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शनिवार, दिसंबर 25, 2010

आवाज पर ओल्ड इज़ गोल्ड श्रृंखला से चार प्रतिनिधि गीत

सजीव सारथी जी 
हिंदयुग्म के आवाज़ अनुभाग से ओल्ड-इज़-गोल्ड के इन सदाबहार गीतों को प्रस्तुत करते हुये मैं अर्चना चावजी क्रिसमस एवम नववर्ष की अग्रिम बधाईयों के साथ प्रस्तुत हूं. साथियो , यदि कहा जावे कि हिंद-युग्म एक वेब पर हमारी आवश्यकता है  उसके सामग्री चयन,विषय-वस्तु की वज़ह से तो कोई अतिश्योक्ति नही    मेरी कम्पेयरिंग में आशा आप को यह पसंद आए...संजीव सारथी और अनुराग शर्मा एवम सम्पूरं हिंद युग्म परिवार को अर्चना-चावजी एवम सहप्रस्तोता गिरीश बिल्लोरे मुकुल का "मिसफ़िट:सीधीबात" की ओर से हार्दिक आभार निवेदित है     

मैं बन की चिड़िया बन के.....ये गीत है उन दिनों का जब भारतीय रुपहले पर्दे पर प्रेम ने पहली करवट ली थी


हाथ सीने पे जो रख दो तो क़रार आ जाये....और धीरे धीरे प्रेम में गुजारिशों का दौर शुरू हुआ


भुला नहीं देना जी भुला नहीं देना, जमाना खराब है दगा नहीं देना....कुछ यही कहना है हमें भी


दीवाना हुआ बादल, सावन की घटा छायी...जब स्वीट सिक्सटीस् में परवान चढा प्रेम  

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