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सोमवार, अक्टूबर 03, 2022

चर्चिल गांधी से ही नहीं बल्कि संपूर्ण भारत को घृणा के भाव से देखते थे..!


*चर्चिल गांधी से ही नहीं बल्कि संपूर्ण भारत को घृणा के भाव से देखते थे..!*
   *गिरीश बिल्लोरे मुकुल*
   उपनिवेश के रूप में भारत को  शोषित करने वालों में ब्रिटिश क्रॉउन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल का नाम सर्वोपरि है। वे भारत को राष्ट्र कभी नहीं मानते थे। भारत के सामंतों और बादशाहों के  कुकृत्यों के कारण चर्चिल के मस्तिष्क में भारत को एक कमजोर भूखंड के रूप में स्वरूप नजर आता था। परंतु जैसे जैसे  भारत की विशेषताओं का ज्ञान उनको होने लगा तो वह भारत को एक तरफ से अपमानित करने का कोई अवसर नहीं चूकते थे। अपने मंतव्य को पूर्ण करने के लिए उन्होंने भारत की परिभाषा देते हुए कहा-" भारत कोई राष्ट्र नहीं है बल्कि पृथ्वी का एक टुकड़ा है जैसे महाद्वीप होते हैं जैसे महासागर होते हैं।"
   चर्चिल का चिंतन भारत के अध्यात्म से घबराकर चिंता में बदल गया था। भारत की बौद्धिक संपदा चर्चिल के मस्तिष्क को हिला देने का आधार थी। महात्मा गांधी से विंस्टन चर्चिल आत्मिक विद्वेष रखते थे। वह गांधी जी को पाखंडी बूढ़ा इत्यादि शब्दों से संबोधित करते हुए उनके अनशन को भी संदिग्ध मानते थे। यह वही वक्त था जब महात्मा जी को आगा खां पैलेस में गिरफ्तार कर रखा गया था । सुधी पाठकों जानिए कि महात्मा गांधी ने बंगाल की दुर्दशा देखते हुए 21 दिन के कठोर उपवास की घोषणा की और इस उपवास में वह मौत के साथ आंख मिचोली करते रहे। यह वही दौर था जब कोलकाता और संपूर्ण बंगाल में फसल ही नहीं हुई थी। तब बंगाल की जनता दाने-दाने को मोहताज हो गई थी। विंस्टन चर्चिल ने भारत को घृणा के भाव से देखते हुए भारत के अकाल पीड़ित लोगों की जीवन संभावनाओं को समाप्त करने का जैसे संकल्प ही ले लिया था। चर्चिल ने ब्रिटिश कॉलोनी भारत के अकाल पीड़ित क्षेत्रों में घृणास्पद शब्दों का प्रयोग करते हुए भारत में खाद्यान्न की आपूर्ति रोक दी थी। विंस्टन चर्चिल के दौर में सर्वाधिक शोषण भारत का हुआ। वह गांधी जी के विरुद्ध पूरी तरह से तैयार था। आज भी बहुतेरे लोग गांधी जी से असहमति रखते हैं रखना चाहिए कोई आपत्ति नहीं परंतु गांधी का हद से ज्यादा जिद्दी होना ही उनकी ताकत थी। गांधी जी ने भारतीय जनता को आत्मनिर्भरता का सूत्र दिया। महात्मा थे वे तभी तो वह यह सब कर पाए। स्वदेशी जागरण का बीड़ा उठाने वाले महात्मा गांधी ने कपास और तकली के छोटे से सस्ते से यंत्र के जरिए बता दिया कि तुम अपने शरीर को खुद ढक सकते हो। मैनचेस्टर में लगे कल कारखानों से आयातित हो रहे कपड़े को स्वीकार मत करो एक वृद्ध क्रश काय व्यक्ति की आवाज क्यों मानी गई? उसका कारण था गांधी का आत्मिक रूप से पवित्र होना। आप बगैर किसी भी बच्चे को बुलाएंगे तो संभवतः बच्चा नहीं आ पाएगा आने में आनाकानी करेगा परंतु जैसे ही कोई मां अपनी संतान को पुकारती है बच्चा दौड़ा दौड़ा मां की गोद में जाकर बैठ जाता है। गांधी की स्थिति भी लगभग वही थी। मैं नहीं जानता तब क्या ऐसी स्थिति रही होगी? परंतु इतना अवश्य जानता हूं मेरी नानी सभी देवताओं की पूजा करने के साथ-साथ अंत में गांधी बाबा की जय जरूर बोलती थी। नानी के दिवंगत हुए 3 दशक से अधिक समय बीत चुका है। पर भी अच्छी खासी परिपक्व उम्र में दिवंगत हुए परंतु गांधी जी के प्रति उनका आदर भाव अविस्मरणीय है।
   यह बात और है कि मैं एक गांधी जी को 100% स्वीकार नहीं करता परंतु मेरे मन में थी गांधी के प्रति वही अगाध श्रद्धा है जो मेरे पूर्वजों के लिए मेरे मन में है। गांधी कभी नहीं मरते गांधी के विरुद्ध लाखों गोडसे खड़े हो तो भी गांधी को हम तब तक जीवंत रख सकते हैं जब तक की यह दुनिया जीवंत है। गांधी भारतीय दर्शन की व्याख्या हैं गांधी जीवन की वास्तविकता भी हैं।
   विंस्टन चर्चिल पश्चिमी आध्यात्मिक पृष्ठभूमि में पढ़ा लिखा व्यक्ति था तो महात्मा भारतीय दर्शन और अहिंसा का अभी दुर्ग.. !
