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शुक्रवार, दिसंबर 03, 2010

ब्लागिंग पर राष्ट्रीय कार्यशाला आधिकारिक रपट

सलेट लिये चार : अर्थ निकालने की स्वतंत्रता सहित
 दिनांक 01/12/2010 को जबलपुर की होटल-सूर्या में "हिंदी ब्लागिंग विकास और सम्भावना" विषय पर केंद्रित
पंकज स्वामी गुलुश ने कार्यशाला के प्रारम्भ में विषय प्रतिपादन-अभिव्यक्ति में कहा :-
तेज़ी से विकसित हो रही ब्लागिंग के भविष्य को समृद्ध एवम सशक्त निरूपित करते हुए कहा कि ’नागरिक-पत्रकारिता के इस स्वरूप (ब्लागिंग) को’ पांचवे स्तम्भ का दर्ज़ा हासिल हो ही चुका है सबने ब्लागिंग की ताक़त को पहचाना है . महानगरों से लेकर कस्बाई क्षेत्रों तक हिंदी ब्लागिंग नेट की उपलब्धता पर निर्भर करती है. जिन जिन स्थानों पर नेट की उपलब्धता सहज रूप से सुलभ है वहां तक ब्लागिंग का विस्तार हो रहा है. विकास के इस दौर में हिन्दी में ब्लाग लेखन कई कई कारणों से ज़रूरी और आवश्यक है. बाधा हीन  स्वतंत्र-अभिव्यक्ति
संवाद की निरन्तर सीधी एवम सुलभ सुविधा 
पाडकास्टिंग,वेबकास्टिंग, के लिये नई सुविधाओं की उपलब्धता
अखबारों,समाचार-माध्यमों में नागरिक अभिव्यक्ति के लिये स्वतन्त्र स्थान का अभाव
 हिन्दी में अधिकाधिक पाठ्य सामग्री  की  नेट पर आवश्यक्ता 
अखबारों की मदद 
सूचनाऒ का सहज प्रवाह 
गुलुश जी ने अपने विचार रखते हुए यह भी कहा कि :- ब्लागर्स मासिक साप्ताहिक या पाक्षिक अथवा जैसी भी परिस्थियां हो आपस में मिलें अवश्य ताकि  आपसी चर्चा कर अपने ब्लाग/ब्लागिंग  के विकास  की युक्तियों को तलाश सकते हैं .  साथ ही ब्लागिंग के स्वस्थ्य स्वरूप को देखा जा सके. सनसनीखेज विषयॊं पर टिप्पणी करते हुये गुलुश जी की राय थी : लोग प्रवृत्ति से इन विषयों के प्रति आकर्षित होते  हैं . जो ब्लाग क्या अखबारों,चैनल्स,यूट्यूब, यानी सभी माध्यमों की ताक़त बन जाता है ऐसा माना जा रहा किंतु जो चीज़ अमर होनी होती है उसे स्वच्छ रखना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिये.   
साभार: झा जी कहिन

  संजय की दिव्यदृष्टि के बारे में हम सभी जानते हैं कि उन्होंने धृतराष्ट्र को घर बैठे महाभारत का आँखों देखा हाल सुनाया था. द्वापर के बाद हम कहें कि वर्तमान उससे भी आगे बढ़ चुका है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. आदिकाल से जिज्ञासु प्रवृत्ति वाला मानव कल्पनाओं को साकार करने शाश्वत क्रियाशील रहा है. किस्सागोई, लेखन, प्रिंटिंग, रिकार्डिंग और दृश्यांकन से प्रारम्भ होकर आज हम ऑनलाइन, अपने अधिकांश कार्यों का सम्पादन करने में सक्षम हैं. चार-पाँच दशक पूर्व कल्पना से परे अविष्कार आज अनपढ़, मजदूर और ग्रामीणों को भी सहज सुलभ होते जा रहे हैं. विकास और त्वरण की क्रांति आँधी-तूफ़ान से तेज चल रही है. सन्देश एवं साहित्य का आदान-प्रदान ध्वनियों, चित्रों और लिपियों से प्रारम्भ होकर आज अंतरजाल की दुनिया में अपनी पहचान बना चुका है. अंतरजाल तकनीकी अब तक ज्ञात सर्वाधिक विकसित सुविधा प्रणाली है. विश्व की विभिन्न भाषाओं के साथ ही इसका हिंदी में भी प्रचलन बढ़ा है. इस बहुआयामी अंतरजाल तकनीकी से हमारा साहित्य एवं पत्रकार जगत भला कैसे पीछे रहता. आवश्यकतानुसार शनैः शनैः अंतरजालीय उपकरणों एवं साफ्टवेयर्स के माध्यम से आज हम किसी से कम नहीं हैं. अंतरजाल की सहायता से शुरू हुई ब्लागिंग आज निश्चित रूप से संचार क्रांति की विशेष उपलब्धि है. साहित्य, संदेश, समाचार, वार्तालाप, जानकारियाँ, नवीन अविष्कार, त्वरित प्रसारण के साथ-साथ कांफ्रेंसिंग जैसी सुविधाएँ की-बोर्ड की चन्द बटनों के दबाते ही आपकी स्क्रीन पर उपलब्ध हो जाती हैं. आज इन्हीं सारी सुविधाओं से परिपूर्ण हमारे हिन्दी ब्लॉगर्स त्वरित गति से विश्व में अपनी पहचान कायम कर चुके हैं. आज विश्व का अधिकांश जनसमुदाय भले ही अंतरजालीय सुविधा से वंचित हो परन्तु ब्लॉग्स, ई-मेल और नेट बैंकिंग जैसी सुविधाओं की जानकारी रखता है. आज विश्व में ब्लॉग्स और उनके पाठकों की बढ़ती संख्या इस विधा की सफलता के प्रमाण हैं. दो दशक पहले और आज के परिवेश में आमूल चूल बदलाव आ चुका है. आज देश, प्रदेश, शहर और कस्बाई स्तर पर भी ब्लागिंग के चर्चे होने लगे हैं. ब्लागर्स की बढ़ती संख्या और उसकी लोकप्रियता आज किसी से छिपी नहीं है. ब्लाग के जन्म और उसकी विकास यात्रा जो हम देख रहे हैं ये मात्र पड़ाव हैं, मंजिल नहीं. मंजिल तो हमारे द्वारा तैयार किए जा रहे आधार और तय की गई दूरी के बाद ही मिलेगी. आज हम जिस मंजिल की कल्पना कर रहे हैं वह तभी प्राप्त होगी जब हमारा आधार मजबूत होगा. यहाँ पर इसी आधार को मजबूत बनाने के लिये ब्लागिंग कार्य शाला का आयोजन किया गया है. ब्लागर्स जानते हैं कि इलाहाबाद, छत्तीसगढ़, वर्धा और दिल्ली में ' ब्लॉगर्स संगठन एवं इसके प्रचार-प्रसार हेतु आयोजित ब्लागर्स मीट '  भी इसी दिशा में उठाए आधारभूत कदम हैं. आज जब संस्कारधानी जबलपुर में ब्लागिंग पर चर्चा हो रही है तब ब्लागिंग के स्वरूप, प्रस्तुति, मर्यादा और आचार-संहिता पर भी चिन्तन और वार्तालाप जरूरी है.
                आज मैं चन्द छोटे-छोटे किन्तु महत्वपूर्ण बिन्दुओं की ओर आप सभी का ध्यान आकृष्ट कराना चाहता हूँ , जिन पर अमल कर हम सकारात्मक एवं आदर्श ब्लागिंग की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं:-

