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1.12.12

सा'ब चौअन्नी मैको हम निकाल हैं...!!

 संगमरमर की चट्टानों, को शिल्पी मूर्ती में बदल देता , सोचता शायद यही बदलाव उसकी जिन्दगी में बदलाव लाएगा. किन्तु रात दारू की दूकान उसे खींच लेती बिना किसी भूमिका के क़दम बढ जाते उसी दूकान की ओर  जिसे आम तौर पर कलारी कहा जाता है. कुछ हो न हो सुरूर राजा सा एहसास दिला ही देता है. ये वो जगह है जहाँ उन दिनों स्कूल कम ही जाते थे यहाँ के बच्चे . अब जाते हैं तो केवल मिड-डे-मील पाकर आपस आ जाते हैं . मास्टर जो पहले गुरु पदधारी होते थे जैसे माडल स्कूल वाले  बी०के0 बाजपेई, श्रीयुत ईश्वरी प्रसाद तिवारी,  मेरे निर्मल चंद जैन, मन्नू सिंह चौहान, आदि-आदि, अब गुरुपद किसी को भी नहीं मिलता बेचारे कर्मी हो गये हैं. शहपुरा स्कूल वाले  फतेचंद जैन  मास्साब , सुमन बहन जी रजक मास्साब,  सब ने खूब दुलारा , फटकारा और मारा भी पर सच कहूं इनमें गुरु पद का गांभीर्य था  अब जब में किसी स्कूल में जाता हूँ जीप देखकर वे बेचारे शिक्षा कर्मी टाइप के मास्साब  बेवज़ह अपनी गलती छिपाने की कवायद मी जुट जाते. जी हाँ वे ही अब रोटी दाल का हिसाब बनाने और सरपंच सचिव की गुलामी करते सहज ही नज़र आएँगे आपको ,गाँव की सियासत यानी "मदारी" उनको बन्दर जैसा ही तो नचाती है. जी हाँ इन्ही कर्मियों के स्कूलों में दोपहर का भोजन खाकर पास धुआंधार में कूदा करतें हैं ये बच्चे, आज से २०-२५ बरस पहले इनकी आवाज़ होती थी :-"सा'ब चौअन्नी मैको हम निकाल हैं...!!" {साहब, चार आने फैंकिए हम निकालेंगें } और सैलानी वैसा ही करते थे , बच्चे धुआंधार में छलाँग लगाते और १० मिनट से भी कम समय में वो सिक्का निकाल के ले आते थे , अब उनकी संतानें यही कर रही है....!! फ़र्क़ बस इतना है कि पांच रुपए वाले सिक्के की उम्मीद में धुंआधार में छलांग लगाते हैं .
  इन्हीं में से  एक बच्चे ने मुझे बताया-"पापा दारू पियत हैं,अम्मा मजूरी करत हैं, मैने उससे सवाल किया था - तुम क्या स्कूल नहीं जाते ....?
उत्तर मिला- जात हैं सा'ब नदी में कूद के ५/- सिक्का कमाते हैं....?
शाम को अम्मा कौं दे देत हैं.
कित्ता कमाते हो...?
२५-५० रुपैया और का...?
        तभी पास खडा शिल्पी का दूसरा बेटा बोल पडा-"झूठ बोल रओ है दिप्पू जे पइसे कमा कै तलब [गुठका] खात है.पिच्चर सुई जात है..?
 मेरी मुस्कुराहट को देख सित्तू बोला- साब, हम स्कूल जात हैं खाना उतई खात हैं.
Yashbharat jabalpur 02/12/12
 मैं - फ़िर क्या करते हो..
सित्तू : फ़िन का इतई आखैं (आकर) नरबदा नद्दी पढ़त हैं और का !
        दिप्पू, सित्तू, गुल्लू सब नदी पढते हैं. नदी तो युगयुगांतर से पढ़ी जा रही है. बेगड़ जी तो निरंतर बांच रहे हैं नर्मदा .. पर ये नौनिहाल जिस तरह से बांच रहे हैं एकदम अलग है तरीक़ा.
        मित्रो, बेफ़िक्र न रहें दूर से आता दिखाई देने वाला कल इन अल्प-शिक्षितों से भरी भीड़ वाला कल है. ध्यान से सुनो इनके हाथों में सुविधा भोगियों के खिलाफ़ सुलगती मसालें होंगी ये इंकलाब बुलंद करेंगें. कल तब आप किसी भी सूरत उनको रोक पाने में असफ़ल रहेंगे. धुंआधार में कूदते बच्चों को रोकिये. स्कूल भिजवा दीजिये न.. अभी भी समय है.
   

