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25.12.23

इतिहास पुरुष राजाधिराज श्री राम - मेरी नई ऐतिहासिक पुस्तक


   भारतीय सभ्यता और संस्कृति के विकास को समझने के लिए उसके ऐतिहासिक दृश्य को  सामने लाने की आवश्यकता है।
  देशकाल स्थिति के अनुसार उपलब्ध संसाधनों के माध्यम से इतिहास को संयोजित किया जाता है। प्राचीन विश्व में इतिहास को सजाने के लिए, तथा वर्तमान में तत्कालीन परिस्थितियों को जानने के लिए पुरावशेष, शिलालेख, ताम्रपत्र,लौहपत्र, स्वर्णपत्र, रजतपत्र, सिक्के, लिखे हुए दस्तावेज, गुफा चित्र आदि का उपयोग किया जाता है।
मेरा यह मानना है कि -"इस तरह के ऐतिहासिक प्रमाण केवल लगभग चार या पांच हज़ार वर्ष पूर्व तक सुरक्षित रहते हैं!"
  परिवर्तनशील विश्व में जो भी कुछ कथाओं में अंकित होता है उसे ऐसे साक्ष्यों के अभाव में मिथक कह दिया जाता है।"
   भारत में ही नहीं संपूर्ण विश्व में भी श्रुत की परंपरा रही है। जो वंशानुगत आने वाली पीढ़ियों को संसूचित की जाती रही है। श्रुत परंपरा में एक समस्या होती है वह यह कि-"ऐतिहासिक घटनाक्रमों की सूचना संवाहक उसमें परिवर्तन जानबूझकर अथवा अनजाने में कर देते हैं।"
जिसका दूरगामी परिणाम होता है। भगवान श्री रामचंद्र के साथ यही घटनाक्रम हुआ है। भगवान श्री रामचंद्र इतिहास पुरुष थे जिन्हें काल्पनिक साबित किया गया था।
यहां  स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि - "श्री राम एवं श्री कृष्ण, न तो मिथक थे न ही काल्पनिक लोक- कथाओं के नायक !"
  बल्कि वे भारत के इतिहास का हिस्सा भी रहे हैं।
  इतिहास के राम कालीन समय में तथा कालांतर में भारत का प्राचीन इतिहास काव्य के लिखा जाता था। कविताओं का अपना अलग सौंदर्य होता है, जिसे कवियों ने अपने-अपने ढंग से राम और कृष्ण की कथाओं में समावेशित किया था। इसका अर्थ कालांतर में यह नहीं लगना चाहिए कि -"श्रीराम और श्री कृष्ण इतिहास का हिस्सा न थे।"
प्राचीन  भारतीय इतिहास को आयातित विचारधारा की स्थापना करने वाले तथा उसमें सहयोग करने वाले भारतीय विद्वानों  ने इतिहास को अपनी ऐनक से वैसा देखा है जैसा भी देखना चाहते थे। भारत से घृणा करने वाले चर्चिल तो भारत को केवल सभ्यता एवं संस्कृति विहीन भू भाग मानते थे।
श्री हिंद प्रकाशन द्वारा प्रकाशित मेरी पूर्व कृति में सब कुछ स्पष्ट है। कृति का स्मरण होगा ही तथापि पुन:स्मरण दिलाना चाहता हूं कृति का नाम है *भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार 16000 वर्ष ईसा पूर्व* ।
  वर्तमान  युग के समाज को प्रमाणों की जरूरत है...!
  मेरे एक वरिष्ठ मित्र आदरणीय वेद वीर आर्य ने एक तरीका खोज निकाला है। उन्होंने नक्षत्रों की पूर्व कालीन स्थिति को ईसा के पूर्व के कालावधियों में में स्थापित कर दिया तथा साहित्य में उपलब्ध विवरण जैसे राम का जन्म, विवाह, वन गमन, रावण वध, की ग्रह गोचर की परिस्थितियों के साथ समेकन   कर तिथियों का निर्धारण किया है ।
श्रीराम, श्रीकृष्ण , ही नहीं बल्कि रेस लीडर ब्रह्मा, पूर्व वैदिक काल से मध्ययुगीन भारत के  कालानुक्रम में संयोजित किया है।
  भारतीय नक्षत्र गणना प्रणाली बहुत पुरानी है। प्राचीन लेखक कवि साहित्यकार समकालीन परिस्थितियों की पुष्टि के लिए नक्षत्र की स्थिति का उल्लेख किया करते थे। जिसके आधार पर आज के दौर में हम धार्मिक संकल्पों मानते हैं जैसे रामनवमी विजयदशमी दीपावली इत्यादि।
   प्रभु श्री राम की कृपा एवं वीर हनुमान द्वारा प्रदत्त साहस से यह कृति आपके समक्ष प्रस्तुत है।
   अपने स्वर्गीय माता-पिता गुरु और ब्रह्म के कार्य को संपादित करने का साहस, क्षमता एवं दक्षता मुझ में नहीं है। अपने कर्मठ अग्रज श्री हरीश एवं श्री सतीश जी की प्रेरणा से जो लिखा है वह सत्य है कि~ "भगवान श्री राम काल्पनिक नहीं बल्कि इस भारत भूमि पर अवतरित हुए थे। वे केवल मर्यादा पुरुषोत्तम राम न थे बल्कि वे चक्रवर्ती राजाधिराज श्री राम भी थे।"
  "ॐ श्री रामकृष्ण हरि:" 

