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हल्की खांसी और आचार-संहिता

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साभार : अमर उजाला हम- डा. सा ’ ब लगातार हल्की खांसी बनी है.. डा. - वैसे अब आप भले चंगे हैं.. कुछ दवाएं लिख देता हूं.. हल्की फ़ुल्की खांसी बनी रहेगी ! घबराएं न . हम - घबराना तो पड़ेगा ही... लोग कह रहे हैं.. आचार-संहिता लग चुकी है.. क्या केजरी बाबू की मानिंद खौं-खौं किये जा रहे हो... डाक्टर सा’ब हंसे और लिख मारा पर्चा. हम दूकान से दवा लेके निकले रास्ते में आम आदमी नामक जीव-जन्तु तलासते तपासते हम और   रास्ते भर मन में  उछलकूद मचाते विचार एक अज़ीब सी स्थिति के शिकार से घर की तरफ़ भागे चले आ रहे थे कि मित्र ( जो मित्र होकर हमको अपना गुरु मान लेने का अभिनय कर रहे हैं कई दिनों से ) ने फ़ुनियाना शुरु किया ..... सेल फ़ोन पर हमने उनके नम्बर के साथ "नकली चेहरा सामने आये असली सूरत छिपी रहे.." वाला रिंगटोन सेट किया था.. सो समझ गये किस का फ़ोन है.. हमने फ़ोन न उठाया. फ़िर सोचा चलो बतिया लेते हैं.. सो बतियाने लगे . हमने उनसे पूछा- भई बताओ, ये केजरी बाबू खास से आम और अब आम से खास कैसे बने ? चेला- असल में अब उनको खासी आने लगी है.. वो खांस खखार के खास बन रहे हैं.. जैसे बहू-बेटियों वाले घरो