गिरीश मुकुल लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
गिरीश मुकुल लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

5.1.12

कान देखने लगे हैं अब :व्यंग्य गिरीश मुकुल

कानों से देखने की एक अधुनातन तकनीक का विकास एवम उपयोग इन्सानी सभ्यता के बस में ही है यक़ीन कीजिये  इसका उपयोग  इन दिन दिनों बेहद बढ़ गया है.अब कान भी बढ़चढ़ के देखने के अभ्यस्त हो चले हैं. अब गुल्लू को ही लो जित्ते निर्णय लेता है कानन देखी के सहारे लेता है गुल्लू करे भी तो क्या अब आधी से ज़्यादा आबादी के पास  नज़रिया  ही कहां जिससे साफ़ साफ़ देखा जाए.तो भाई लोगों में जैनेटिक बदलाव आने तय थे . एक ज़िराफ़ की गर्दन की लम्बाई भी तो जैनेटिक बदलाव का नतीज़ा है.कहतें है कि लम्बी झाड़ियों से हरी हरी पत्तियां चट करने के लिये बड़ी मशक्क़त करनी होती थी जिराफ़ों को तो बस उनमें बायोलाजिकल बदलाव आने शुरु हो गये . पहले मैं भी इस बात को कोरी गप्प मानता था लेकिन जब से आज के लोगों पर ध्यान दिया तो लगता है है कि सही थ्योरी है जिराफ़ वाली. 
मेरे एक मित्र  अखबार निकालते हैं. मुझे मालूम है कि वे बस हज़ार अखबार छापते हैं हमने पूछा : भई, कैसा चल रहा है अखबार 
बहुत उम्दा दस हज़ार तक जाता है..?
यानि, अब एक नहीं दस हज़ार कापी छाप रए हो दादा वाह बधाई.. !
न भाई छाप तो ऎकै हज़ार रहे हैं पहुंच दस तक रहा है...!
"भईया, झूठ नै बोलो अपने लंगोटिया सै"
   बस भाई ने हिंदुस्तान में सबसे ज़्यादा खाए जाने वाले "आभासी खादय पदार्थ यानी कसम खा के बोले - भाई तुम क्या जानो  रीडर शिप सर्वे के मुताबिक अपना अखबार दस हज़ार बांच रये हैं .जे देक्खो (जेब से एक फोटो कापी निकाल के हमको दिखाते हुए बोले ) जे रहे अलग से  पांच हज़ार, हां देखो नीचे वाली लैन पढ़ो जिनको हमाए समाचार पत्र की कोई न कोई खबर किसी के ज़रिये सुनवा दी जाती है .  रोज़िन्ना पंद्र हज़ार तक जाने वाला अखबार चलाता हूं मुझे महापुरुष वक़ील पत्रकार "छत्ता-पांडे जी" की याद आ गई बड़े जीवट अखबार नवीस थे उनका अखबार की कुछ खबरें वे अक्सर सुना जाया करते थे. यानी कुल मिला के  कानों से देखने दिखाने का सामाजिक बदलाव आज़ से बीस-बाइस बरस पहले ही शुरु हो चुका था अब तो इस कला में चार चांद लग गये. अब बताओ भैया "गुल्लू का गलत कर रिया है..?"
न गुल्लू वही कर रिया है जो अदालत करतीं हैं-"हां वही,सुनवाई, यानी कानन-दिखाई"
कल गुल्लू बीवी को ज़ोर जोर से डांट रहा था पता चला कि गुल्लू की बुढ़िया अम्मा ने बहू की कोई गलती गुल्लू को कान के ज़रिये दिखा दी बस क्या था गुल्लू ने अपना पति धर्म निबाह दिया.. बेचारी गुल्ली का करती सोच रही होगी :"बुढ़िया कित्ते दिन की "
  खैर गुल्लू तो एक आम आदमी है.. आफ़िसों में नाबीना अधिकारी बेचारे कान से न देखें तो का करें. सूचना क्रांति के युग में उनका कान से देखना अवश्यंभावी है. दोस्तो बायोलाजिकल चैंज सन्निकट जान पड़ता है. इस बारे में चश्मा कम्पनियां बहुत गम्भीरता से चश्में की बनावट में चैंज लाएंगी सुना है ओबामा ने "इस अनुसंधान के लिये काफ़ी सारे डालर के बज़ट का मन बना लिया है." यानी अब चश्मे कानौं में लगेंगे आखौं पे नहीं. आंख से इंसान-प्रज़ाति क्या काम लेगी इस काया-शास्त्री गण गहन विमर्श में हैं. 

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...