माहों से गाँव गाँव में . इस प्रयोग से मुझे और मेरी टीम को जो सफलता मिली उसे एक अखबार ने कुछ ऐसे बयाँ किया
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