    अपनी 40 साल के सार्वजनिक जीवन में गांधी के चिंतन को देखने से लगता है कि कोई भी शोषण करने वाला गांधी से घबराता है। 75 वर्ष बीत गए गांधी ने स्वच्छता के बारे में जो बात कही उसका महत्व हम लोगों को समझ में आ रहा है। महात्मा का सानिध्य भारत को मिला विश्व एक आध नंगे शरीर को तब भी महान मानता था और अब भी उसे महान बताता है। यह सच है कि मैं औरों की तरह गांधी जी से 100% सहमति व्यक्त नहीं कर सकता। चाहे आप ब्रह्मांड में उनके जीवन दर्शन पर गहन समझाएं लिख दे परंतु एक प्रयोगवादी व्यक्तित्व को पूर्णत: स्वीकार लेना मेरे लिए असमंजस की स्थिति है। गांधी जी और सबसे ऊपर वाले स्तर के लोगों से भी ऊपर थे परंतु मुझे आज भी शत-प्रतिशत से कार्य हो यह जरूरी नहीं है। थे
        स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री की जन्म तिथि पर उन्हें शत शत नमन करते हुए इस महान व्यक्ति के मानवीय गुणों की सराहना किए बिना कैसे रह जा सकता है?
       *वैज्ञानिक नियम  है बड़े पेड़ के नीचे छोटे पेड़ों का विकास और उद्धव से होता है*  परम पूज्य लाल बहादुर शास्त्री के मूल्यांकन के मद्देनजर कुछ ऐसा ही हुआ है। भारत है ही अद्भुत राष्ट्र जहां बांसुरी बजाने के वाले के पीछे आज तक लोग चल रहे हैं जहां धोती पहनने वाले के पीछे पूरा का पूरा हिंदुस्तान घूम रहा है, वही एक कद काठी में अत्यंत सामान्य व्यक्ति के लिए इतना प्रेम? जिस का बखान करना मुश्किल हो जाए। इस व्यक्ति में जिसे हम जय जवान जय किसान का उद्घोष करते हैं  नैतिकता का बल था कि एक आवाज पर लोगों ने व्रत रखना प्रारंभ कर दिया।
इसके पीछे एक कहानी थी 1965 के युद्ध में अमेरिका के राष्ट्रपति जॉनसन ने उन्हें खुलेआम धमकाया था-" कि यदि पाकिस्तान के खिलाफ आपने युद्ध नहीं रोका तो अमेरिका पीएल 480 समझौते के तहत भेजे जाने वाली लाल गेहूं की आपूर्ति बंद कर देंगे।"
   आपको याद होगा कि उसी दौर में भारत में कृषि उत्पादन विभिन्न कारणों से बहुत कम हुआ करता था। एक ओर शास्त्री जी ने भारतीय सेना का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए जय जवान का नारा दिया तो दूसरी ओर उन्होंने जय किसान कहते हुए नागरिकों का आह्वान किया कि-" हम अन्न की बचत करें, अगर संभव हो तो व्रत भी रखें। ताकि भारत के उन नागरिकों की भूख मिट सके जिन्हें पर्याप्त भोजन नहीं मिलता है।
शास्त्री जी के इस कार्य की पुष्टि करते हुए उनके बड़े पुत्र अनिल शास्त्री ने बताया था कि - मां ललिता शास्त्री शहीद दिन उन्होंने अचानक प्रश्न पूछा क्या आप एक शाम सामूहिक उपवास करवा सकती हैं?
