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एक वसीयत : अंतिम यात्रा में चुगलखोरों को मत आने देना

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साभार in.com एक बार दिन भर लोंगों की चुगलियों से त्रस्त होकर एक आदमी बहुत परेशान था. करता भी क्या किससे लड़ता झगड़ता उसने सोचा कि चलो इस तनाव से मुक्ति के लिये एक वसीयत लिखे देता हूं सोचते सोचते कागज़ कलम उठा भी ली कि बच्चों की फ़रमाइश के आगे नि:शब्द यंत्रवत मुस्कुराता हुआ निकल पड़ा बाज़ार से आइसक्रीम लेने . खा पी कर बिस्तर पर निढाल हुआ तो जाने कब आंख की पलकें एक दूसरे से कब लिपट-चिपट गईं उस मालूम न हो सका. गहरी नींद दिन भर की भली-बुरी स्मृतियों का चलचित्र दिखाती है जिसे आप स्वप्न कहते हैं .. है न..?    आज  वह आदमी स्वप्न में खुद को अपनी वसीयत लिखता महसूस करता है. अपने स्वजनों को संबोधित करते हुये उसने अपनी वसीयत में लिखा मेरे प्रिय आत्मिन  सादर-हरि स्मरण एवम असीम स्नेह ,                    आप तो जानते हो न कि मुझे कितने कौए कोस रहे हैं . कोसना उनका धर्म हैं .. और न मरना मेरा.. सच ही कहा है किसी ने कि -"कौए के कोसे ढोर मरता नहीं है..!"ढोर हूं तो मरना सहज सरल नहीं है. उमर पूरी होते ही मरूंगा.मरने के बाद अपने पीछे क्या छोड़ना है ये कई दिनौं से तय करने की कोशिश में था त

हेनरी का हिस्सा

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पिता की मौत के बाद अक्सर पारिवारिक सम्पदा के बंटवारे तक काफ़ी तनाव होता है उन सबसे हट के हैनरी  बैचेन और दु:खी था कि पिता के बाद उसका क्या होगा. पिता जो समझाते   वो पब में उनकी बात का माखौल उड़ाता उसे रोजिन्ना-की गई  हर उस बात की याद आई जो पिता के जीवित रहते वो किया करता था. जिसे पापा मना करते रहते थे.सबसे आवारा बदमाश हेनरी परिवार का सरदर्द ही तो था ही बस्ती के लिये उससे भी ज़्यादा सरदर्द था. पंद्रह साल की उम्र में शराब शबाब की आदत दिन भर सीधे साधे लोगों से मार पीट जाने कितनी बार किशोरों की अदालत ने उसे दण्डित किया. पर हेनरी के आपराधिक जीवन  में कोई परिवर्तन न आया. अंतत: उसे पिता ने बेदखल कर दिया कुछ दिनों के लिये अपने परिवार से. पिता तो पिता पुत्र के विछोह  की पीड़ा मन में इतने गहरे पहुंच गई कि बस खाट पकड़ ली पीटर ने. प्रभू से सदा एक याचना करता हेनरी को सही रास्ते पे लाना प्रभु..? पीटर  ज़िंदगी के आखिरी सवालों को हल करने लगा. मरने से पहले मित्र जान को बुला सम्पदा की वसीयत लिखवा ली पीटर ने. और फ़िर अखबारों के ज़रिये हेनरी को एक खत लिखा.   प्रिय हेनरी अब तुम वापस आ जाओ, तुम्हारा निर्वासन समाप