1. आज अनेक ब्लागर बन्धुओं ने ब्लागिंग को चौराहे की चर्चातक सीमित कर रखा है जबकि ये व्यक्तित्व, कृतित्व एवं सामाजिक सरोकारों की अभिव्यक्ति का विशाल मंच तथा हमारे सर्वांगीण विकास का माध्यम बन सकता है.
2. छोटी-छोटी अनुपयुक्त एवं खालिस व्यक्तिगत बातें, स्वार्थपरक वक्तव्य, वैमनस्यतापूर्ण आलेख तथा टिप्पणियों से बचने के साथ ही इन्हें बहिष्कृत भी करना होगा.
3. वाह-वाह, बहुत खूब एवं अतिसुन्दर जैसी गिव्ह एण्ड टेकवाली टिप्पणियों से परहेज करना होगा तथा दूसरों की पोस्ट पर यथासम्भव पढ़कर ही अपना अभिमत देने की मानसिकता पर बल देना होगा.

4. ब्लाग्स की वरिष्ठता के मानदण्ड छद्म पाठक नहीं पोस्ट की साहित्यिक गुणवत्ता और उपयोगिता को बनाना होगा. इससे एक ओर टिप्पणियों के बेतुके आदान-प्रदान के सिलसिले पर अंकुश लगेगा वहीं दूसरी ओर सकारात्मक लेखन को और प्रोत्साहन मिलेगा.
5. हमें अपनी ब्लागर मित्रमंडली के घेरे से बाहर निकलना होगा.
6. नव आगन्तुकों को स्नेह-आशीष के साथ ही उनके हितार्थ परामर्श की कड़ीबनाना होगी ताकि भावी ब्लागिंग में आशानुरूप परिष्करण प्रक्रिया को दिशा मिल सके.
7. ब्लागिंग में उपयोगी जानकारी एवं सुविधाओं के प्रचार-प्रसार के लिए भी लगातार ज्ञानवर्धक एवं उपयोगी पोस्ट प्रकाशित होते रहना चाहिए.
8. बदलते परिवेश में ब्लागिंग की महत्ता देखते हुए व्यक्तिगत एवं सहकारी तौर पर ज्ञानपरक पुस्तकें प्रकाशित होना चाहिए.
9. ब्लागिंग की उपयोगिता को शासकीय एवं अशासकीय शिक्षण संस्थाओं के पाठ्यक्रमों में भी शामिल किया जाना चाहिए ताकि ब्लाग्स में निहित विभिन्न विषयों  की नई-पुरानी जानकारी विद्यार्थी-शोधार्थी आसानी से प्राप्त कर सकें. साथ ही इसकी उपयोगिता एवं प्रचार-प्रसार के लिए शासन के साथ विधिवत पत्राचार किया जाना चाहिए.
10. अन्तिम बिन्दु पर विशेष ध्यान दिलाना चाहूँगा   कि अब ब्लागिंग हेतु सर्वमान्य आचार संहिता का होना बहुत आवश्यक हो गया है. इसके क्रियान्वयन के पश्चात ब्लागिंग आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले ब्लॉगर्स पर अंकुश और प्रतिबन्ध लगाना भी सम्भव हो सकेगा.
 ११. हिन्दी ब्लागिंग  को उत्पादन एवं आय से जोड़ने के उपायों पर विस्तार से चर्चा होनी चाहिए.  
             इस तरह मुझे उम्मीद है कि हमारे विद्वान साथी मेरी उपरोक्त बातों पर अवश्य ध्यान देंगे. आज इस ब्लागिंग कार्य शाला के परिणाम ब्लॉगर्स को नई दिशा देने में अहम भूमिका का निर्वहन करेंगे, ऐसी मेरी कामना है.
जय हिन्दी - जय ब्लागर्स
महेंद्र मिश्रा जी का आलेख पृष्ठ 01
महेंद्र मिश्रा जी का आलेख पृष्ठ 02
जबलपुर में हिंदी  ब्लागिंग को बढ़ावा देने में समीर लाल के अवदान की चर्चा करते हुए कहा कि हिंदी चिट्ठाकारिता समाज की धुरी साबित होगी . समय चक्र के लेखक श्री महेंद्र मिश्र ने जो कहा उस अभिव्यक्ति को दाएं एवम बाऎं पन्नों पर क्लिक कर विस्तार से देखा जा सकता है.


