वर्ग संघर्ष : एक संक्रामक बीमारी है ?
साभार : समालोचना ब्लॉग कहते हैं खाए बिना ज़िंदा रह सकता हूँ पर लिखे बिना नहीं . मानव की आदिम प्रवृत्ति है –“सिगमेंट-शिप” जिससे वो बंधा रहना चाहता है . जहां उसे आत्म सुरक्षा का आभास बना रहता है .मानव जन्मजात पशु है . वो गुर्राता है, डराता है, डरता भी है, इस बीच उसे पावर चाहिए ......... पावर के लिए सबसे पहले अपनों को अधीन करना चाहता है करता भी है . फिर अपने अधिकारों का अधिरोपण शेष समूह पर करता है . केंद्र में सबके वही होता है जो सत्ता सियासती तरीके अख्तियार कर संचालित करता है . सत्ता को संचालित करने जो ज़रूरी है वो है संसाधन ....... अर्थात अधिकाँश भाग शीर्ष का . मैन-पावर, धन, भूमि, यानी नक़्शे के भीतर स्थित सब कुछ सत्ता में . पर कालान्तर में प्रजातांत्रिक व्यवस्थाएं प्रभावी हुईं और राजशाही सामंताशाही ने प्रस्थान किया. और साथ ही साथ शुरू होता है आदिम कबीलियाई प्रवृत्ति को उकसाने का खेल . कोई भी व्यक्ति अथवा समूह सत्ता से अधिक दिन दूर नहीं रह पाता जो सत्ता का सुख भोग चुका है अथवा आकांक्षी है . उसके डी एन ए में राज करने की प्रवृत्ति ज़िंदा जो होती है . समुदाय का समर