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अलविदा नाना जी : त्रयोदशी दिनांक १३ अपैल २०१० पर विशेष

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नाना जी को विदा करने सारे कुटुम्ब के लोगों  ने वही किया जो नानाजी तय कर चुके थे, उनके कहे और लिखे मुताबिक शवयात्रा के दौरान कोई रोयेगा नहीं सिर्फ़ और सिर्फ़ भजन गाये जावें . उन्हौने जैसा कहा वैसा हुआ. नाना जी ने कहा था ओर लिखा भी था - पुरुष की मृत-देह पर पत्नि के सिर से  सौभाग्य चिन्ह मिटाना, चूडियां तुडवाना न केवल अशोभनीय है बल्कि नारी के लिये अपमान कारक भी .......मैं अपनी पत्नि को सौभाग्य चिन्ह मिटाने या न मिटाने के निर्णय का अधिकार सौंपने का पक्षधर हूं....ये बातें नाना जी ने अपनी लिखित वसीयत में कही . अपने सेवा काल में उन्हौने एक मकान खरीदा उसमें रहे किंतु अचानक सत्य-साई-सेवा संगठन जबलपुर के द्वारा निर्मित हो रहे साई-परिसर के निर्माण के लिये उसे बेच कर धन देना सबको चकित कर गया . एक बार मेरे मन में आया कि पूछूं कि आपने यह क्यों किया किंतु जब मुझे ध्यान आया कि लोभ  मुक्त होने का सबक दे रहे हैं नाना जी तो मुंह से वो सवाल निकलता कैसे. ? वन विभाग में नाकेदार के पद से भर्ति हुए न्यायिक सेवा में आये और फ़िर नाना जी ने  विधि की परीक्षा स्वर्ण-पदक के साथ पास की. हाथों  में पदक डिग्री, लिये घ