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गुरुवार, जुलाई 21, 2011
सोमवार, नवंबर 01, 2010
एक गज़ल ---गिरीश पंकज जी की
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ईमेल- girishpankaj1@gmail.com
आज दिजिये गिरीश पंकज जी को जन्मदिन की बधाई व सुनिये उनकी एक गज़ल ------
पंकज जी की ग़ज़लें उनकी इस साईट पर उपलब्ध हैं
सोमवार, अक्टूबर 25, 2010
"जन्म दिन मुबारक़ हो अर्चना चावजी !!"
अर्चना चावजी
एक ब्लागर एक गायिका एक संघर्ष शील नारी जो दृढ़्ता का पर्याय है.... उनके ब्लाग "मेरे मन की " में वो सब है जो उनका एक परिचय यहां भी दर्ज़ है यानि उनकी बहन रचना बजाज के ब्लाग "मुझे भी कुछ कहना है " पर. अर्चना जी, रचना जी, भाई देवेन्दर जी , सबको गोया शारदा मां ने कंठ वाणी में खुद शहद से "मधुरता" लिख दी है. मेरे ब्लाग की सह लेखिका अर्चना जी को हार्दिक शुभ कामनाएं.
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TO "ARCHANA CHAVAJI"
एक ब्लागर एक गायिका एक संघर्ष शील नारी जो दृढ़्ता का पर्याय है.... उनके ब्लाग "मेरे मन की " में वो सब है जो उनका एक परिचय यहां भी दर्ज़ है यानि उनकी बहन रचना बजाज के ब्लाग "मुझे भी कुछ कहना है " पर. अर्चना जी, रचना जी, भाई देवेन्दर जी , सबको गोया शारदा मां ने कंठ वाणी में खुद शहद से "मधुरता" लिख दी है. मेरे ब्लाग की सह लेखिका अर्चना जी को हार्दिक शुभ कामनाएं.
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सोमवार, सितंबर 29, 2008
लावण्यम्` ~अन्तर्मन्` पर लता जी का जन्म दिन
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<=स्वर्गीय इश्मित सिंह और लता मंगेशकर जी
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भारत रत्न लता जी
: लावण्यम्` ~अन्तर्मन्`पर प्रकाशित पोस्ट ,सुश्री लता मंगेशकर जी , , के ७९ वें जन्म दिन पर बेहद भावपूर्ण,सूचना प्रद,संस्मरण,सा मनोहारी बन पड़ी है।
दीदी लता जी के प्रति आपकी भावनाएं एक करोड़ भारतीयों की भावनाएं हैं आपको सादर नमन
मेरी और से स्वर साधिका को समर्पित कविता
सुर सरगम से संयोजित युग
तुम बिन कैसे संभव होता ?
कोई कवि क्यों कर लिखता फिर
कोयल का क्यों अनुभव होता...?
****************
विनत भाव से जब हिय पूरन
करना चाहे प्रभु का अर्चन.
ह्रदय-सिन्धु में सुर की लहरें -
प्रभु के सन्मुख पूर्ण समर्पण ..
सुर बिन नवदा-भक्ति अधूरी - कैसे पूजन संभव होता ?
*********************
नव-रस की सुर देवी ने आके
सप्तक का सत्कार किया !
गीत नहीं गाये हैं तुमने
धरा पे नित उपकार किया!!
तुम बिन धरा अधूरी होती किसे ब्रह्म का अनुभव होता ..?
**गिरीश बिल्लोरे मुकुल
सुर सरगम से संयोजित युग
तुम बिन कैसे संभव होता ?
कोई कवि क्यों कर लिखता फिर
कोयल का क्यों अनुभव होता...?
****************
विनत भाव से जब हिय पूरन
करना चाहे प्रभु का अर्चन.
ह्रदय-सिन्धु में सुर की लहरें -
प्रभु के सन्मुख पूर्ण समर्पण ..
सुर बिन नवदा-भक्ति अधूरी - कैसे पूजन संभव होता ?
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नव-रस की सुर देवी ने आके
सप्तक का सत्कार किया !
गीत नहीं गाये हैं तुमने
धरा पे नित उपकार किया!!
तुम बिन धरा अधूरी होती किसे ब्रह्म का अनुभव होता ..?
**गिरीश बिल्लोरे मुकुल
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