प्रभाव दिखने लगे हैं
आज वाट्स एप के ज़रिये किसी ने बताया- “पूरे देश में नोटबंदी
का जो प्रभाव हुआ है उसके आंकड़े रिजर्व बैंक ने पेश कर दिए हैं. आरबीआई ने
आज आंकड़ें जारी कर बताया है कि नोटबंदी का ऐलान होने के बाद 10 नवंबर से 27 नवंबर
के बीच बैंकों में 33948 करोड़ रुपये बदले गए हैं. इसी बीच यानी 10 नवंबर से 27 नवंबर
के बीच देश भर के बैंकों में 8,11,033 करोड़ रुपये जमा हुए हैं. कुल मिलाकर इस दौरान 8,44,982 (8 लाख 44 हजार 982 करोड़ रुपये) का बैंकों में
ट्रांजेक्शन हुआ है.”
दूसरी और उर्जित पटेल साहब का ये बयान भी आया - ‘हम बैंकों से व्यपारियों के बीच पीओएस (प्वाइंट आफ सेल) मशीनों
को बढावा देने का अनुरोध कर रहे हैं ताकि डेबिट कार्ड का उपयोग ज्यादा प्रचलित हो.'
पटेल ने यह भी कहा कि केंद्रीय बैंक ने 1,000 और
500 रुपये के नोट जमा करने से बैंकों की जमा में उल्लेखनीय
वृद्धि के कारण बढी हुई नकदी पर 100 प्रतिशत सीआरआर (नकद
आरक्षित अनुपात) की भी घोषणा की है. उन्होंने कहा कि एक बार सरकार अपने वादे के
अनुरुप पर्याप्त मात्रा में एमएसएस (बाजार स्थिरीकरण योजना) बांड जारी कर देती है
तो उसके बाद सीआरआर बढाने संबंधी इस निर्णय की समीक्षा की जाएगी .
दौनों स्थितियां जिस तरफ संकेत कर रहीं हैं कि मुद्रा को
विद्रूप होने की प्रारम्भिक सफलता तो हासिल हो गई .
तीसरा अहम् पहलू ये है कि –
मुद्रा के परिवर्तन होते ही पहले तो हमसे पाक बौखलाया फिर हौले से घुटने टेकने
वाली मुद्रा में शामिल हो गया. यानी सारे फेक-करेंसी के कारखानों में ताला बंदी की
स्थिति नज़र आई और साथ ही साथ पाक आर्मी के और पाक सरकार के सामने ये संकट पेश हुआ कि अब
ज़हरीले आतंकी सपोलों के लिए वे निवाला किधर से जुटाएंगे... ? अगर निवाले मुहैया न
हुए तो कदाचित सपोलों का मुंह वापस पाक को न निगल ले. और पीओके ,सिंध, और
बलोचिस्तान हाथ से न सरक जाएं !
वास्तविकता ये है कि भारत ने आतंक को रोकने का बिना हथियार
उठाए जो प्रयास किया उसे भारत की सडकों पर जनता के मन में निगेटिव भाव भरने की
कोशिशें तक नाकाम रहीं. क्योंकि 70 से 80 फीसदी जनता नोटबंदी का समर्थन करते नज़र आई
. कुछ सियासीयों की स्थिति साफ़ तौर उस हकीम की तरह हो गई जिसके पास मरहम तो बहुत
है पर बिस्मिल दूर दूर तलक नज़र नहीं आ रहा उसे . अब बताएं कोई मरहम से भूख मिटाएगा
क्या ?
क्रमश:
गिरीश बिल्लोरे मुकुल
हिन्दी चिट्ठाकार
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