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ऐसे मनाई नर्मदा जयंती : कोलावरी डी....झुमका गिरा रे...पे थिरकते बच्चे चीयर अप करते अभिभावक

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तिलवारा पुल के नीचे : बच्चे रेवा के आंचल में लहरों के पल्लू उपहार ले आते हैं   नेमावर वाले बच्चे रेवा तट से पन्नी कचरा बीन बीन के जला देते हैं                                  कल मन काफ़ी उत्साहित था नार्मदेय ब्राह्मण जो हूं. डा.संध्या जैन "श्रुति" के नर्मदा-महाकाव्य के विमोचन समारोह में मैंने संचालन के दौरान  मैने गर्व से कहा था कि नार्मदेय ब्राह्मण हूं मुझे नर्मदा महाकाव्य के विमोचन का अवसर मिला अभिभूत हूं मुझ पर मां नर्मदा की विशेष कृपा हुई है.. और दूसरे ही दिन यानी 30 जनवरी 2012 की अल्ल सुबह    मां नर्मदा के तट पर आयोजित होने वाले समारोह में जाकर स्वजातीय बंधुऒं से मिलूंगा गया भी तिलवारा तक वहां जाकर पता चला कि आयोजन स्थल बदल गया है.  घर से निकलते वक़्त धर्म-पत्नि से घर पे आने वाली सूचनाऒं को बिना प्राप्त किये निकलने से नुक़सान ही होता है. पर एक लाभ हुआ कि नर्मदा-दर्शन हो गए. सामाजिक कारोबार में सरकारी लोग कुछ इसी तरह अज्ञानी   होते हैं..जैसा कि मैं.. !  बहरहाल लौटना था सो लौटा और कुछ देर पश्चात समाज द्वारा नर्मदा जयंति के अवसर पर हो  रहे धार्मिक आयोजन

"भियाजी, काम की बड़ी-बड़ी मछली तो पानी क भित्तर मिलच !

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जी देर शाम रविवार 6 फरवरी 2011 को हरदा  पहुंच सका . जहां से अगली सुबह मुझे सपत्नीक खिरकिया रवाना होना  था. जहां स्वर्गीय श्री शिवानन्द जी चौरे मेरे साढू भाई के  त्रयोदशी संस्कार में शामिल होना था.छोटी बहन के बेटों ने घेर लिया. बहुत देर तक सोने न दिया, दुनियां जहान की बातें हुईं. ये अपने निक्की राम थे जो मामा के एन सामने ख्ड़े हो गये बोले :-”मामाजी. लीजिये फ़ोटो " निक्की फ़िर अन्य दो बेटे लकी,विक्की नेट,ब्लाग, माया कैलेण्डर, आदि पर देर तक बतियाते रहे. दूसरे दिन सोचे समय से एक घंटे बाद हम किरिकिया पंहुंचे.   कैलाश स्वर्गीय पिता जी के पिंड इंदिरासागर परियोजना के बैकवाटर क्षेत्र  के ले आया समर्पित करने त्रयोदशी की पूजन के बाद माँ नर्मदा  के भीतर प्रवाहित करने इससे जलचर लाभान्वित होंगे .  ये जो दूर तक आप अथाह जल राशि देख रहे हैं न यहीं बसा करते थे कोई 250 गांव जिनमें थी आबादी, आबादी की आंखों मे थे सपने, सपने जो किसान के सपने थे, मज़दूर के सपने थे, पंडित,लोहार,सुतार, धीवर,सोनार, मास्टर,पोस्ट-मैन, चपरासी, किसी के भी थे थे ज़रूर. पुरखों की विरासत सम्हालते थे कुछ,  जो जमीनें खोट