*होली पर हार्दिक शुभकामनाएं*
फागुन के गुन प्रेमी जाने,
बेसुध तन अरु मन बौराना ।
या जोगी पहचाने फागुन,
हर गोपी संग दिखते कान्हा ।।
रात गये नजदीक जुनहैया,
दूर प्रिया इत मन अकुलाना ।
सोचे जोगीरा शशिधर आए,
भक्ति - भांग पिये मस्ताना ।।
प्रेम रसीला, भक्ति अमिय सी,
लख टेसू न फूला समाना ।
डाल झुकीं तरुणी के तन सी,
आम का बाग गया बौराना ।।
जीवन के दो पंथ निराले,
कृष्ण भक्ति अरु प्रिय को पाना ।
दोनों ही मस्ती के पथ हैं,
नित होवे है आना जाना...!!
चैत बैसाख की गर्म दोपहरिया –
सोच के मन लागा घबराना ।
छोर मिले न ओर मिले,
चिंतितमन किस पथ पे जाना ?
मन से व्याकुल तन से आकुल
राधारमण का कौन ठिकाना ।
बेसुध बैठ गई सखि मैं तो-
देख मेरा सखि तापस बाना ।।
गोकुल छोड़ गए जब से तुम
छूटा हमारा भी पानी-दाना ।
प्राण की राधा झुलसी झुलसी
तुरतई अब किसन को होगा आना ।।
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*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*