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रविवार, अगस्त 10, 2014
बदतमीज़ भाईयों की कलाई पर राखी मत बांधना बेटियो..
सामाजिक संरचना इतनी अधोगत हो चुकी है
कि हम सामाजिक मूल्यों को स्तर नहीं दे पा रहे हैं. आज़ शाम रक्षा-बंधन की खरीदी के
लिये मैंनें बहुत सी बेटियों को समूह में खरीददारी करते देखा . मन न केवल खुश था
बल्कि अच्छा भी लगा हम चर्चा ही कर रहे थे कि बेटियां अब खुद निर्णय ले रहीं
हैं . देखो कितने साहस से भरी आज पावन त्यौहार की तैयारी में व्यस्त हैं. बात खत्म
हुई ही थी कि कुछ शोहदे तो नहीं थे पर हाई-स्कूल + के किशोर लग रहे थे.. बेटियों
पर छींटाकशी करते नज़र आए . ड्रायवर को वाहन धीमा चलाने का निर्देश देने पर उसने
गाड़ी धीमी क्या लगभग रोक ही दी. मेरा उन किशोरों को घूरना बस था कि वे
तितर-बितर हो गये. गुस्सा इतना भरा था कि मेरी कायिक भाषा प्रभावकारी बन गई
थी. यह घटना इतने अंदर तक समा गई कि इन किशोर शोहदों के घर जाकर इनकी बहनों से कह
दूं इन बदतमीज़ भाईयों की की कलाई पर राखी मत बांधना बेटियो..!!
वास्तव में यही एक उम्र होती है
जब बच्चों को अनुसाशित रखा जा सकता है किंतु बच्चों से लगातार सदसंवादों के अभाव
से किशोर वय की पुरुष संताने अपराध की ओर क़दमताल करती नज़र आती है. सरकार को चाहिये
छेड़छाड़ छीटाक़शी को भी संगीन अपराध की श्रेणी में रखा जाकर दंड देने का प्रावधान तय
कर दे. मेरा यह प्रस्ताव मेरे भावातिरेक का परिणाम है. तो फ़िर क्या
तरीक़ा होगा ताक़ि ऐसी घटनाओं पर नियंत्रण रखा जावे..
तरीक़ा कोई भी किशोरों को महिलाओं
विशेषरूप से किशोरीयों के विरुद्ध कायिक हिंसा के प्रयासों पर कठोर दांडिक
कार्रवाई के प्रावधान अवश्य हों. सार्वजनिक स्थानों को सी.सी कैमरों की ज़द में
बेहद आसानी से लाया जा सकता है. साथ ही सतत-वेबकास्टिंग के प्रयोग से भी ऐसे
कुत्सित प्रयासों पर रोक लग सकती है. आम नागरिक अपने किशोर होते बच्चों को अपने
रडार पर रखें. आप सोचेंगे कि यह कैसे संभव है.. ? वास्तव में
सतत संवाद एवं उनकी मित्रमंडली का बैकग्राऊंड जानना अत्यंत आवश्यक होगा . इससे
उनकी गतिविधियां सहज समझी जा सकतीं हैं. वरना बाल-अपराध खासकर यौन आधारित
बाल अपराध नहीं रुक सकते . मेरी राय में ये सर्व प्राथमिक ज़रूरत है वरना बाल-अपराध के लिये
बने क़ानून से राहत तो मिली पर अभी दिल्ली दूर है भाई...
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