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तबादलों की पावन-सरिता

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   प्रशासनिक व्यवस्था में तबादलों की पावन-सरिता बहती है जो नीति से कभी कभार ही बहा करती है बल्कि ”रीति”से अक्सर बहा करती है.  तबादलों की बहती इस नदिया में कौन कितने हाथ धोता है ये तो  भगवान, तबादलाकांक्षी, और तबादलाकर्ता ही जानता है. यदाकदा जानता है तो वो जो  तबादलाकांक्षी, और तबादलाकर्ता के बीच का सूत्र हो. इस देश में तबादला कर्ता एक समस्या ग्रस्त सरकारी प्राणी होता है. उसकी मुख्य समस्या होती हैं ..बच्चे छोटे हैं, बाप बीमार है, मां की तबीयत ठीक नहीं रहती, यानी वो सब जो घोषित तबादला नीति की राहत वाली सूची में वार्षिक रूप से घोषित होता है. अगर ये सब बे नतीज़ा हो तो तो अपने वक़ील साहबान हैं न जो स्टे नामक संयंत्र से उसे लम्बी राहत का हरा भरा बगीचा दिखा लाते हैं.  तबादले पहले भी होते थे अब भी होते हैं  क्योंकि यह तो एक सरकारी प्रक्रिया है. होना भी चाहिये अब घर में ही लीजिये कभी हम ड्राईंग रूम में सो जाते हैं कभी बेड-रूम में खाना खाते हैं. यानी परिवर्तन हमेशा ज़रूरी तत्व है. गिरी  जी का तबादला हुआ, उनके जगह पधारीं देवी जी ने आफ़िस में ताला जड़ दिया ताक़ि गिरी जी उनकी कुर्सी पर न बैठे रह ज