नाव चल निकली डूबे जी की नाव




समीर लाल उवाच :-


ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देती है. न कोई संपादक, न मालिकों का दबाव एवं नितियाँ-सब आप पर निर्भर करता है. आप अपने विचारों से, अपने लेखन से, अपने भावों से मात्र एक बटन क्लिक करके संपूर्ण विश्व भर में फैले अपने पाठकों को स्पर्श कर सकते हैं और मजे की बात यह, उनसे टिप्पणियों के माध्यम से त्वरित विमर्श कर सकते हैं, उनके विचार जान सकते हैं, उनकी प्रतिक्रियायें प्राप्त कर सकते हैं. ऐसा अन्य किसी भी माध्यम से पहले संभव न था.
ऐसे में जहाँ यह माध्यम आपको इतनी सुलभता, इतनी स्वतंत्रता देता है, तब यह आपकी नैतिक जिम्मेदारी हो जाती है कि आप स्वविवेक, आत्म नियंत्रण, अनुशासन और संयम का पालन करें. इस स्वतंत्रता और संसाधन का दुरुपयोग न करें.
हर स्वतंत्रता के साथ स्वतः ही आपसे एक आशा रहती है और यह आपका दायित्व भी रहता है कि आप उस स्वतंत्रता का जिम्मेदारीपूर्वक सदुपयोग करेंगे. यह ठीक वैसा ही है कि जब बच्चा बड़ा हो जाता है तो माँ बाप उसे अकेले मोटर साईकिल लेकर ट्यूशन, बाजार और दोस्तों के बीच में जाने देते हैं. वो जानते हैं और उन्हें इस बात का विश्वास रहता है कि अब वह बच्चा बड़ा हो गया है, जिम्मेदार हो गया है एवं कोई ऐसी हरकत नहीं करेगा जो गैर कानूनी हो, समाज के लिए घातक हो और किसी अन्य को नुकसान पहुँचाये. 
लेखन के साथ एक सतत जागरुकता रहना चाहिये कि आप जो भी नेट पर लिख रहे हैं वह एक इतिहास दर्ज कर रहे हैं. वह हमेशा समूचे विश्व के लिए उपलब्ध रहेगा. कल वही सब आपके परिचित, परिवार, बच्चे पढ़ेंगे. ध्यान रहे कि अपने लिखे से आपको उम्र के किसी भी पड़ाव में, किसी भी परिस्थिति में अपमानित या शर्मसार या अपनी ही करनी पर पछतावा/ शर्मिंदा न होने पड़े...
कुछ अलिखित नियम होते हैं और समाजिक जीवन का एक अनुशासन होता है जो बच्चा परिवारिक एवं अपने आसपास के माहौल और बुजुर्गों एवं साथियों के व्यवहार से सीखता है अतः सभी वरिष्ठों का यह नैतिक दायित्व है कि वो ऐसा माहौल, व्यवहार और मानक स्थापित करें जो एक सुदृढ़ समाज का निर्माण करें, न कि आचार संहिता बनाने में अपनी उर्जा लगायें. इन जिम्मेदारियों और दायित्वों के परिपालन के लिए किसी लिखित आचार संहिता की  ही नहीं है. इसका मानसिक और व्यवाहरिक बीजारोपण तो स्थापित माहौल स्वयं स्वतः कर देगा.
फिर भी कुछ अपवाद बच रह जाते हैं, कुछ असामाजिक तत्व पनप ही जाते हैं, कुछ गंदी मानसिकता वाले गंदगी फैलाने चले ही आते हैं. यह हमारे समाज में हमेशा से होता आया है. बस, एक जिम्मेदार नागरिक का फर्ज होता है कि इनसे दूर रहे, इनसे बच कर चले. इनके कारण हम समाज को तो नहीं छोड़ देते और न ही हम अपना व्यवहार बदल लेते हैं. फिर उसी समाज और जगत का विस्तार तो यह आभासी जगत ब्लॉगिंग का है, यह कैसे उन बातों से अछूता रह सकता है और उससे इतर यहाँ के नियम कैसे हो सकते हैं. यहाँ भी वही फलसफा लागू होता है कि आप अपने दायित्वों का निर्वहन जिम्मेदारीपूर्वक किजिये. इन तत्वों की वजह से न तो आपको विचलित होने की आवश्यक्ता है और न ही अपने आप को बदलने की. 
उत्साहवर्धन, प्रोत्साहन, छिद्रान्वेषण, त्रुटिसुधार, फटकार एवं नजर अंदाज करना- सभी का अपना महत्व है.
टिप्पणियाँ जहाँ एक ओर जीवन उर्जा हैं, बंद होते हताश ब्लॉगर के लिए संजीवनी हैं वहीं लेखक को इस बात का अहसास कराती हैं कि समाज की उन पर नजर है..,..वो मात्र दीवाल या शीशे के सामने खड़े कुछ भी अनर्गल प्रलाप नहीं कर रहे हैं वरन उन्हें संयम का पालन करना है.
-ब्लॉगर्स की संख्या बढ़ाने की मुहिम चलायें-हर माह हर ब्लॉगर एक नया चिट्ठाकार बनाये-गुणित आधार पर संख्या में बहुत तेजी से वृद्धि होगी. आप बस अपना कार्य करिये-सब अपने अपने हिस्से के पालन करें तो एक ऐसे समाज का निर्माण स्वतः हो जायेगा जिसकी हम परिकल्पना करते हैं.
