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शुक्रवार, अप्रैल 22, 2011

दीप अकेला -- अज्ञेय जी की एक रचना

आज एक कविता "अज्ञेय" जी की---
जो प्राप्त हुई है  सिद्धेश्वर जी के सौंजन्य से...

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन
Ajneya.jpg
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'
उपनाम:अज्ञेय
जन्म:७ मार्च १९११
कुशीनगरदेवरियाउत्तर प्रदेशभारत
मृत्यु:४ अप्रैल १९८७
दिल्लीभारत
कार्यक्षेत्र:कवि, लेखक
राष्ट्रीयता:भारतीय
भाषा:हिन्दी
काल:आधुनिक काल
विधा:कहानीकविताउपन्यासनिबंध
विषय:सामाजिकयथार्थवादी
साहित्यिक
आन्दोलन
:
नई कविता,
प्रयोगवाद
प्रमुख कृति(याँ):आँगन के पार द्वारकितनी नावों में कितनी बार
हस्ताक्षर:Hastaksharagyeya.jpg
विकीपीडिया से साभार 

दीप अकेला - अज्ञेय
यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता पर
इसको भी पंक्ति को दे दो

यह जन है : गाता गीत जिन्हें फिर और कौन गायेगा
पनडुब्बा : ये मोती सच्चे फिर कौन कृति लायेगा?
यह समिधा : ऐसी आग हठीला बिरला सुलगायेगा
यह अद्वितीय : यह मेरा : यह मैं स्वयं विसर्जित :

यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता पर
इस को भी पंक्ति दे दो

यह मधु है : स्वयं काल की मौना का युगसंचय
यह गोरसः जीवन-कामधेनु का अमृत-पूत पय
यह अंकुर : फोड़ धरा को रवि को तकता निर्भय
यह प्रकृत, स्वयम्भू, ब्रह्म, अयुतः
इस को भी शक्ति को दे दो

यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता पर
इस को भी पंक्ति दे दो
यह वह विश्वास, नहीं जो अपनी लघुता में भी काँपा,
वह पीड़ा, जिसकी गहराई को स्वयं उसी ने नापा,
कुत्सा, अपमान, अवज्ञा के धुँधुआते कड़वे तम में
यह सदा-द्रवित, चिर-जागरूक, अनुरक्त-नेत्र,
उल्लम्ब-बाहु, यह चिर-अखंड अपनापा
जिज्ञासु, प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय
इस को भक्ति को दे दो

यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता पर
इस को भी पंक्ति दे दो


बुधवार, मार्च 30, 2011

अपनाने में हर्ज क्या है ???











एक पोस्ट केवल राम जी के ब्लॉग "चलते-चलते" से---
 

 केवलराम की यह पोस्ट अर्चना जी ने उम्दा ब्लागपोस्ट की पाडकास्टिंग की गरज़ से पेश की है. केवलराम जी एक उम्दा और भीड़ में अलग दिखाई देने वाले व्यक्तित्व के धनी हैं. उनके दो ब्लाग हैं
चलते -चलते ....! और  "धर्म और दर्शन".. वे हिंदी ब्लागिंग के लिये इतने समर्पित है कि उनने शोध के लिये हिंदी ब्लागिंग को चुना है.... हिंदी संस्कृत अंग्रेजी पर समान अधिकार रखने वाले केवल राम जी को दुलारिये एक मेल कीजिये उत्साह वर्धन कीजिये...ये रहा  उनका मेल-पता  
kewalanjali84@gmail.com
-गिरीश बिल्लोरे
_______________________जन्म दिन (आभार-पाबला जी का )________________

गुरुवार, जनवरी 20, 2011

मौसम का हालचाल : कवि श्री रूप चन्द्र शास्त्री मयंक स्वर अर्चना चावजी

मौसम के अनुरूप कविता शिशिर की वापसी पर ग़रीब की स्थिति और मधुऋतु की परिकल्पना करता मानस कवि कर देता है व्यक्त अपनी आकांक्षा मौसम से. आइये सुने मशहूर पाडकास्टर श्रीमति अर्चना चावजी के स्वरों में श्री रूपचन्द्र शास्त्री जी की दो कविताएं . 





सन-सन शीतल चली पवन,
सर्दी ने रंग जमाया है।
ओढ़ चदरिया कुहरे की,
सूरज नभ में शर्माया है।।(शेष हेतु यहां क्लिक कीजिये)

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