दृढ़ता कभी नहीं रोती और अन्य दो कविताएँ
दृढ़ता कभी नहीं रोती मैं एक अहर्निश अविरल सा शोकगीत मृत्यु छंद में आबद्ध जीवंत हूँ जीवट हूँ मरता हूँ तो भी सवालखिया हाथी सा जीता हूँ तो भी बेशकीमती पाखी सा मेरी एक एक बूँद जमीं पर गिरती है फिर जी उठता हूँ रक्तबीज जो हूँ । यातनाएं मुझे कुंठित नहीं कर जातीं मृत्यु मुझे पाशबंधित नहीं कर पाती मैं एक अवस्था हूँ एक व्यवस्था हूँ अत्यधिक सहने की चुप रहने की आपने किसी स्तूप के पत्थर को देखा है कभी रोते सुबकते ? कभी तुमने देखा है शेर शावकों हिरणों को बुद्ध से विलगते हुए नहीं न दृढ़ता कभी नहीं रोती मृदुल मुस्काती हुई छेड़ देती है शोकगीत दुनिया रोती है पर मैं जो सुदृढ़ हूँ व्यवस्था हूँ जो रोती नहीं आप दुनिया हो रोते हो रोते रहोगे मेरे नाम पर . खिलखिलाकर हँसना मना है तुम औरत हो तुम किन्नर हो तुम अपाहिज हो गंभीर बनो तुम्हारे मुँह से निकली हँसी ठीक नहीं मनु-स्मृति में लिखा है मत बैठाओ अपाहिजों को पंगत में संगत में किसी ने क्या खूब कहा है अक्ल हर बात को जुर्म बना देती है . बेशक ... फाड़ दो ऐसा साहित्य अग्राह्य कर दो हो