ललिता शास्त्री जी ने हां में उत्तर दिया, उत्तर सुनकर उन्होंने आकाशवाणी के माध्यम से भारत की जनता से 1 दिन के उपवास की अपील की। पतली सी आवाज भारतवंशियों की दिल को छू गई थी। मित्रों मेरी उम्र के लोगों की उम्र उस वक्त 4 या 5 वर्ष की रही होगी। हम नहीं जानते थे कि भारत की आर्थिक स्थिति क्या है? भारत में गेहूं की उपज कैसी है? परंतु जो मूल रूप से किसान परिवार से आते हैं ऐसे मित्रों को याद होगा कि उन दिनों भारतीय कृषि व्यवस्था और उसमें सरकार की भागीदारी सकारात्मक नजर नहीं आती थी। क्योंकि घर के पास आजादी के बाद अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखने सुव्यवस्थित करने के लिए कुछ भी बेहतर न था। एक घटना कभी किसी अखबार मैं प्रकाशित हुई थी जिसमें महान व्यक्तित्व के धनी शास्त्री जी के छोटे पुत्र ने स्वीकारा- प्रधानमंत्री के रूप में बाबूजी को एक लग्जरी कार इंपाला मिली हुई थी। सुनील शास्त्री जी ने उनके सचिव से उस कार की मांग की और वे भ्रमण पर निकल गए। अगले दिन शास्त्री जी ने नाश्ते की टेबल पर सुनील शास्त्री जी को डाटा नहीं बल्कि सुनील शास्त्री को ड्राइवर को बुलाने के लिए भेजा। ड्राइवर से पूछा गया कि गाड़ी कितने किलोमीटर चली थी? ड्राइवर ने बताया 14 या 15 किलोमीटर। शास्त्री जी का प्रश्न था कि क्या गाड़ी के चलने का हिसाब किताब किसी लाग बुक में मेंटेन करते हैं ड्राइवर ने बताया हां हम गाड़ी को जहां ले जाते हैं वहां का आने जाने का समय और किलोमीटर गाड़ी की लॉग बुक में भरते हैं। इस सूचना प्राप्ति के बाद माता ललिता शास्त्री से कहा-" गाड़ी के उपयोग का अधिकार हमें नहीं है हम केवल सरकारी कार्य के लिए इसका प्रयोग कर सकते हैं। फिर भी अगर उपयोग हो चुका है तो सचिव को उतनी राशि दे दी जावे ताकि वह खजाने में जमा हो जाए। इससे सुनील शास्त्री सहित पूरे परिवार को यह शिक्षा मिली कि हमें शासकीय सुविधाओं का दुरुपयोग नहीं करना है निजी इस्तेमाल के लिए तो बिल्कुल नहीं ।
   आप सब ने अयूब खान का नाम सुना होगा। पाकिस्तानी जनरल अयूब खान ने शास्त्री जी के एयरक्राफ्ट में बैठते समय अपने लोगों की ओर देखते हुए शास्त्री जी का मखौल उड़ाते हुए कहा था-" यह व्यक्ति कमजोर प्रधानमंत्री है। इससे बात करना बहुत आवश्यक नहीं महसूस करता।"
 ताशकंद में पूज्य शास्त्री जी के निधन के उपरांत उनके अंतिम संस्कार में भाग लेने यही अयूब खान भारत आए और उन्होंने भारत और पाकिस्तान आपसी संबंधों में सुधार का प्रतीक निरूपित किया था शास्त्री जी को।