-नई जानकारियाँ, तकनीक आपस में बाँटें. ज्ञान बांटने से बढ़ता है. नई जानकारियाँ पाकर अन्य लोगों में भी इस ओर रुझान बढ़ता है और उत्साहवर्धन होता है.
-प्रतिस्पर्धा बेहतर लेखन की हो, न कि सिर्फ़ रेंकिंग की, टिप्पणियों की संख्या की, फॉलोअर्स बढ़ाने की-यह सब बेहतर लेखन और बेहतर व्यवहार से स्वतः हो जायेगा. इसके लिए आप को कुछ नहीं करना है, यह फल है-आपका काम वृक्ष लगाना है, उसकी देखभाल करना है. उसे कीटों से, गन्दगी से बचाना है. स्वादिष्ट फल स्वमेव आ जायेंगे. बबूल बोकर आम की प्रतिक्षा करना मात्र बेवकूफी है- फिर भी कितने ही हैं जो यह बेवकूफी किये जा रहे हैं और फिर तरह तरह का रोना रोते हैं कि रेकिंग में बदमाशी चल रही है, मठाधीशों के इशारे पर कार्य हो रहे हैं, गुट बने हैं, टिप्पणियाँ नहीं मिलती आदि आदि.
अंत में, एक बात और जोड़ना चाहता हूँ कि हमें हिन्दी ब्लॉगिंग को -विश्वविद्यालयीन पाठयक्रम (मीडिया एवं पत्रकारिता कोर्स) का हिस्सा बनवाने का प्रयास करना होगा. इसे उन छात्रों के प्रोजेक्ट के रुप में लिया जा सकता है. इससे न सिर्फ उन्हें इस तेजी से उभरते पाँचवें खम्भे से जुड़ने का अवसर मिलेगा वरन हिन्दी ब्लॉगिंग एक विशिष्ट प्रसार प्राप्त करेगी जो इसे समृद्धि प्रदान करेगा.
एक उन्माद
उम्र के उस पड़ाव मे
उगा लिया था
हथेली पर
एक कैक्टस
अब
उखाड़ देना चाहता हूँ
मगर
कांटे डराते हैं मुझे!!
तो अंत में यही निवेदन कि उगाना ही है तो सुन्दर फल, फूल उगाईये, ताकि वर्तमान में और भविष्य में उसकी सुगंध और स्वाद ले सकें वरना कांटे बोयेंगे तो वह तकलीफ देंगे ही.       
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 समारोह के विशिष्ठ-अतिथि श्री जी.के अवधिया ने कहा :-’नेट पर हिन्दी की उपस्थिति में सबसे महत्वपूर्ण योगदान हिंदी ब्लागर्स का है. 28 हज़ार हिन्दी ब्लागर्स अथक प्रयास से हिंदी को नेट पर ला ही दिया किंतु अभी भी हम पीछे हैं अन्य भाषाओं  अंग्रेज़ी,चायनीज़ से पीछे हैं इसकी चिंता भारत सरकार को हो न हो गूगल को अवश्य है क्योंकि उसको व्यावसायिक फ़ायदे हैं किंतु गूगल और माइक्रसाफ़्ट जैसी कम्पनियां हिन्दी के डाटा-बेस के मामले में आत्मनिर्भर नहीं हैं. जैसे ही यह सम्भव होगा ब्लाग्स को विज्ञापन मिलना तय है. हिंदी ब्लॉग में विदेशी मुद्रा अर्जक होते ही हिंदी-ब्लागिंग का स्वरुप कुछ  और ही होगा. पर हमारा दुर्भाग्य ये है कि हम देवनागरी  के बावन-अक्षरों को क्रमश: याद नहीं पाते हैं.डाक्टर विजय तिवारी की राय को गति देते हुए अवधिया जी ने सुझाव दिया कि विज्ञापन कम्पनियां विषय आधारित वेब साइट्स का चुनाव करतीं हैं विज्ञापन के लिए . अत: सदा विषय विशेष पर केंद्रित ब्लाग्स लिखे जाएं ताकि एडसेन्स(गूगल),अन्य विज्ञापन कम्पनियों को आप तक पहुंचने में कठिनाई न हो.   
ललित शर्मा का मानना था :- नकारात्मकता और ग्रुप बाज़ी से हटकर  खुले दिल से हिंदी के अंतरजाल पर समग्र विस्तार के प्रयास आवश्यक हैं. आभासी होते हुए भी वास्तविक संबंध स्थापित कर देने वाली हिंदी-चिट्ठाकारिता में अपार सम्भावनाएं हैं विश्व से जोड़  ने वाली  महत्वपूर्ण-आलेखों (पोस्टस) पर अध्ययन के बाद टिप्पणीयों को दर्ज करने से  पोस्ट की मूल भावनाएं आसानी से उजागर होती है. टिप्पणी का प्रयोग पोस्ट के रुख को बदलने के नहीं किया जाना चाहिए ताकि वातावरण की भी सहज रह सके. हिंदी ब्लागिंग में आचार-संहिता के बिंदू पर असहमत नज़र आए ललित शर्मा ने कहा :- हिंदी ब्लागिंग का स्वरुप परिवार की तरह आत्मीय हो गया है . तो  परिवार के लिए भी  कानूनी धाराओं की  ज़रुरत क्यों आन पडी . एक धारा और बढ़ जायेगी तो क्या होगा उससे. ज़रूरत स्वायत्त अनुशासन की है न कि इन सब की जिसे आचार संहिता कहा जा रहा है. 
