एक पान हल्का रगड़ा किमाम और एक मीठा घर के लिये .............बिना सुपारी का..
जाने कितने चूल्हे जलाता है पान .. कटक.. कलकतिया..बंगला. सोहागपुरी.. नागपुरी. बनारसी पान . किमाम.. रत्ना तीन सौ भुनी सुपारी और रगड़े वाला पान.. ऊपर गोरी का मकान नीचे पान की दुकान वाला पान जी हां मैं उसी पान की बात कर रहा हूं जो नये पुराने रोजिया मिलने वाले दोस्तों को श्याम टाकीज़ , करम चंद चौक , मालवीय चौक अधारताल , घमापुर , रांझी , इनकमटेक्स आफ़िस के सामने , रसल-चौक , प्रभू-वंदना टाकीज़ , गोरखपुर , ग्वारीघाट , यानी हर खास - ओ- आम ज़गह पर मिलता है. जबलपुर की शान पहचान है पान..!! एक पान हल्का रगड़ा किमाम और एक मीठा घर के लिये .............बिना सुपारी का.. जबलपुर वाले रात आठ के बाद पान की दूक़ान पर अक्सर यही तो कहते हैं.. बड्डा हम जेई सुन के बड़े हुए और अब पान की दूकान में जाके जेई बोलते हैं कॉलेज़ के ज़माने से हम पान चबाने का शौक रखते हैं. चोरी चकारी से हमने पान में रगड़ा खाना शुरु किया. डी.एन.जैन कालेज़ में पढ़ने के दौर से अब तक हमने जाने कितने पान चबाए हैं हमें तो याद नहीं.. याद करके भी क्या करेंगें. हम को तो यह भी याद