13.11.11

लोकरंग का सार्थक आयोजन

                   शनिवार दिनांक 12 नवम्बर 2011 को सरस्वतिघाट भेड़ाघाट में   जिला पंचायत अध्यक्ष भारत सिंह यादव,के मुख्य-आतिथ्य, एवम श्री अशोक रोहाणी,पूर्व-सांसद पं.रामनरेश त्रिपाठी,नगर-पंचायत अध्यक्ष श्री दिलीप राय,पूर्व-महापौर सुश्री कल्याणी पाण्डेय के विशिष्ठ आतिथ्य  में आयोजित लोकरंग का शुभारंभ मां नर्मदा एवम सरस्वती पूजन-अर्चन के साथ हुआ .
      इस अवसर पर विचार रखते हुए श्री भारत सिंह यादव ने कहा –“लोक-कलाओं के संरक्षण के लिये ऐसे आयोजन बेहद आवश्यक हैं मेला-संस्कृति के पोषण के लिये भी कम महत्व पूर्ण नहीं हैं ऐसे आयोजन. सरस्वतिघाट पर हो रहे ऐसे आयोजन के आयोजन एवम प्रायोजक दौनों ही साधुवाद के पात्र हैं”.
 पूर्व सांसद श्री रामनरेश त्रिपाठी ने कहा –“मोक्षदायिनी मां नर्मदा के तट पर मां नर्मदा का यशोगान बेशक स्तुत्य पहल है विग्यान के नियमों को उलट देने वाली मां नर्मदा का तट पर आयोजित लोकरंग एक सार्थक-पहल है जिसके साक्षी बन कर हम हितिहास का एक हिस्सा बन रहे हैं.”
 सुश्री कल्याणी पाण्डेय के अनुसार-“ जहां एक ओर मां नर्मदा के तट पर अध्यात्म, संस्कृति को बढ़ावा मिला वहीं पुण्य-सलिला के तट पर अकाल, महामारियों को कोई स्थान नहीं ”
      लोकरंग के प्राम्भिक चरण में डा० नीलेश जैन,नारायण चौधरी, भूपेंद्र सिंह , की उपस्थिति   उल्लेखनीय है.
ग्रामीणों की नज़र मे आयोजन :-
 लोकरंग पर अपनी प्रतिक्रिया पिपरिया निवासी संतोष मल्लाह की प्रतिक्रिया थी “देहात के लाने जो कार्यक्रम ऐंसो लगो जैसों हमाओ कार्यक्रम है.”
सुनाचर निवासी परसुराम विश्वकर्मा की राय थी -“जे लोकगीत हमाई गांव की परम्परा है. हमाए लाने जो कछु करौ बहुतई अच्छौ लगो..”
हल्ला गुल्ला वारे कार्यक्रम तो सब करात हैं हमाए लाने हमाओ कार्यक्रम पहली बार भओ अच्छो लगो भैया ... ये विचार थे झिन्ना निवासी दमड़ी लाल चौधरी के. इसी तरह किशोर दुबे, राजाराम सेन, मनोज जैन, सुरेश तिवारी, धवल अग्रवाल, दीपांकर अग्रवाल, संटू पाल, लखन पटेल, राजू९ जैन, मुन्ना पटेल हनमत सिंह, गनपत तिवारी, मधुरा जैन, विपिन सिंह, बहादुर बर्मन बल्ली-रजक, सोनू श्रीवास्तव, आशीष जैन, चतुर पटैल, उमराव रज़क, अशोक उपाध्याय, भोजराज सिंह, संजय साहू, मोती पाठक , मनोज साहू आदी ने कार्यक्रम की मुक्त कण्ठ सराहना की.
