एक बार फ़िर आओ कबीर
दिशा हीन क्रांतियां, क्रांतियों में भ्रांतियां.. एक अदद क़बीर की ज़रूरत है.कबीर जो क्रांतियों को एक दिशा देगा कबीर जो बिगड़ते आज को सजा देगा हां उसी क़बीर की जिसने राम रहीम का तमीज़ सिखाया बेशक़ उसी कबीर की बात कर रहा हूं जो अहर्निश चिंतन करघे से बुनता रहा सम्वेदनाओं आसनी.और चदरिया . जी हां उसी क़बीर की प्रतीक्षा है. कबीर मुझे सुनो मेरी चादर तार तार है.. आसनी उफ़्फ़ क़बीरा वो तो बैठने लायक न रही. जिसे देखो कोई मेरी चादर कोई मेरी आसनी खैंच रहा है अबकी ऐसी बुन देना कि अमर हो जाए.. मैं मर जांऊं पर न आसनी फ़टे न चादर झीनी हो. क्या सम्भव है ये..? आओ जुलाहे एक बार आ ही जाओं सब राम रहीम सब को भूल गये इनके राम को ये भूल गए उनके उनको याद दिलाओ कबीर कि " राम रहीमा बंदूक बम तलवार में नहीं बसते " कुछ मूरख "अल्ला" की हिफ़ाज़त करने निकले हैं बन्दूकें हाथ लिये क़बीर तुम भी हंसोगे इन मूर्खों की करतूतों पे ये मूरख नहीं जानते परमपिता को कोई मार सका है..? न ये मनके मनके फ़ेर न पाए अब तक बस दिये जा रहे हैं बांग और पिता तो...!और हा