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सामरिक ताकत बनने से पहले मानव संसाधन का विकास जरूरी है

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    कॉलेज के दिनों में बढ़-चढ़कर हम अक्सर निशस्त्रीकरण पर बेहद प्रभावशाली ढंग से अपने विचार रखा करते थे। उस दौर में हमारे मस्तिष्क में भी शस्त्र विहीन राष्ट्र की कल्पना अत्यधिक आदर्शवादी ताकि चलते हावी रहा करती थी। उन दिनों सैन्य शक्ति के संदर्भ में भरत किसी भी गिनती में नहीं आता था। परंतु हमारे मस्तिष्क में हमेशा ही विश्व की भारत के लिए की जाने वाली चैरिटी का ख्याल बना रहता था। आर्थिक दृष्टि से भारत की विकास दर इतनी धीमी थी जितनी थी चीटियां भी धीमी गति से नहीं चलती। तब हम चिंतित जरूर थे परंतु हताश नहीं । तब भारत कई मोर्चों पर युद्ध रत रहा है। सीमा पर हमेशा चीन और पाकिस्तान की हरकतें देश कौन उत्साह विहीन करने की कोशिश करती रही हैं। दूसरा मुद्दा भारतीय जनता की स्वास्थ्य शिक्षा से संबंधित समस्याएं। एक और कुपोषण रक्त अल्पता औसत आयु में कमी तथा सामाजिक स्वास्थ्य के गिरते हुए समंक हमारे मस्तिष्क को जब जोड़ देते थे वहीं दूसरी ओर शिक्षा का स्तर भी बेहद शर्मनाक था। सोचिए जब हम अपने जॉब में आए तब भी शिक्षा का स्तर और स्वास्थ्य संबंधी आंकड़ों में कोई उत्साहवर्धक परिणाम नजर नहीं आते थे।    खेतों

हम विकास की भाषा से अनजान हैं..

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          विश्व में  शांति की बहाली को लेकर समझदार लोग बेहद बेचैन हैं  कि किस प्रकार विश्व में अमन बहाल हो ? चीनी राष्ट्रपति के भारत आगमन के वक़्त तो अचानक मानों चिंतन और चर्चा को पंख लग गए . जिधर देखिये उधर चीन की विस्तारवादी नीति के कारण प्रसूते सीमाई विवाद के चलते  व्यवसायिक अंतर्संबंधों को संदर्भित करते हुए  चर्चाओं में खूब ऊर्ज़ा खर्च की जा रही है .                हम भारतीयों की एक आदत है कि हम किसी मुद्दे को या तो सहज स्वीकारते हैं या एकदम सिरे से खारिज़ कर देते हैं. वास्तव में आज़कल जो भी वैचारिक रूप से परोसा जा रहा है उसे पूरा परिपक्व तो कहा नहीं जा सकता. आप जानते ही हैं कि जिस तरह अधपका भोजन शरीर के लिये फ़ायदेमंद नहीं होता ठीक उसी तरह संदर्भ और समझ विहीन वार्ताएं मानस के लिये . तो फ़िर इतना वैचारिक समर क्यों .. ? इस बिंदु की पड़ताल से पता चला कि बहस   कराने वाला एक ऐसे बाज़ार का हिस्सा है जो सूचनाओं के आधार पर अथवा सूचनाओं (समाचारों को लेकर ) एक प्रोग्राम प्रस्तुत कर रहा होता है. उसे इस बात से कोई लेना देना नहीं कि संवादों के परिणाम क्या हो सकते हैं.               बाज़ार का विर

आंचल के आंचल का अमिय

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ड्राईंग रूम दीवारों दाग बना रही अपनी बेटी को चाक देते वक्त  आंचल ने सोचा न था कि अनिमेष उसे  अचानक रोक देगा , अनिमेष का मत था कि घर को सुन्दर सज़ा रहने दो आने जाने वाले लोग क्या कहेंगे ? ”कहने दो, मुझे परवाह नहीं, बच्ची का विकास अवरुद्ध न हो ” "भई, ये क्या, तुम तो पूरे घर को " "हां, अनिमेष मैं अपनी बेटी के विकास के रास्ते तुम्हारी मां की तरह रोढ़े न अटकाने दूंगी समझे..?" अनिमेष को काटो तो खून न निकले वाली दशा का सामना अक्सर करना होता था, उसे अच्छी तरह याद है मां ने पहली बार अक्षर ज्ञान कराया था उसे तीलियों के सहारे. ड ण आदि के लिये रंगीन  ऊन का अनुप्रयोग करने वाली तीसरी हिन्दी पास मां के पास दुनियादारी गिरस्ती के काम काज़ के अलावा भी पर्याप्त समय था हम बच्चों के वास्ते. आंचल के आंचल में अमिय था  किन्तु वक्त नहीं  तनु बिटिया के पेट  में बाटल का दूध ............उसका विरोध करना भी हमेशा अनिमेष को भारी पड़ता था. आंचल का जीवन बाहरी दिखावे का जीवन   था. उसे मालूम था कि किसी भी तरह अपनी स्वच्छन्दता को कायम रखेगी  आंचल ! तर्क का कोई मुकाबला न कर पाना अनिमेष क

प्रोवोग

अंतस तक छू लिया इस फ़िल्म ने , महिला बाल विकास विभाग के भोपाल मुख्यालय में "घरेलू हिंसा के विरुद्ध"हम सभी अधिकारियों को जब ये फ़िल्म दिखाई गई तो लगा नारी के खिलाफ़ हिंसक सोच को रोकने यदि हमको अवसर मिल रहा है तो इसमें बुराई क्या है।