अब अन्ना हाशिये पर हैं.......?
मैं अन्ना के आंदोलन की वैचारिक पृष्ट भूमि से प्रभावित था पर किसी फ़ंतासी का शिकार नहीं भ्रष्टाचार से ऊबी तरसी जनमेदनी को भारत के एक कोने से उठी आवाज़ का सहारा मिला वो थी अन्ना की आवाज़ जो एक समूह के साथ उभरी इस आवाज़ को "लगातार-चैनल्स खासकर निजी खबरिया चैनल्स पर " जन जन तक पहुंचाया . न्यू मीडिया भी पीछे न था इस मामले में. जब यह आंदोलन एक विस्मयकारी मोड़ पर आ आया तब कुछ सवाल सालने लगे हैं. पहला सवाल तुषार गांधी ने उठाया जिस पर गौर कि अन्ना और बापू के अनशन में फ़र्क़ है कि नहीं यदि है तो क्या और कितना इस बात पतासाज़ी की जाए. तुषार जी के कथन को न तो ग़लत कह सका और न ही पूरा सच . ग़लत इस वज़ह से नहीं कि.. अन्ना एक " भाववाचक-संज्ञा " से जूझने को कह रहें हैं. जबकि बापू ने समूहवाचक संज्ञा से जूझने को कहा था. हालांकि दौनों का एक लक्ष्य है "मुक्ति" मुक्ति जिसके लिये भारतीय आध्यात्मिक चिंतन एवम दर्शन सदियों से प्रयासरत है . तुषार क्या कहना चाह रहें हैं इसे उनके इस कथन से समझना होगा उन्हौने ( तुषार गांधी ने) कहा था - महात्मा गांधी यहा