19.3.22

कश्मीर नामा 01 : सहदेव ने स्थापित किया था कश्मीर

     12 वीं शताब्दी में  वर्तमान कश्मीर के परिहास पूर्व में जन्में कल्हण के पिता हर्ष देव के दरबार में दरबारी थे। लोहार वंश का साम्राज्य था कश्मीर में। लोहार राजवंश कश्मीर 11वीं और 12वीं शताब्दी में राज करता था। लोहार वंश की स्थापना संग्राम राज ने की थी। राजा संग्राम राज के वंशज हर्ष देव का शासन काल विसंगतियों भरा था। इस राजा ने मंदिरों तक को लूटा था। किसी राजा के दरबार में उनके एक महामात्य चंपक के 2 पुत्र थे। एक पुत्र का नाम कल्हण था तथा दूसरा पुत्र कनक के नाम से प्रसिद्ध हुआ। कल्हण कवि थे जबकि कनक संगीतज्ञ।
यूरोपीय विद्वान विंटरनिट्स भारत के प्रथम इतिहासकार के रूप में कल्हण का नाम सर्वोच्च स्थान पर रखा उसका कारण था कि कल्हण अपनी कृति-"राजतरंगिणी" में व्यवस्थित ढंग से इतिहास का लेखन किया। इतिहास लेखन के लिए जिन बिंदुओं का विशेष ध्यान दिया जाता है उसका ध्यान रखते हुए कल्हण ने काव्य के रूप में राजतरंगिणी की रचना की। इस कृति का रचनाकाल 1147 से लेकर 1149 ईस्वी था। कुछ लोगों की मान्यता है कि सन 1150 तक यह इतिहास लिखा गया। कुछ लोगों का मंतव्य है कि-"कल्हण ही राज तरंगिणी का लेखन काल कल्हण के बाद भी जारी रहा। और उसके सह लेखक थे जोनराज, प्रज्ञा भट्ट, श्रीवर अथवा सीवर एवम सुका ।
   अर्थात राज तरंगिणी में कई और लेखक भी शामिल हुए।
   राज तरंगिणी का जिन भाषाओं में रूपांतरण हुआ वह है राजा जैनुबुद्दीन के दरबारी कवि मुरला अहमद शाह जिन्होंने इस कृति का फारसी भाषा में अनुवाद बसीर उल अरमाद नाम से किया था। इसी नाम से मुगल बादशाह अकबर के राज कवि शाह मुल्लाह शाहबादी ने भी किया है।
अंग्रेजी विद्वान शाहजहां के कार्यकाल में भारत आए और उन्होंने अपनी किताब पैराडाइज ऑफ इंडिया में इस किताब का अनुवाद प्रकाशित किया था। परंतु यह कृति अब विश्व में उपलब्ध नहीं है। अंग्रेजी भाषा में ऑरेलेस्टाइन द्वारा किए गए अनुवाद की उपलब्धता विश्व साहित्य में है।
   मैंने अपनी कृति भारतीय मानव सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार 1600 पूर्व में महाभारत के काल का विवरण प्रस्तुत कर दिया है। महाभारत काल से लेकर लोहार वंश के अंतिम हिंदू राजावंश तक 36 वर्ष और 64 उप जातियों का उल्लेख करते हुए कल्हण ने इतिहास का लेखन किया है। कल्हण ने अपने इतिहास में अर्थात राज तरंगिणी में यह तथ्य स्थापित किया है कि पांडवों के छोटे भाई सहदेव ने कश्मीर में राज्य की स्थापना की थी।