   हरित क्रांति और सेना में बदलाव के प्रणेता पूज्य लाल बहादुर शास्त्री की जन्म जयंती पर उनके महा निर्वाण पर टिप्पणी नहीं करूंगा न ही उस रहस्य के भीतर आपको जाने को कहूंगा, परंतु पड़ोसी देशों के साथ हमारे युद्ध के निर्णय को श्रेष्ठ अवश्य बताऊंगा आप को स्वीकारना होगा कि यदि वह छोटी सी पर्सनालिटी वाला महान व्यक्ति युद्ध की घोषणा ना करता तो शायद हम आज इस श्रेष्ठ युग में इतराते न पाते । सच मायने में आजाद भारत में किसान को पहचानने वाला यदि वहीं था जवान के महत्व को पहचानने वाली ताकत उन्होंने ही हासिल की थी । बताओ भला शरीर से अति साधारण कद काठी का होना वैचारिक रूप से असाधारण होने का अनुपम उदाहरण थे। मैंने इस बार व्यौवहार  राजेंद्र सिंह जी से कहा था-" दादाजी मेरा आप पर आकर्षण केवल इसलिए है कि आप साहित्यकार हैं ऐसा नहीं है। आप पर आकर्षित होने का कारण आपके व्यक्तित्व में सहजता सरलता की झलक पूज्य लाल बहादुर शास्त्री के समतुल्य है।" एक किशोर द्वारा की गई तुलना से प्रभावित व्यौवहार  राजेंद्र सिंह जी अपलक  मुझे देखते रहे और फिर आशीष आशीर्वाद दिया था उन्होंने।
   परम पूज्य शास्त्री जी को शत शत नमन मैं 100% शास्त्री बनना चाहूंगा क्योंकि वे अत्यधिक प्रयोगवादी नहीं थे न ही जिद्दी थे , पूज्य शास्त्री जी महात्मा गांधी की तरह सरल सहज दिव्य दर्शक थे ,वे भारत का भविष्य का निर्धारण कर चुके थे आज आप देखिए विश्व भारत की ओर उसकी जवानों की ताक़त और भारत को फूड सिक्योरिटी प्रदान करने की ताकत  समक्ष नतमस्तक हो कर देख रहा है। जरा सा विषय अंतर होते हुए आपको सूचित करना चाहता हूं पूज्य शास्त्री जी के व्यवहार से प्रेरित होकर 1964 में ही मनोज कुमार ने उपकार फिल्म का निर्माण प्रारंभ कर दिया था। इस फिल्म में भारत की तत्सम कालीन कृषि समस्या का स्वरूप स्पष्ट हुआ है।
  मैं यह नहीं कहता कि जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के नाम का परिवर्तन कर दिया जाए क्योंकि वे भ महान विचारक थे
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे परंतु मैं चाहूंगा कि कृषि कर्मणा जैसे पुरस्कार  पूज्य प्रधानमंत्री शास्त्री जी के नाम पर भी होनी चाहिए।       हमें अपने पूर्वजों का स्मरण करते रहना जरूरी है। इन पुरखों ने देश के लिए क्या नहीं किया सीमित साधनों में उनके असीमित प्रयासों को अस्थाई अनियंत्रित विचारधारा आयातित विचारधारा की स्थापना के लिए गलत तरीके से प्रचारित किया है।
    विंस्टन चर्चिल का गांधी के प्रति विद्वेष युग युग तक निंदनीय रहेगा। चर्चिल कुंठित थे, उनको लगता था अगर भारत की प्रतिष्ठा बढ़ गई तो यूरोप का क्या होगा पश्चिम का क्या होगा?
    देर सबेर भारत की प्रतिष्ठा का बढ़ना स्वभाविक था। आप देख रहे हैं होगी वही रहा है। 16000 वर्ष ईसा पूर्व से जारी भारत की गतिशीलता मात्र ढाई से तीन हजार वर्ष पुरानी सभ्यता को स्पर्श तक नहीं कर पाई। भारतीय उपमहाद्वीप की सभ्यता और संस्कृति का लेखा जोखा गलत लाइन से सेट करने वाला ब्रिटिश क्रॉउन अब हतप्रभ है। यूरोप की मजबूरी है जी वह भारत का पुनरीक्षण करें और नए रिश्ते कायम हों। हो भी यही रहा है । विश्व की सोशियो  इकोनामिक पॉलीटिकल परिस्थितियों को देखा जाए तो भारत आज भी उसी तरह महत्वपूर्ण है जैसा लगभग 800 वर्ष पूर्व हुआ करता था। मेरे मित्र कहा करते हैं कि- "कदाचित हमारे सॉफ्टवेयर में बदलाव आ गया है?" मित्र समीर शर्मा इस आर्टिकल के जरिए बता देना चाहता हूं चार वेद पांच पुराण महाभारत भगवत गीता अरण्यक उपनिषद् के अलावा गांधी और शास्त्री जैसे महान विचारकों का भारत सॉफ्टवेयर बनाता है दुनिया को बदलने की क्षमता रखता है उसके सॉफ्टवेयर में किसी भी तरह की मिलावट और गड़बड़ी की कल्पना मत कीजिए।

