जनम दिन मुबारक हो समीर भाई |
एक बात और हमाओ तुमाओ जबलपुर अब बदल गयो भैज्जा सिटी काफी हाउस में सदर में गंजीपुरा वारे काफी हाउस में अब कोऊ ऐसी चर्चा
सुनो तुमाए सदर वालो कॉफ़ी-हाउस भौतई बदल गओ है नई होय आज कल के एक बीता कमर बारे मौड़ा-मोड़ी आत हैं काफी पीयत हैं फुर्र से बाइक लैखें मौड़ा जा बाजू मौड़ी बा बाजू निकल जात है. बाप कमाई पे ऐश करत हैं खुद कमाएँ तो जाने तब हम ओरे चन्दा कर खें काफी पियत हते आप कमाई भी कर लेट हते पर अब देखो बाप कमा कमा के जेबकट बनो जात रहो है मौड़ा - मौड़ी। ……. अब जाने दो भैया मरहई खों। … आप जानतइ हो एक बात नई जा है की अब मानस भवन बिल्लकुल बदल गओ है । पर इतै वारे बिलकुल नईं बदले मालवी-चौक से हल्के रगड़ा किमाम १२० वारे पान लगवाए एक उतइ मसक लओ बाक़ी जेब में रक्खे । रफ़ी स्मॄति वारो प्रोग्राम देखत सुनत गए .. पान खात खात पिच्च पिच्च ठठरी बंधों ने मानस-भवन आडीटोरियम की दीवारन की तो ....... दई... बस दो प्रोग्राम हो पाए हैं होली तक देखने पीक से इत्तो माडर्न आर्ट बना हैं ……… के कि खुद महान चित्रकारन की आत्माएं इतै कार्यशाला करत नज़र आहैं... बड्डॆ सच्ची बात है.. पिकासो आहैं सदारत के लाने ।
सुनो तुमाए सदर वालो कॉफ़ी-हाउस भौतई बदल गओ है नई होय आज कल के एक बीता कमर बारे मौड़ा-मोड़ी आत हैं काफी पीयत हैं फुर्र से बाइक लैखें मौड़ा जा बाजू मौड़ी बा बाजू निकल जात है. बाप कमाई पे ऐश करत हैं खुद कमाएँ तो जाने तब हम ओरे चन्दा कर खें काफी पियत हते आप कमाई भी कर लेट हते पर अब देखो बाप कमा कमा के जेबकट बनो जात रहो है मौड़ा - मौड़ी। ……. अब जाने दो भैया मरहई खों। … आप जानतइ हो एक बात नई जा है की अब मानस भवन बिल्लकुल बदल गओ है । पर इतै वारे बिलकुल नईं बदले मालवी-चौक से हल्के रगड़ा किमाम १२० वारे पान लगवाए एक उतइ मसक लओ बाक़ी जेब में रक्खे । रफ़ी स्मॄति वारो प्रोग्राम देखत सुनत गए .. पान खात खात पिच्च पिच्च ठठरी बंधों ने मानस-भवन आडीटोरियम की दीवारन की तो ....... दई... बस दो प्रोग्राम हो पाए हैं होली तक देखने पीक से इत्तो माडर्न आर्ट बना हैं ……… के कि खुद महान चित्रकारन की आत्माएं इतै कार्यशाला करत नज़र आहैं... बड्डॆ सच्ची बात है.. पिकासो आहैं सदारत के लाने ।
अंग्रेज़ गये अग्रेज़ी छोड़ गए इन भुट्टॆ वालों के पास |
किसलय जी हरियाए से हैं महेन भैया मज़े में कहाए । बबाल की न पूछियो - तुम तो जानत हो बडॊ़ अलाल अपनो बबाल । संजू नै तो कसम खा लई है कि बे अपने बिल से तब निकल हैं जब समीर दादा आंहैं । अरे एक बात बताने हती- गढा़ ओव्हर ब्रिज़ पे दुकान बज़ार खुल गओ है. आज़कल भुट्टा बिक रये हैं. हमें दस रुपैया को एक मिलो नगर निगम वारों को मुफ़त में मिलत है ऐंसी हमने सुनी है.. सच्ची का है भूट्टा बारो जाने कि खुद भुट्टा जाने नगर निगम के करमचारी से हम काय पूछैं.. ?
पहाड के जा तरफ़ सबरे जैसे हथे औंसई हैं बदल तो तुम गये दो साल हो गये न आए न राम-जुहार भई … कौन टाईप के अदमी हो समीर भाई ?
जौन टाईप के अदमी हो रहे आओ आने तो हों आ जाने आज तो जनम दिन की बधाई लै लो दद्दा । .