कार्यक्रम के आयोजन में श्री विद्यासागर दुबे, नितिन अग्रवाल (मजीठा),वीरेंद्र गिरी (छेंड़ी) ,दिलीप अग्रवाल (भेड़ाघाट चौक),  एड.सम्पूर्ण तिवारी, गिरीष बिल्लोरे “मुकुल”,डा.लखन अग्रवाल, कंछेदीलाल जैन, महेश तिवारी,सुनील जैन, किशोर दुबे,धर्मेंद्र पुरी,सुरेश तिवारी, विद्यासागर दुबे, राजू जैन,मंजू जैन, संजय साहू, धीरेंद्र प्रताप सिंह, सुखराम पटेल,पं शारदा प्रसाद दुबे, धवल अग्रवाल,गनपत तिवारी,सुधीर शर्मा,सीता राम दुबे,चतुर सिंह पटेल, बल्ली रजक, के साथ क्षेत्रीय सरपंच देवेंद्र पटेल(बिलखरवा),हनुमत सिंह ठाकुर (बिल्हा),लखन पटेल(आमाहिनौता), जग्गो बाई गोंटिया(कूड़न)राजू पटेल (तेवर),डा०राजकुमार दुबे(बंधा),मुन्नाराज (सहजपुर),परसुराम पटेल(सिहौदा),जानकी अनिल पटेल(लामी) की महत्वपूर्ण  भूमिका थी.
छा गये दविंदर सिंह ग्रोवर
सुप्रसिद्ध रंगकर्मी दविंदर सिंह ग्रोवर की एका टीम ने जब लोकनृत्य की प्रस्तुति दी तब क्षेत्रीय जनता ने तालियों से सराहना की कारण था दविंदर का शुद्ध बुन्देली में  लोक गायन . नृत्य निर्देशक श्री दविंदर के हरेक प्रस्तुति में रिर्कार्डेड गीत रचना का प्रयोग नहीं किया गया.. वे स्वयं राई बम्बुलियां, बरेदी गीतों के बोल गा रहे थे. एक अहिंदी भाषी का शुध्द बुंदेली में प्रस्तुति करण पर खचाखच भरा जन सैलाब मोहित सा था.
फ़िल्मी गीत –संगीत पर आधारित एक भी प्रस्तुति नहीं
लोकरंग में एक भी ऐसी प्रस्तुति नहीं देखी गई जिसमें फ़िल्मी गीत संगीत का प्रभाव हो “एकजुट कला श्रम के श्री मनोज चौरसिया का कहना था- लोककलाओं से फ़िल्में हैं फ़िल्मों से लोककलाएं कदापि नहीं.
 बुंदेली-भाषा में संचालन
सम्पूर्ण तिवारी-मनीष अग्रवाल की जोड़ी द्वारा संचालित सम्पूर्ण  कार्यक्रम का संचालन बुंदेली में ही किया
मशहूर लोकगायक मिठाई लाल चक्रवर्ती ने बांधा समा
                       लोकगीतों के सरताज़ मशहूर लोकगायक मिठाई लाल चक्रवर्ती के गाए राई, फ़ाग, डिमरयाई, एवम लोकभजनों ने श्रोताओं का मन मोह लिया.
लाफ़्टर चैलेंज में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर चुके हास्य-कला कार श्री विनय जैन एवम मनीष जैन ने खूब हसांया बावज़ूद इसके कि उनकी एक किसी भी प्रस्तुति में फ़ूहड़ता एवम वल्गरिटी की झलक न थी कुल मिला कर  हास्य-प्रस्तियां स्तरीय रहीं

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धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...