ललित शर्मा ने कहा कि :-अवधिया जी का सुझाव चिंतन योग्य है. विषय आधरित ब्लागिंग होनी चाहिये. ब्लागिंग में निरंतरता , स्वच्छता एवम शुचिता के लिये ही स्थान होता है. अत: राग-द्वेष  कारक सनसनीखेज़ आलेखों से बचा जावे. बेनामीयों को चाहिये कि खुल के साफ़ साफ़ एतराज़ दर्ज़ कर दें ब्लाग पर अश्लीलता तक न पहुंचें.  जिसे खुल कर कहने की हिम्मत न हो वो उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के  प्रयोग का ज्ञान ही नहीं है ऐसे लोगों के लिए ब्लागिंग अनुकूल स्थान नहीं. 
विवेकशील मनुष्य प्रजाती की रचनात्मक अभिव्यक्ति का स्वरुप बन चुका है ब्लॉग तो विध्वंसात्मक प्रवृत्तियों को  ध्यान में रख कर पोस्ट प्रति पोस्ट लिखना गैर ज़रूरी है.  ब्लागर्स के बीच अनबन कलह फ़ैलाना सामाजिक रूप से गंदगी फ़ैलाना है. इसके लिये कानूनी प्रावधान हैं. जिनका प्रयोग किया जा सकता है. 
बवाल उवाच :- बवाल जी ने ब्लाग की शक्ति को अमोघ शक्ति निरूपित करते हुए कहा कि हम सबकी बात का प्रभाव उस बात के सरल प्रवाह पर नियत है . अतएव सुखद परिणाम के लिये सतत प्रभावशाली अभिव्यक्ति दर्ज़ होती रहे. नित नये टूल्स का अनुप्रयोग हो. अभी आह ही में bambuser पर गिरीष जी का प्रयोग अनूठा रहा है.जिसका प्रयोग आज किया जाना था ताकि कार्यशाला का लाईव प्रसारण हो सके किंतु इस टूल का  अनुप्रयोग आज़ हाई-स्पीड डाटा कार्ड के अभाव के कारण सम्भव न हो सका. ्वरना आज़ की मीटिंग का लाइ प्रसारण भी  इतिहास में दर्ज़ होता. 
प्रेम-फ़रुक्खाबादी :- हिन्दी ब्लागिंग को आचार संहिता की नहीं सदाचरण वाले आलखों की ज़रूरत है. 
आनंदकृष्ण:- आनंद कृष्ण ने सीधे सपाट शब्दों में कहा आचरण पर हमारा हक़ और नियंत्रण दौनों है यदि हमारे आचरण सही होंगे तो सब कुछ ठीक होना तय है.आचार संहिता जैसी बातों की कोई आवश्यकता नहीं  जहां तक ब्लाग स्पोट या वर्ड-प्रेस  का सवाल है वो हमारे नियंत्रण में नहीं है तो अनावश्यक है यह बहस आवश्यक है  हमारी आचरण गत शुद्धि की. 
विवेकरंजन श्रीवास्तव:- अभियंता विवेक जी की राय थी कि पांचवां स्तम्भ मज़बूती की ओर विकल्प के रूप में उभरता दिखाई दे रहा है. उसमें अनावश्यक रूप से  लगाम कसने की ज़रूरत से ज़्यादा ज़रूरत है कि नये ब्लागर्स को यह बताया जावे कि ब्लागिंग में नित नये टूलस का अनुप्रयोग कैसे किया जावे, किस तरह से अन्तरजाल पर हिंदी के अधिकाधिक प्रयोग को बढ़ावा मिले. कुल मिला कर प्राथमिक पाठ्यक्रम का होना ज़रूरी है. अतएव ब्लागर्स निरंतर ब्लागिंग के लिये विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करें. उनकी सहायता करें ताकि हिंदी के कंटैंट्स को नेट पर बढाया जा सके. सामाजिक वैचारिक महत्व के विषयों की नेट पर उपलब्धता के पयास होने चाहियें. क्योंकि हिंदी ब्लागिंग में अपार संभावनाएं हैं. 
अरुण निगम:- जबलपुर में हाल ही में रायपुर से पधारे ब्लागर श्री अरुण निगम ने कहा कि नया नया ब्लागर भी हूं अत: मुझे निरंतर सहयोग की ज़रूरत है. उम्मीद है कि जबलपुर के  मित्र मुझे और अधिक सुदृढ़ता पाने में सहयोग करेंगे. 
       गैर ब्लागर प्रख्यात साहित्य संयोजक राजेश पाठक "प्रवीण" ने ब्लाग की सार्थकता के उदाहरण प्रस्तुत किये जबकि सलिल समाधिया ने अपना अनाम ब्लाग शीघ्र बनाने के वादे के साथ कहा :- सवाल ही पैदा नही होता कि पांचवे स्तम्भ की शक्ति को नकारा जाए. 
      जबकि मनीष शर्मा का मत था की ब्लागिंग की अधिकाधिक ओरल पब्लिसिटी हो ताकि लोग (हम जैसे  गैर ब्लागर) दैनिक अखबारों की तरह पोस्ट का इन्तज़ार करें.जिस दिन  हरेक चिट्ठे का पाठक गैर ब्लागर पाठक  होगा  वह दिन हिन्दी ब्लागिंग का टर्निंग पाईण्ट होगा. 
   संजू तिवारी के मतनुसार :- अखबारों से पहले एक क्लिक में अपने पाठक तक पहुंचने वाले ब्लाग में अभूतपूर्व शक्तियां हैं हर ब्लागर को  आलेखों को सहजता से लिखना चाहिये. बिना पूर्वाग्रही हुए दूसरों से संवाद करना चाहिये 
ऐसे डूबे डुबे जी