   राज तरंगिणी के अनुसार अशोक ने कश्मीर में भी अपने राज्य का विस्तार कर लिया था। प्रारंभ में अशोक शैव संप्रदाय का मानने वाला था। तदुपरांत वह बौद्ध धर्म को मानने लगा। इस कृति में कुषाण वंश के राजा कनिष्क के कश्मीर में विस्तार का भी उल्लेख करते हुए बताया गया है कि वहां कनिष्क पुर नामक नगर की स्थापना कनिष्क ने ही की थी। कनिष्क के काल में चौथी बौद्ध संगति का विवरण भी है।
   राजा अवंती बर्मन के दरबार में सूर नामक प्रथम इंजीनियर ने झेलम पर पुल बनाया था ऐसा उल्लेख इस कृति में मिलता है।
   कल्हण ने 813 ईसा पूर्व से 1150 ईस्वी तक अपनी कृति में दर्ज किया है। कृपया देखिए महाभारत का कालखंड 3762 ईसा पूर्व की पुष्टि आचार्य मृगेंद्र विनोद एवं वेदवीर आर्य ने भी की है। तदनुसार इसका उल्लेख मेरी कृति भारतीय मानव सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार 16000 ईसा पूर्व में प्रश्न क्रमांक 192 से 197 तक में दर्ज है।
  मित्रों कल्हण ने अपनी संस्कृत में लिखी गई कृति राज तरंगिणी में जिस इतिहास लेखन के मूल  तत्वों का ध्यान रखा है उन्हें हम क्रमशः निम्नानुसार विश्लेषण कर सकते हैं....
[  ] प्राचीन राजवंश की क्रमवार जानकारी। राज तरंगिणी का अर्थ होता है राजाओं की नदियां अर्थात राज सत्ता का प्रवाह।
[  ] अपने ग्रंथ को प्रमाणित सिद्ध करने के लिए उन्होंने (कल्हण ने) 7826 श्लोकों में महाभारत काल से लेकर 1150 ईस्वी तक का इतिहास लिखा है।
[  ] प्रथम 3 तरंगिणीयों में अर्थात अध्याय में राजवंशों का रामायण एवं महाभारत कालीन राजवंशों का तत्सम कालीन संबंध उल्लेखित किया है।
[  ] कल्याण में कश्मीर में बौद्ध धर्म की स्थापना 273 ईसा पूर्व उल्लेखित की है।
[  ] परमाणु की पुष्टि के लिए श्रुति परंपरा पुरातात्विक प्रमाण आदि का विश्लेषण भी राज तरंगिणी में डाला है।
[  ] राज तरंगिणी में आठ तरंगिणीयां 7826 श्लोक हैं।
[  ] राज तरंगिणी में सभी राजवंशों का तटस्थ भाव से विश्लेषण किया है राजाओं के गुण दोषों का स्पष्ट चित्रण किया है।
[  ] सामाजिक व्यवस्था धार्मिक आर्थिक एवं आध्यात्मिक परिस्थितियों का सटीक विवरण प्रदर्शित है।
          भारत के प्राचीनतम इतिहास को समझने के लिए रोमिला थापर जैसे भ्रामक मंतव्य स्थापित करने वाले इतिहासकारों की जरूरत नहीं है। हमें चाहिए कि हम प्राचीन इतिहास का अध्ययन कल्हण की राज तरंगिणी से शुरू करें।
नोट:- युवाओं को यह आर्टिकल इसलिए पढ़ना चाहिए क्योंकि ताकि वे पीएससी यूपीएससी एवं अन्य प्रतियोगी स्पर्धाओं के लिए *प्राचीन भारतीय इतिहास* उपयोगी पाठ्य सामग्री है।
  अन्य सभी को इस हेतु पढ़ना चाहिए ताकि आप भारत को समझ सकें।

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धर्म और संप्रदाय

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