शनिवार, अगस्त 27, 2022

बापू के बंदरों के वंशज

    *बापू के बंदरों के वंशज*
         ( व्यंग्य-गिरीश बिल्लोरे मुकुल)
   महात्मा गांधी ने हमें जिन तीन बंदरों से परिचय कराया था उन्हीं के वंशजों से हमारा अचानक मिलना हो गया। तीनों की पर्सनालिटी अलग अलग नजर आ रही थी यहां तक कि वे बंदरों से ही अलग थे।
   व्यक्तित्व में बदलाव तो होना चाहिए स्वाभाविक है कि विकास अनुक्रम में सांस्कृतिक विकास सबसे तेजी से होता है इसमें नए नए शब्द मिलते हैं। शारीरिक शब्दावली आप बदली हुई देख सकते हैं। बापू के तीनों बंदर वाकई में बदल चुके थे। बंदर क्या वह इंसानों से बड़े इंसान बंदर नजर आ रहे थे।
  आपको याद होगा जिस बंदर ने अपनी कान में अंगुलियां डाल रखी थी , उसकी  वंशज ने मुझसे गर्मजोशी से हाथ मिलाया। और कुछ नहीं लगा क्या कर रहे हो आजकल हमने अपना बायोडाटा रख दिया और कहा अब आप तीनों ने मेरा परिचय तो जान लिया होगा आप लोग क्या कर रहे हैं मुझे बताने का कष्ट कीजिए...!
  हां मेरे दादाजी कान में उंगली डाल कर गांधी जी के पास रहा करते थे। हम भी वही कुछ सबको सिखा रहे हैं।
अच्छा....यह तो बहुत अच्छी बात है।
नहीं नहीं आप समझ नहीं पा रहे हैं..! बंदर ने कहा, हम लोगों को बता रहे हैं कहां से कैसी आवाज आ रही है, कौन कह  रहा है, इस पर तुम्हें ध्यान देने की बिल्कुल जरूरत नहीं। क्योंकि तुम्हारी औकात तो है नहीं अगर सुनोगे तो फिर उत्तेजित होकर एक्शन मोड में आ जाओगे.. ! हो सकता है कि आ बैल मुझे मार वाली स्थिति का निर्माण भी कर लो। तो ऐसे मसलों को सुनने की जरूरत क्या है। भाई युक्ति से मुक्ति मिलती है युक्ति लगाओ और मुक्त रहो क्या बुराई है?
    मित्रों उस महान बंदर की संतान का जितना आभार माना जाए कम है। मध्यम वर्ग के लिए तो यह एकदम फिट बैठता है। मध्यवर्ग को इस प्रथम बंदर की औलाद का उपदेश आत्मसात कर लेना चाहिए भाई।
  तभी दूसरे बंदर ने सिगरेट जलाई और मेरी तरफ मुखातिब होकर पूछा - तुम कवि लेखक निबंधकार ब्लॉग लेखक हो?
मेरा उत्तर हां में था। मैंने भी उससे प्रति प्रश्न किया तो तुम्हें मेरा लिखा हुआ पसंद आता है?
    तभी कॉफी हाउस में चलने का अनुरोध सुनकर मैं उनके पीछे पीछे हो लिया।
    अनुकूल टेबल चुनकर हम बैठ गए। दूसरे बंदर ने कहा-" तुम्हें मैं बिल्कुल नहीं पढ़ता ! हां तुम्हारी फोटो शोटो पेपर में देख कर लगता है कि तुम लिखते हो किसी ने बताया भी था कि तुमने एक किताब लिख मारी है सॉरी भाई बुरा मत मानना अब हम ठहरे बंदर इधर से उधर उधर से इधर टाइम कहां मिलता है?
मैंने पूछा - चलो ठीक है बताओ तुम्हारा धंधा क्या है ?