जे अपने राम भैया !!
  संगीतकार सुयोग पाठक संगीत आधारित ब्लाग बनाने के लिये संकल्पित हुए जो कार्यशाला की उपलब्धि थी. 
प्रत्येक ब्लागर को कार्टूनिष्ट ब्लागर डूबे जी ने कार्यशाला के दौरान बनाए कार्टून्स देकर प्रभावित किया.जिसे  अनिवार्यत: अपने अपने ब्लाग पर लगाने का प्रस्ताव बहुमत से पारित हुआ  सो बाएं बाजू देखिये
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 कार्यशाला के अंत में दिवंगत ब्लागर  श्री महावीर शर्मा, खुशदीप जी के पिता श्री एवम श्री पाबला जी की मातुश्री के देहावसान पर मौन होकर श्रद्धांजलि अर्पित की. 
_________________________
-     कार्यशाला का संचालन गिरीश बिल्लोरे द्वारा आभार प्रदर्शन बवाल द्वारा किया गया. 
मेरी कारगुजारियां अगली पोस्ट में  


Kindle Wireless Reading Device, Wi-Fi, 6" Display - with New E Ink (Pearl) Technology खबरें इधर भी:-
The Blind Sideपत्रिका जबलपुर एवम पीपुल्स समाचार
विशेष-अनुरोध:- 
इस रपट में किसी भी प्रतिभागी वक्ता के किसी बहुमूल्य विचार का जिक्र न हुआ हो तो कृपया सूचित कीजिये मानवीय भूल को मित्रगण क्षमा करेंगें मुझे उम्मीद है यथा सम्भव पूरे मनोयोग एवम स्मृति के आधार पर क्रोसिन खाकर बुखार से अवकाश लेकर लिखा है. हो सकता है अत: कुछ भूल अवश्य हुई ही होगी . कृपया मुझे इस मेल पते girishbillore@gmail.com पर सहयोगी ब्लागर्स  अवगत करावें. ताकि अगली पोस्ट में विवरण  लगा सकूं. सादर आपका ही गिरीश बिल्लोरे मुकुल  
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         आधिकारिक रपट के बाद : -  
 श्री समीर लाल की पोस्ट:      इनसे मिले, उनसे मिले: देखें किनसे मिले
श्री महेंद्र मिश्र जी की पोस्ट :-यार बबाल जी दाल बाटी खाने का तरीका क्या है ?
श्री विजय तिवारी जी             :- सकारात्मक एवं आदर्श ब्लागिंग की दिशा में अग्रसर होना ब्लागर्स का दायित्त्व है : जबलपुर ब्लागिंग कार्यशाला पर विशेष
श्री विजय कुमा सप्पती की पोस्ट :- जबलपुर, ब्लागर सम्मेलन:स्नेह भरा अनुभव 
श्री ललित शर्मा जी की पोस्ट      :-  पनघट की पनिहारिन, फ़ाड़ू शायर, रुम नम्बर 120 और गक्कड़ भर्ता -----
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सोमवार, नवंबर 15, 2010

