पलाश से संवाद !
श्रीमति रानी विशाल जी के ब्लाग काव्यतरंग से साभार पलाश तुम भी अज़ीब हो कोई तुम्हैं वीतरागी समझता है तो कोई अनुरागी. और तुम हो कि बस सिर पर अनोखा रंग लगाए अपने नीचे की ज़मीन तक को संवारते दिखते हो. लोग हैरान हैं... सबके सब अचंभित से तकते हैं तुमको गोया कह पूछ रहे हों.. हमारी तरह चेहरे संवारों ज़मीन को क्यों संवारते हो पागल हो पलाश तुम .. ? जिसके लिये जो भी हो तुम मेरे लिये एक सवाल हो पलाश, जो खुद तो सुंदर दिखना चाहता है पर बिना इस बात पर विचार किये ज़मीन का श्रृंगार खुद के लिये ज़रूरी साधन से करता है.. ये तो वीतराग है. परंतु प्रियतमा ने कहा था – आओ प्रिय तुमबिन लौहित अधर अधीर हुए अरु पलाश भी डाल-डाल शमशीर हुए. रमणी हूं रमण करो फ़िर चाहे भ्रमण करो.. फ़ागुन में मिलने के वादे प्रियतम अब तो तीर हुए ...!! मुझे तो तुम तो वीतरागी लगते हो.. ये तुम्हारा सुर्ख लाल रंग जो हर सुर्ख लाल रंग से अलग है.. अपलक देखता हूं तो मुझे लगता है... कोई तपस्वी युग कल्याण के भाव लिये योगमुद्रा में है. तुम चिंतन में हो