     मैं भी सोशल एजुकेशन फील्ड में काम कर रहा हूं। मैं ऐसे नेगेटिव स्थापित करने में अपनी क्लाइंट की मदद करता हूं जिससे क्लाइंट के पक्ष में वातावरण निर्मित हो। मैं पब्लिक को सिखाता हूं यह मत देखो वह मत देखो जो मैं दिखा रहा हूं वही देखो। और फिर मैं वह चीज दिखा देता हूं जिसे मुझे बेचना होता है। छोटी सी बात है कि घर में कपूर जलाने से इंसेक्ट भाग जाते हैं। मैंने सिखाया है-" प्रिय भारतवंशियों , प्रगतिशील हो इंसेक्ट किलर स्प्रे रखो। सर में दर्द हो तो तेल पानी की मालिश मत करो अरे भाई फला कंपनी ने दवा बनाई है ना बहुत रिसर्च किया है एक बार फिर पुरानी रूढ़ीवादी बातों से छुटकारा भी तो चाहिए तुम्हें। मेरी बातें सुनकर लोग जरूर प्रभावित होते हैं मेरा क्लाइंट मुझे धन देता है मेरे बच्चों का लालन-पालन होता है। सब का मस्तिष्क ठंडा ठंडा कूल कूल रखता हूं मैं। सच बताऊं मैं सब कुछ बेच सकता हूं। कभी आजमाना मेरी सेवा में लेकर देखना..!
  मैंने उस बंदर से कहा-"भाई.., मैं ठहरा ऑफिस का बाबू मैं क्या कर सकता हूं मेरे पास कोई प्रोडक्ट नहीं है।
   बंदर बोला-" मौका तो दो मैं तुम्हें भी बेच सकता हूं"
  अब तक  वेटर चार कॉफी लेकर आ चुका था। सब जानते हैं कि मैं नाकारा नामुराद व्यक्ति हूं मुझसे किसी को कोई फायदा कभी हो सकता है भला? परंतु मेरे भी भाव लग सकते हैं मैं बेचा जा सकता हूं सुनकर मुझे विस्मित होना स्वभाविक था। एक बार तो मैं महसूस करने लगा कि वह बंदर  मुझे नीलाम कर रहा है सामने बहुत सारे गधे खड़े हैं और मुझे खरीदने का मन भी कई लोग बना चुके हैं। तभी मुंह पर हाथ रखने वाले बंदर की औलाद ने मुझे हिलाया और पूछा- श्रीमान कहां खो गए?
  स्वप्नलोक से वापस आते मैंने देखा कि बंदरों ने लगभग आधी कॉफी समाप्त कर दी थी। तीसरे बंदर ने अपने आप अपनी कहानी बिना पूछे बतानी शुरू कर दी। उसे मालूम था कि मैं उससे भी कुछ पूछने वाला हूं।
    भाई मैं तो दुनिया की हर चीज देखता हूं हर चीज सुनता हूं और अपने पूर्वज की तरह मुंह बंद रखता हूं। जानते हो क्यों..?
मैं नहीं जानता तुम ही बता दो..!
तीसरा बंदर कहने लगा-" भाई सब देखने सुनने के बाद मैं उन लोगों के पास जाता हूं जिनसे बुरा हुआ है जिनमें बुरा किया है और फिर बताता हूं कि भाई इस सब को पब्लिक फोरम पर मैं नहीं लाने वाला अगर आप मेरे लिए पत्रं पुष्पं की व्यवस्था कर दें। मैं अपने मुंह पर उंगली रख लूंगा बिलकुल वैसे ही जैसे मेरे पूर्वज जो गांधी जी के साथ थे ने अपने मुंह पर उंगली रखी थी।
   इतना कहकर बंदर अचानक गायब होने लगे, कॉफी हाउस का वेटर मेरी ओर बिल लेकर आ रहा था, कि... मेरी पत्नी ने मुझे हिलाया, और चीखते हुए बोली-" तुम लेखकों का यही दुर्भाग्य है रात भर जागना और 9:00 बजे तक बिस्तर पर पड़े रहना.. बच्चों का ख्याल नहीं होता तो कब की तुम्हें छोड़कर मैके चली जाती..!"
    हम जैसे बेवकूफ लेखकों का भूतकाल वर्तमान और भविष्य इसी तरह की लताड़ का आदि हो गया है। यह अलग बात है कि स्वप्न में जिन बंदरों से मुलाकात हुई वह बंदर कितने विकसित हो चुके हैं कितने परिपक्व हैं यह हम अब तक ना समझ सके।
*डिस्क्लेमर : इस व्यंग्य का किसी से कोई लेना देना नहीं जिसे पढ़ना है पढ़ें समझना है समझो अपने दिल पर ना लें अगर आप गांधीजी के बंदर हैं तो भी और नहीं है तब भी*

रविवार, फ़रवरी 21, 2021

मां यह चादर वापस ले ले...!


