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कहो न कि मैं भी चोर हूँ

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वरुण जी के ब्लॉग से साभार  किसी  के   खिलाफ   क्यों हैं  आप …… कभी सोचा आपने ?       न आपने कभी भी न सोचा होगा सोचने के लिए खुद का अपना चिन्तन ज़रूरी है. आपकी सोच तो केवल सूचना आधारित है तो आप स्वयं कितना  सोचेंगे और  क्या सोचेंगे ? मैं नहीं कहता काबुल में केवल घोड़े मिलते हैं पर आप अवश्य कहते हैं क्योंकि आपने जो सूचना प्राप्त की उसके मुताबिक़ यही सत्य है मित्र।   अक्सर  व्यवस्था को गरियाने वाले लोग मुझे मिले हैं जब मेरे मोहल्ले में सड़क न थी तब नगर निगम को लोगों ने इतना कोसा इतना कोसा कि सतफेरी बीवी सौतन को भी न कोसती हो किन्तु सड़क बनाते ही हमारे सभी नागरिक सरेआम पूरे अधिकार से घरेलू कूडा करकट सड़क पे डाल रहे है। किसी को कोई आत्मिक दर्द नहीं।  उधर किसी गली से खबर आई की सार्वजनिक नल से  नल की टौंटी चुरा   के घर में रखने वालो की कमी नहीं अरे हाँ सरकारी बल्व ट्यूब लाइट के चोर चहुँओर बसे है. इतना ही नहीं लोग  गरीबी रेखा के साथ रहना पसंद करते हैं गोया गरीबी रेखा , गरीबी रेखा  न होकर अभिनेत्री रेखा हो। यानी कैसे भी हो लाभ होता रहे।       अस्पतालों से मुफ्त की दवाएँ हासिल करना