Ad

मिड डॆ मील लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
मिड डॆ मील लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, जुलाई 18, 2013

मिड डॆ मील व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन की दरकार

मिड डॆ मील व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन की दरकार से अब इंकार बेमानी होगा.

मिड-डे मील से 22 बच्चों की मौत, 

के बाद व्यवस्था में अगर कोई परिवर्तन न हुआ तो बेशक कुछ और हादसे हमारे सामने होंगे. स्कूलों मे मिड डॆ मील के लिये मौज़ूदा व्यवस्था निरापद कदापि इस वज़ह से नहीं कही जा सकती क्योंकि गुणवत्ता और स्वच्छ्ता इसके सबसे महत्वपूर्ण बिंदू हैं  जिन पर नज़र रखना सहज नहीं है. खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में.   देश की सर्वोच्च अदालत के निर्देश के बाद  लागू  इस व्यवस्था में सरकारों ने काफ़ी अधिक कोशिशें कीं हैं पर आप देखेंगे कि सरकारी मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम में स्तरीय गुणवत्ता और स्वच्छ्ता को लेकर अक्सर सवाल उठते रहे हैं. यहां स्वयम जागरूक जनता भी व्यवस्था की अनदेखी की दोषी है. ऐसा नहीं है कि सरकार ने ”सु्रक्षा के तौर तरीके न सुझाए होंगे ” परन्तु निचले स्तर तक गुणवत्ता और स्वच्छ्ता के मापदण्डों को हू बहू लागू किया जाना कठिन है.
गुणवत्ता और स्वच्छ्ता के मापदण्डों की अनदेखी का परिणाम है बिहार. मूल रूप से मिड डे मील व्यवस्था को निरापद बनाने के लिये ज़रूरी है कि सरकारें केवल स्वच्छ्ता और गुणवत्ता से क़तई समझौता न करे. वरना बिहार का यह मन्ज़र आम हो जाएगा. सरकारों को इसकी गुणवत्ता बनाए रखने के लिये ज़रूरी है कि व्यवस्था पर सूक्ष्म चिंतन करे
            व्यवस्था में सुधार के सुझाव

  1.  निरापद एवम सुरक्षित पाक़शाला - किसी भी खाद्य पदार्थ के निर्माण के लिये निरापद एवम सुरक्षित पाक़शाला का होना अनिवार्य है. जिसके अभाव में स्तरीय आहार व्यवस्था की कल्पना करना एक स्वप्न मात्र है.
  2.  स्वच्छता एवम गुणवत्ता -  स्वच्छता एवम गुणवत्ता के संदर्भ में आमूल-चूल परिवर्तन बेहद आवश्यक है. कठोर नियमों को लचीला बनाते हुए प्रूडॆंट-शापिंग प्रणाली को महत्व देने की ज़रूरत है. आहार निर्माण के लिये वांछित  कच्चे माल की खरीददारी  जिला अथवा अनुभाग स्तर पर किसी खाद्य-विशेषज्ञ  की मदद लेकर ही की जानी चाहिए .साथ ही पाकशाला में स्वच्छता के मापदंडों की अनदेखी भी ऐसी घटनाओं की आवृत्ति करा सकती हैं .  
  3.  सामाजिक दखल -  समुदाय की सकारात्मक दखल के बगैर व्यवस्था में सुधार की अपेक्षा भी बेमानी है.समुदाय के पाजिटिव व्यक्ति अच्छी तरह से कार्य करने का  प्रेशर बना सकते हैं .
  4.  खाद्य-अपमिश्रण क़ानून के तहत सतत कार्रवाई करना भी ज़रूरी है.
  5. प्रबंधकीय ज्ञान  .का अभाव भी इस अव्यवस्था के लिए ज़वाबदेह है. जिसे दूर करना आवश्यक है. 
  6. उत्तरदायित्व निर्धारण .सामूहिक रसोई के प्रबंधन से लेकर हर छोटी बड़ी व्यवस्था में उत्तरदायित्व का पूर्व से निर्धारण आवश्यक है .

Ad

यह ब्लॉग खोजें

मिसफिट : हिंदी के श्रेष्ठ ब्लॉगस में