फ़ोटो-प्रदर्शनी :मुकुल यादव


संगमरमरी सौन्दर्यानुभूति का संकेत
फ़ोटो ग्राफ़्स कैमरे से नहीं दृष्टि से लिये गये
मेरे ही नहीं पूरे शहर के दिल में बसतें हैं रजनीकांत,अरविन्द,मुकुल,
साभार:नई दुनिया
और बसें भी क्यों न शशिनजी ने फ़ोटो-ग्राफ़ी  एक साधना के रूप करते थे जिसका प्रभाव घर परिवार पर पड़ना ही था. सपाट बात है कि प्रकृति को हर हाल में बचाना ज़रूरी है. प्रदर्शनी का उद्देश्य भी इससे इतर नहीं. "मिफ़ोसो"मिलन-फ़ोटो-ग्राफ़ी सोसायटी , जबलपुर के तत्वावधान में आयोजित इस प्रदर्शनी के रानी दुर्गावती संग्रहालय में आयोजि परिसंवाद में "भेड़ाघाट, पर्यटन एवम संरक्षण " विषय पर कुल कर चर्चा भी हुई. सभी वक्ता इस बात पर जोर दे रहे थे कि पर्यटन-विकास के नाम पर अब कोई विद्रूपण स्वीकार्य न होगा. अमृतलाल वेगड़ जी इस बात को लेकर खासे चिंतित लगे. उनका कथन था :- "ये चित्र जितनी खूब सूरती से लिये गये हैं उसके लिये मुकुल यादव को आशीर्वाद .क्योंकि फ़ोटो यह भी संकेत दे रहें हैं कि इस नैसर्गिक सुन्दरता को बचाना भी है "श्रीयुत श्याम कटारे जी, श्री रामेश्वर नीखरा, भूगर्भ-शास्त्री डा०विजय खन्ना,डा० अजित वर्मा, सहित सभी ने आस्था-सरिता को प्रदूषण से मुक्त रखने की अपेक्षा अपने अपने शब्दों में की.डा०राजकुमार तिवारी"सुमित्र",पं०मदन तिवारी,राजेन्द चंद्रकांत राय,डा०गोविंद बरसैंया, और रजनीकांत यादव जी ने विमर्श में हिस्सा लिया. आज़ दिनांक १५ नवम्बर २०१० को एक डाक्यूमेंट्री भी प्रदर्शित की जावेगी . 


नोट:- मुकुल से वार्ता एवम उनके फ़ोटो कुछ दिनों बाद"मिसफ़िट" पर ही 

रविवार, अप्रैल 18, 2010

पारे की उछाल :बवाल हुये लाल

जी आज अखबारों ने बताया कि पारा 45 डिग्री को छू रहा है . ब्लॉगर मित्र मियाँ बवाल सवा नौ बजे पधारे कहने लगे गिरीश भाई बाहर तो खूब गरम है "आल इज़ नॉट वैल"..... गरमी से बेहाल हुए "लाल” को लस्सी पिला के पाडकास्ट रिकार्ड किया पेश ए ख़िदमत है :- मज़ेदार बात चीत


इसे इधर भी सुना जाये

रविवार, दिसंबर 13, 2009

"भिलाई में लिए निर्णयों की घोषणा से मध्य-प्रदेश में हर्ष


सहोदर प्रदेशों यानी मध्य-प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के ब्लॉगर इन दिनों निरंतर नवाचारों में व्यस्त हैं . इन नवाचारों का सीधा संकेत यह भी है कि ब्लागिंग को किस तरकीब से स्तरीय और पठनीय बनाया जावे. ब्लॉग बनाम पांचवे खम्बे की ज़रुरत और उसकी उपादेयता अब किसी से छिपी नहीं है. हिंदी-ब्लागिंग यानि चिट्ठाकारिता के विकास की इस पहल से जो भी कुछ बेहतर होगा आज से पांच बरस बाद सबके सामने होगा. तभी तो भिलाई में जिस महत्वपूर्ण बात का खुलासा किया गया वो भारतीय भाषाओं के अंतर्जालीयकरण का मेल-स्टोन ही कहा जावेगा. पांचवे स्तम्भ को प्रोत्साहित करने भिलाई चिंतन बैठक में चिट्ठाचर्चा को डोमिन पर पंजीकृत करा लिया है ऋतु परिवर्तन-पर्व यानी संक्रांति के दिन से आरम्भ हो ही जावेगा. सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में खबर-रटाऊ सबसे आगे वाले फार्मूले से मुक्ति दिलाती हिंदी चिट्ठाकारिता ने वैचारिक-आदानप्रदान को भी बढावा दिया है.इस बात को नकारना असंभव है. अब तो भिलाई और जबलपुर इतने करीब हैं जितने कभी न थे. . छत्तीसगढ़ के ब्लागर्स का यह अनूठा प्रयास सफल होगा सभी आश्वस्त हैं पूत के पाँव पालने में ही नज़र आ जातें हैं.... ? इनके चेहरे तथा आत्म विश्वास को अनदेखा करना अथवा  नकारना हमारी भूल होगी. साधू वाद दीजिये इनको  

