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5.9.22

मेरे निर्माता मेरे गुरु शत शत नमन

आज शिक्षक दिवस है शिक्षकों का केवल एक दिन है। शिक्षक शिक्षक नहीं मल्टीपरपज कर्मी हो चुके हैं। शिक्षा व्यवस्था  धीरे धीरे परिवर्तित हो रही है यह संतोष की वजह है। माता-पिता के बाद हमारी जिंदगी को सजाने संवारने वाला शिक्षक ही तो है। मैं अपनी प्रत्येक शिक्षक का आभार व्यक्त करता हूं उनके प्रति कृतज्ञ ना होना मेरा दुर्भाग्य होगा। जो भी अब तक हासिल किया है उसका आधार केवल गुरु अच्छा शिक्षक ही तो हैं..!
  आइए कुछ वर्षों पूर्व शायद 10 से 15 वर्ष पूर्व का एक विवरण आपके समक्ष रखता हूं..
     गुरुवर तुम्हें प्रणाम
    बात उन दिनों की है जब सरकारी तौर पर मेरी ड्यूटी स्कूल के निरीक्षण के लिए लगाई गई। मेरे साथ एक  राजस्व निरीक्षक थे। इन दिनों मिड डे मील पर सुप्रीम कोर्ट बहुत सख्त था और सरकार से कार्यक्रम के प्रॉपर क्रियान्वयन के लिए बेहद कड़े निर्देश थे जैसा कि हमें बताया गया। सुदूर गांव में स्कूल बच्चे दोपहर का भोजन स्कूल में ही करते थे। अभी भी वही प्रक्रिया जारी है परंतु शुरुआती दौर में मिड डे मील लागू करने में बहुत सारी कठिनाइयां प्रशासन को भी फेस करनी पड़ती थी।
    जबलपुर से ग्रामीण क्षेत्र पहुंचते-पहुंचते राजस्व निरीक्षक ने मुझे कई मुद्दों से परिचित कराते हुए ब्रेनवाश कर दिया कि- शिक्षक गांव में नहीं जाता जबलपुर में बैठकर आपसी सांठगांठ से काम चलाता है। आप गलत रिपोर्ट बनाइए। स्कूल मास्टर को दंडित करवाना होगा । 
     कुछ हद तक बात तो सही थी लेकिन पूरा सच यही था मुझे यकीन नहीं हुआ। अधिकांश गांव में स्कूल चलते हुए मिले गुरुजन बच्चों को शिक्षा और खानपान की व्यवस्था में मशरूफ मिले। संयोगवश समूचे क्षेत्र के स्कूल थोड़ी बहुत सैनिटेशन संबंधी समस्या के बावजूद सामान्य चल रहे थे।
   दूरस्थ गांव में स्कूल में 2 शिक्षक थे और लगभग 100 के आसपास बच्चे। एक टीचर से जब पूछा कि दूसरे गुरु जी कहां हैं तब उन्होंने बताया कि वह किचन में व्यवस्था कर रहे हैं बहुत लेट हो रहा है इन बच्चों को मिड डे मील।
    मुझे लगा कि रसोईया खुद बहुत ढीली होगी काम धाम ढंग से नहीं करती है इसलिए टीचर जी वही होंगे। और सीधे घर जाते हुए हमारी टीम किचन सेट में पहुंच गई। एक मुझसे अधिक उम्र के व्यक्ति सिर झुका कर चावल चेक कर रहे थे। और फिर रुक कर दाल का हाल-चाल लेने लगे। तभी आर आई ने सरकारी भाषा में डपट लगाई- मास्साब जिले से साहब आए समझ में नहीं आता..?
  इतनी पंक्तियां हमें भी उत्तेजित करने के लिए पर्याप्त थी लगातार नकारात्मक बात सुनते सुनते मस्तिष्क भी वैसा ही हो चला था। यकायक शिक्षक ने अपना सिर ऊपर किया और कांपते हाथों को जोड़कर मुझे प्रणाम करने लगे ।
   मेरी आंखें डबडबा और अवसाद अपराध बोध से ग्रसित मैंने गुरुदेव के झुककर चरण स्पर्श किए।
    चर्चा में मुझे ज्ञात हुआ कि गुरुदेव के पिता माता का स्वर्गवास हो गया है बच्चों की जिम्मेदारी गुरु मां अर्थात उनकी पत्नी संभालती हैं। वे सप्ताह में एक या 2 दिन या सरकारी अवकाश पर ही शहर जा पाते हैं। सेवानिवृत्ति के लिए तब गुरुदेव के 2 साल और शेष थे। मिड डे मील स्कीम लॉन्च होने पर उस गांव में रसोइए का मामला दांवपेच में उलझा था। कभी छोटे गुरु जी तो कभी बड़े गुरु जी खाना पका कर बच्चों को खिलाते थे। यह बहुत बड़ी समस्या नहीं थी परंतु गांव में उत्कृष्ट समन्वय ना होने के कारण गुरुजनों को ऐसी समस्या फेस करनी पड़ रही थी। जब मैंने उनसे विद्यालय के विगत 3 वर्षों के रिजल्ट के बारे में जानकारी हासिल की जिसे प्राप्त फॉर्मेट के कॉलम में भरना था मुझे आश्चर्य का ठिकाना ना रहा । उस स्कूल का आंतरिक रिजल्ट तो उच्च स्तरीय था, साथ ही साथ बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम अप्रत्याशित रूप से उत्तम थे प्रत्येक बोर्ड परीक्षा में 8 से 10 बच्चे प्रथम श्रेणी शेष द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुए थे।
   मुझे भी अथाह प्रेम से और कर्तव्य निष्ठा के साथ उन्होंने पढ़ाया था। स्कूल के दिनों में जब तक वह यह सुनिश्चित नहीं कर लेते थे कि सारे बच्चों को ज्ञान की प्राप्ति हो गई वह अपने काम को अधूरा समझते थे। पूरी कमिटमेंट के साथ शिक्षा देने वाले ऐसे कर्मठ शिक्षक समाज में भरे पड़े हुए। शिक्षक दिवस पर ऐसे कर्मठ एवं त्यागी गुरुजनों को शत-शत प्रणाम। ऐसे दृश्य हमेशा आपको नजर आएंगे आप शिक्षक को सम्मान दीजिए मैं अगर किसी पद पर हूं तो मां बाप के बाद मेरे निर्माता मेरे गुरु जन ही तो है न ।

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