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सोमवार, फ़रवरी 15, 2010

किसलय जी का समझदार कुत्ता बोनी

एक  मकबूल डॉग बोनी  ने किसलय जी के अथक परिश्रम से काफी कुछ सीख गया एक हम हैं कि उनकी मेहनत से सिखाई जा रही बातों पे ध्यान नहीं दे रहे .... अब हम ठहरे 'जो गुरु मिलहिं विरंची सम:' के अनुगायक चलिए मैं तो समय आने पे ही सीख पाउँगा बोनी के कारनामे देखिये 

मंगलवार, अक्टूबर 21, 2008

"आओ मुझे बदनाम करो.....!!"



उस दिन शहर के अखबार समाचार पत्रों में रंगा था समाचार "श्रींमन क के विरुद्ध जन शिकायतों को लेकर हंगामा, श्रीमान ख के नेतृत्व में आला अधिकारीयों को ज्ञापन सौंपा गया ?"
नाम सहित छपे इस समाचार से श्री क हताशा से भर गए वे उन बेईमान मकसद परस्तों को अपने आप में कोसते रहे किंतु कुछ न कर सके राज़ दंड के भय से बेचारगी का जीवन ही उनकी नियति बन गया .
श्री क अपने एक पत्रकार मित्र से मिलने गए उनने कहा-"भाई,संजय इस समाचार में केवल अमुक जी का व्यक्तिगत स्वार्थ आपको समझ नहीं आया ? "
यदि है भी तो भैया जी, मैं क्या करुँ मेरी भी तो ज़िंदगी का सवाल है जो गोल-गोल तभी फूलतीं हैं जब मैं अपने घर तनखा लेकर आता हूँ.....!
तो ऐसा करो भइयाजी,मेरी इन-इन उपलब्धियों को प्रकाशित कर दो अपने लीडिंग अखबार में !
ये कहकर श्रीमान क ने अपनी उपलब्धियों को गिनाया जो वे सार्वजनिक करने से कल तक शर्माते थे . उनकी बात सुन कर संजय ने कहा "भैयाजी,आपको इन सब काम का वेतन मिलता है ,कोई अनोखी बात कहो जो तुमने सरकारी नौकर होकर कभी की हो ?"
श्रीमान क -"अनोखी बात.......?"
संजय ने पूछा -अरे हाँ, जिस बात को लेकर आपको सरकार ने कोई इनाम वजीफा,तमगा वगैरा दिया हो....?
"भाई,मेरी प्लान की हुई योजनाओं को सरकार ने लागू किया "
संजय:-''इस बात का प्रमाण,है कोई !''
क:-.................?
बोलो जी कोई प्रमाण है ?
नहीं न तो फ़िर क्या करुँ , कैसे आपकी तारीफ़ छापून भैया जी
न संजय तारीफ़ मत छापो मुझे सचाई उजागर करने दो आप मेरा वर्जन लेलो जी
ये सम्भव नहीं है,मित्र,आप ऐसा करो कोई ज़बरदस्त काम करो फ़िर मैं आपके काम को प्राथमिकता से छाप दूंगा
जबरदस्त काम .....?
संजय :अरे भाई,कुत्ता आदमीं को काटता है कुत्ते की आदत है,ये कोई ख़बर है क्या,मित्र जब आदमी कुत्ते को काटे तो ख़बर बनातीं है .तुम ऐसा ही कुछ कर डालो
श्रीमान क के जीवन का यही टर्निंग पाइंट था वे निकल पड़े कुत्तों की तलाश में . उनको मिले एक नहीं कई "कुत्ते" जी में आया सालों को काट लिया पर फ़िर मन ने कहा "तुम तो आदमियत से खलास मत हो "
मन की बात की अनुगूंज लेकर "क" घर में उदास अकेले बैठे प्रेमचंद के नमक के दरोगा बनने का खामियाजा भुगत रहे थे कि बाहर से निकलते गुप्ताजी,शर्मा जी बिना उनको आवाज लगाए पान खाने निकल गए , खिड़की से श्री क ने उनका निकलना देख लिया था .
उपेक्षा अपमान भोगते "क" को लगा कि ज़िंदगी अब जीना सम्भव नहीं है सो वे अनमने से महीनो घर में बंद रहे . उनके ख़िलाफ़ चली जांच में वे बेदाग़ हुए तो लोगों ने कहा:-"भाई,आपतो बड़े छुपे रुस्तम निकले,कितने में मामला सुलता..?"
श्रीमान क उनकी बातों पे मुस्कुरा दिए कभी कोई उत्तर न दिया बेअक्लों को .

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