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सखियां फ़िर करहैं सवाल- रंग ले अपनई रंग में..!! (बुंदेली प्रेम गीत )

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नीरो नै पीरो न लाल रंग ले अपनई रंग में ..!! ********* प्रीत भरी   पिचकारी   नैनन   सें   मारी मन भओ गुलाबी , सूखी रही सारी. हो गए गुलाबी से गाल रंग ले अपनई रंग में ..!! ********* कपड़न खौं रंग हौ तो रंग   छूट  जाहै तन को रंग पानी से तुरतई मिट जाहै सखियां फ़िर करहैं सवाल- रंग ले अपनई रंग में..!! ********* प्रीत की नरबदा मैं लोरत हूं तरपत हूं तोरे काजे खुद  सै रोजिन्ना  झगरत हूं मैंक दे नरबदा में जाल – रंग ले अपनई रंग में..!! ********

बुन्देली समवेत लोकगीत:बमबुलियाँ:

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पढ़ें लिखों को है राज बिटिया ....$...... हो बाँच रे पुस्तक बाँच रे ....... बिन पढ़े आवै लाज बिटिया बाँच रे हो ..... पुस्तक बाँच रे .......!! [01] दुर्गावती के देस की बिटियाँ .... पांछू रहे काय आज बिटिया ........ बाँच ...... रे ...... पुस्तक बाँच ........! [02] जग उजियारो भयो .... सकारे मन खौं घेरत जे अंधियारे का करे अनपढ़ आज रे बाँच ...... रे .... बिटिया .. पुस्तक बाँच ........! [03] बेटा पढ़ खैं बन है राजा बिटियन को घर काज रे ..... कैसे आगे देस जो जै है पान्छू भओ समाज रे ..... कक्का सच्ची बात करत हैं दोउ पढ़ हैं अब साथ रे .............!! गिरीश बिल्लोरे मुकुल 969/ ए -2, गेट नंबर -04 जबलपुर म . प्र . MAIL : girishbillore@gmail.com इस विषय पर आलेखhttp://billoresblog.blogspot.com/2008/10/blog-