संदेश

भेड़ाघाट लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सा'ब चौअन्नी मैको हम निकाल हैं...!!

चित्र
  संगमरमर की चट्टानों ,   को शिल्पी मूर्ती में बदल देता   ,   सोचता शायद यही बदलाव उसकी जिन्दगी में बदलाव लाएगा. किन्तु रात दारू की दूकान उसे खींच लेती बिना किसी भूमिका के क़दम बढ जाते उसी दूकान की ओर  जिसे आम तौर पर कलारी कहा जाता है. कुछ हो न हो सुरूर राजा सा एहसास दिला ही देता है. ये वो जगह है जहाँ उन दिनों स्कूल कम ही जाते थे यहाँ के बच्चे . अब जाते हैं तो केवल मिड-डे-मील पाकर आपस आ जाते हैं . मास्टर जो पहले गुरु पदधारी होते थे जैसे माडल स्कूल वाले  बी०के 0   बाजपेई ,   श्रीयुत ईश्वरी प्रसाद तिवारी ,     मेरे निर्मल चंद जैन ,   मन्नू सिंह चौहान ,   आदि-आदि ,   अब गुरुपद किसी को भी नहीं मिलता बेचारे कर्मी हो गये हैं. शहपुरा स्कूल वाले  फतेचंद जैन  मास्साब   ,   सुमन बहन जी रजक मास्साब ,   सब ने खूब दुलारा   ,   फटकारा और मारा भी पर सच कहूं इनमें गुरु पद का गांभीर्य था     अब जब में किसी स्कूल में जाता हूँ जीप देखकर वे बेचारे शिक्षा कर्मी टाइप के मास्साब  बेवज़ह अपनी गलती छिपाने की कवायद मी जुट जाते. जी हाँ वे ही अब रोटी दाल का हिसाब बनाने और सरपंच सचिव की गुलामी करते सहज ही नज़र

लोकरंग का सार्थक आयोजन

                    शनिवार दिनांक 12 नवम्बर 2011 को सरस्वतिघाट भेड़ाघाट में    जिला पंचायत अध्यक्ष भारत सिंह यादव,के मुख्य-आतिथ्य, एवम श्री अशोक रोहाणी,पूर्व-सांसद पं.रामनरेश त्रिपाठी,नगर-पंचायत अध्यक्ष श्री दिलीप राय,पूर्व-महापौर सुश्री कल्याणी पाण्डेय के विशिष्ठ आतिथ्य  में आयोजित लोकरंग का शुभारंभ मां नर्मदा एवम सरस्वती पूजन-अर्चन के साथ हुआ .       इस अवसर पर विचार रखते हुए श्री भारत सिंह यादव ने कहा –“लोक-कलाओं के संरक्षण के लिये ऐसे आयोजन बेहद आवश्यक हैं मेला-संस्कृति के पोषण के लिये भी कम महत्व पूर्ण नहीं हैं ऐसे आयोजन. सरस्वतिघाट पर हो रहे ऐसे आयोजन के आयोजन एवम प्रायोजक दौनों ही साधुवाद के पात्र हैं”.   पूर्व सांसद श्री रामनरेश त्रिपाठी ने कहा –“मोक्षदायिनी मां नर्मदा के तट पर मां नर्मदा का यशोगान बेशक स्तुत्य पहल है विग्यान के नियमों को उलट देने वाली मां नर्मदा का तट पर आयोजित लोकरंग एक सार्थक-पहल है जिसके साक्षी बन कर हम हितिहास का एक हिस्सा बन रहे हैं.”  सुश्री कल्याणी पाण्डेय के अनुसार-“ जहां एक ओर मां नर्मदा के तट पर अध्यात्म, संस्कृति को बढ़ावा मिला वहीं पुण्य-सल