माँ खादी की चादर ले ले
माँ, कभी स्कूल में टीचर जी ने मुझे सिखाई थी मां खादी की चादर दे दे मैं गांधी बन जाऊंगा।
उन दिनों यह कविता मुझे एक गणतंत्र दिवस कार्यक्रम में सुनानी थी। शायद मैं  चौथी अथवा पांचवी क्लास में पढ़ता था कुछ अच्छे से याद नहीं है। बहुत दिनों बाद पता चला कि मुझे गांधी एक सीमा के बाद गांधी नहीं बनना है। गांधी जी के शरीर में एक पवित्र आत्मा का निवास था यह कौन नहीं जानता। बहुत दिनों तक खादी और चादर में उलझा रहा। चरखा तकली हाफ खाकी पेंट  वाली सफेद बुशर्ट गांधी बहुत दिन तक दिमाग पर इसी तरह हावी थे अभी भी हैं।
     गांधी बनने के बाद बहुत दिनों तक मूर्ख बुद्धू बनकर शोषित होते रहना जिंदगी की गोया नियति बन गई हो।
  जलियांवाला बाग सुभाष चंद्र बोस सरदार भगत सिंह चंद्रशेखर आजाद यह सब तो बहुत बाद में मिले। उम्र की आधी शताब्दी बीत जाने के बाद उम्र के आखिरी पड़ाव में आकर यह सब मिल पाए हैं।
     अहिंसा परम धर्म है इसे अस्वीकृत नहीं करता कोई भी। सभी इसे परम धर्म की प्रतिष्ठा देते हैं और जिंदगी भर देते रहेंगे यह सनातनी परंपरा है ।
    परंतु हर दुर्योधनों को याद रखना पड़ेगा कि -" पार्थ सारथी कृष्ण यदि अंतिम समझौता अर्थात कुल 5 गांव के आधार पर युद्ध रोकने का अनुरोध करें और दुर्योधनों के साथ सहमति ना बन सके तो युद्ध अवश्य ही होगा।"
    याद रख दुर्योधन षड्यंत्र से मुझे फर्क नहीं पड़ेगा मैं जो अर्जुन हूं अरिंजय कृष्ण का साथ मिलते ही कुरुक्षेत्र अवश्य जाऊंगा।
   सुधि पाठकों, समझ गए ना कि क्या कह रहा हूं। अब गांधी के अलावा बाकी सब से मिल चुका हूं। सब ने सब कुछ समझा दिया है सत्य असत्य सत्य के साथ प्रयोग भी समझ चुका हूं।
     इंद्रजीत नेमिनाथ ने कृष्ण को अवश्य समझाया होगा अहिंसा का अमृत रस हमारी संस्कृति में नेमिनाथ जी के पूर्व से भी राजा मांधाता ने स्थापित कर दी थी। संपूर्ण 24 तीर्थंकर यही तो समझाते रहे हैं। हमने कभी नहीं सोचा की सत्ता का रास्ता बंदूक की नली से जाता है हम तो सत्ता का रास्ता वसुधैव कुटुंबकम की स्थापना के लिए अश्मित के जरिए तलाशते रहे। बुद्ध ने भी यही तो किया था। बोधिसत्व बनो और बुद्ध तक की जैसे की यात्रा करो रोज जन्मो रोज मारो हर नए जन्म में नया चिंतन लेकर आओ अंततः बुद्ध बन जाओ। युद्ध नहीं करना है मत करो। पर युद्ध ना करने से अगर लाखों भारतीय मारे जाते हैं तो युद्ध ना करना हिंसा ही है। तुम विश्व को समाप्त करने के लिए विषाणु भेजते हो हम दुनिया को बचाने के लिए टीके भेज रहे हैं कभी सोचा है तुम अपनी मूल प्रवृत्ति के इर्द-गिर्द हो।
  तुम बाएं बाजू चलते रहो मैं दाएं बाजू चलता रहूंगा। तुम चिड़िया चूहे गिलहरी खरगोश मारते रहो हम चिडियों से चीटियों तक चुग्गा चुगाते रहेंगे ।
     आओ ना तुम भी दाएं बाजू आ जाओ । 


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