मंगलवार, अक्टूबर 07, 2008

गेट नंबर चार जबलपुर


चौराहे पे रम्मू की चाय की दूकान दिन भर चलती है और वहीं सामने पान का टपरा जहाँ शहर के पुराने नेता डाक्टर रावत जिनकी वज़ह से सत्तर के दशक में युवा एकजुट हुए थे और जबलपुर का इतिहास बदला गया शरद यादव को संसद भेजा गया हम लोग तब छोटी कक्षाओं में पढा करते थे वही हलधर किसान वाला चुनावी निशान आज भी रावत जी को देखते याद आ जाता है जी हाँ वही डाक्टर रावत आज जहाँ थे वहीं हैं उसी गेट नंबर चार में प्रतिभा के इस पारखी ने एक दिन रोका मुझे -''अरे,गिरीश भैया ये लछमन की दुकान पे काम करने वाले रीतेश को कोई सरकारी इमदाद मिल जाती तो....... ''
''दादा,हम इमदाद का इंतजाम तो कर देंगे पर इस बच्चे को काम पे रखने के लिए लछमन पे एक्शन भी लेना चाहतें हैं बच्चे के बाप को भी........!''
शाम को बच्चे के पिता को बुलवाया गया जो मारे डर के पेश न हुआ . मैंने शहर के बालविकास परियोजना अधिकारी मित्र को कहा की मेरे निवास क्षेत्र की एक चाय की दूकान में बाल श्रमिक है जो आपका क्षेत्र में है वैसे मैं काउंसलिंग से मामला सुलझा दूंगा यदि वो समझाने पे न माना तो फ़िर आप कारर्वाई करदेंगे मैं गवाही दूंगा ।
मेरे मित्र मनीष भाई राजी थे । "एक जुलाई"करीब थी सो एक रविवार मैं पूरे सरकारी रौब-दाब के साथ पहुंचा लछमन की दूकान पे, जहाँ लछमन ने मुझे देखते ही कहा:सा'ब, ये आज जा रहा है , काय रे आज से मत आना, !
बारह साल का बालक हाँ का संकेत करके मुझे फेस न कराने की गरज से पतली गली से निकल पडा जो चाय वाले की समझदारी थी जो उसकी बेवकूफी थी मेरी नज़र में । जब मैंने धौंस देकर उस बच्चे से बात कराने की बात कही और ये भी कहा :-"लछमन,मोहल्ले के नाते तुम को छोड़ दूंगा अगर तुम बच्चे से मिलवा दो तो...!" निशाना सटीक लगा आनन् फानन किसी चिलम ची के ज़रिए बालक वापस बुलाया गया।
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क्यों भाई होटल में कप-प्लेट क्यों धोते हो ?
"तो,क्या करें...?सा'ब जी "
''स्कूल जाओ...!
स्कूल के लिए तो कप-बसी धोते हैं
झूठ बोल रहे हो ?
नईं साहब ये सही कह रहा है पास खड़े आदमी का ज़बाब मुझे झूठा लगा तो मैंने उसे घूर के देखा उसने कहा ''हजूर, ये सही बोल रहा है। बात की पुष्ठी कुछ लोगों ने और की बस मेरी अफसरी धरी की धरी रह गयी और मन का कवि जाग उठा मर्म तक जाने को । उस बच्चे की आँख में निर्भीक बचपन जो सुनहरे सपने देखा रहा था मुझ को भी साफ़ दिखाई देने लगे ।
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दसेक बरस पहले महानद्दा मदन महल क्षेत्र की किसी सरदार की आरा मशीन पे काम करते समय अपनी अंगुली गवाने वाला कामता प्रसाद ही रितेश का पिता है जो अब रिक्शा चलाता है । जबलपुर में मेट्रो के पहले और अभी भी मज़दूरी का साधन रिक्शा ही है गाँव से आया इंसान यहाँ रात तक १००-१५० रूपए आराम से कमा लेता है . पास के सिवनी जिले की घन्सोर तहसील के गाँव किन्दरई का बासिन्दा कामता पाटवेकर पत्थरों से अटी ज़मीन से क्या कमाता सो शहर आ गया । बूडे-माँ बाप भी यही चाहते थे । कामता को आरा मशीन पे काम करते हुए रोज़गार मिला और मिली विकलांगता । उसके तीन बेटे और दो बेटियाँ हैं रीतेश सबसे बड़ा उसकी आंखों में सफल भविष्य के सपने तैर रहे हैं जीवन को गढ़ता उसका बचपन हर लंबी छुट्टियों में पिता के पास जबलपुर आता छुट्टियों में चाय ठेले पे काम करता पैसा जोड़ता वापस गाँव जाकर बूढ़ी दादी की सेवा और पढाई साथ-साथ करता है। कामता अपने बाकी बच्चों के साथ शहर में शास्त्री ब्रिज के पास झोपड़ पटटी में रहता है ।
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रीतेश से जब मैं पहली बार मिला था तब वो सात वीं पास कर के आठवें दर्जे में दाखिले की तैयारी में था । इस साल फर्स्ट क्लास में आठवीं पास की है उसने गाँव के पास के स्कूल में नवमीं में दाखिला लिया है इस बरस वो चौराहे पे आया है लोगों के झूठे कप-प्लेट धोने नहीं बल्कि सभी से मिलने जुलने । आज ही आया जबलपुर का दशहरा देखने मुझे मिलने भी पूछ रहा था :-"साहब जी , आपने जो मद की उसे कैसे चुकाउंगा ?"
मेरी पत्नी ने उसे समझाया:"बेटे जब कभी किसी की मदद करने लायक हो जाना तो एक और रीतेश की मदद ज़रूर करना "


चित्र:साभार बीबीसी:www.bbc.co.uk/hindi/specials/1218_childlabour_at/

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